Homeलाइफस्टाइलनिर्जला एकादशी का व्रत करने से मिलता है साल की 24 एकादशियों...

निर्जला एकादशी का व्रत करने से मिलता है साल की 24 एकादशियों का फल, जानें प्राचीन कथा

और पढ़ें

Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Nirjala Ekadashi 2025: निर्जला एकादशी हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत है जो भक्तों को आत्मसंयम और भगवान विष्णु की कृपा प्रदान करता है।

इस व्रत को करने से मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, निर्जला एकादशी ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है।

6 जून 2025 को निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाएगा। वैष्णव संप्रदाय के लोग 7 जून को इस व्रत को करेंगे।

Dev Uthani Ekadashi, Lord Vishnu, Dev Uthani Ekadashi katha, Dev Utthan Ekadashi, Dev Prabodhini Ekadashi,
Ekadashi katha

व्रत तिथि और समय:

  • एकादशी तिथि प्रारंभ: 5 जून 2025, सुबह 07:54 बजे
  • एकादशी तिथि समाप्त: 6 जून 2025, सुबह 05:38 बजे
  • – पारण (व्रत तोड़ने का समय): 7 जून 2025, सुबह 05:43 से 08:28 बजे तक

निर्जला एकादशी का महत्व

निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी भी कहा जाता है।

यह व्रत हिंदू धर्म में सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है क्योंकि इसमें 24 घंटे तक बिना जल के उपवास रखा जाता है।

मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से सालभर की सभी 24 एकादशियों का पुण्य मिलता है।

विशेष फल:

  • समस्त पापों से मुक्ति  
  • – मोक्ष की प्राप्ति  
  • – शारीरिक और मानसिक शुद्धि  
  • – भगवान विष्णु की विशेष कृपा  

निर्जला एकादशी व्रत कथा (भीमसेनी एकादशी कथा)

पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत के समय भीमसेन ने व्यास मुनि से पूछा: “मुझसे भूख सहन नहीं होती, फिर मैं एकादशी का व्रत कैसे करूँ?”

तब व्यासजी ने उन्हें निर्जला एकादशी का व्रत करने की सलाह दी।

भीमसेन ने इस व्रत को किया और बिना अन्न-जल के भगवान विष्णु की आराधना की। प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें वरदान दिया कि जो भी इस व्रत को करेगा, उसे सभी एकादशियों का फल मिलेगा।

तब से यह व्रत भीमसेनी एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

निर्जला एकादशी पूजा विधि

1. सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें।

2. भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।

3. फूल, तुलसी, फल, मिठाई और दीपक से पूजा करें।

4. “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।

5. रात्रि जागरण कर भजन-कीर्तन करें।

6. अगले दिन द्वादशी पर ब्राह्मण को भोजन कराकर ही व्रत तोड़ें।

व्रत में इन बातों का रखें ध्यान

क्या करें:

  • पूरे दिन बिना पानी के रहें (केवल आचमन करें)।  
  • – भगवान विष्णु का ध्यान करें।  
  • – दान-पुण्य करें (जल, छाता, फल, वस्त्र दान करना शुभ)। 

क्या न करें:

  • – झूठ बोलने या क्रोध करने से बचें।  
  • – दिन में सोएं नहीं।  
  • – ब्रह्मचर्य का पालन करें।  

निर्जला एकादशी का दान और पुण्य

इस दिन जल कलश, छाता, फल, अन्न और वस्त्र दान करने से विशेष पुण्य मिलता है। मान्यता है कि जल दान करने वाले को समस्त तीर्थों का फल प्राप्त होता है।

- Advertisement -spot_img