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क्या होता है कलमा: किसने बनाए इसे पढ़ने के नियम, इस्लाम में क्या है इसका महत्व है, जानिए सबकुछ

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

What Is Kalma: पहलगाम आतंकी हमले (Pahalgam Terror Attack) में एक बात ने सबका ध्यान खींचा कि आतंकियों ने पर्यटकों से पहले उनका धर्म पूछा और उनसे कलमा पढ़ने के लिए कहा।

जो लोग कलमा नहीं पढ़ पाए उन्हें गोली मार दी गई।

ऐसे में कई लोग जानना चाहते हैं कि आखिर कलमा क्या होता है?

और क्या कलमा नहीं पढ़ना इतना बड़ा गुनाह है कि उन्हें ऐसी सजा दी जाए?

इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कलमा का मतलब और इस्लाम में इसका क्या महत्व है…

कलमा का वास्तविक अर्थ:

इस्लाम में कलमा का अर्थ है ‘अल्लाह एक है और मुहम्मद उसके रसूल हैं’।

इसे इस्लाम के मानने वालों के लिए एक विश्वास का प्रतीक माना जाता है।

कलमा मुस्लिमों की आस्था और विश्वास को दर्शाता है, और इसे इस्लाम में दाखिल होने के लिए पढ़ा जाता है।

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What Is Kalma Meaning

किसने बनाए कलमा पढ़ने के नियम

मज़्कूर आलम के अनुसार, करीब 1450 साल पहले इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने इस्लाम के मानने वालों के लिए पांच नियम बनाए।

कलमा, नमाज, रोजा, जकात और हज। कलमा इन नियमों का पहला पड़ाव है।

छह कलमा इस्लाम की संपूर्ण अवधारणा का वर्णन करते हैं जिनमें कलमा तय्यब, कलमा शहादत, कलमा तमजीद, कलमा तौहीद, कलमा इस्तिगफर और कलिमा रद्द ए कुफ्र शामिल हैं।

यह जीवन और मृत्यु, स्वर्ग और नरक, अल्लाह के प्रति समर्पण जैसी बातों के बारे में है।

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क्या इस्लाम में किसी से जबरन कलमा पढ़वाना गुनाह है?

मज़्कूर आलम बताते हैं कि इस्लाम में किसी को जबरन कलमा पढ़वाना गलत है।

कुरान शरीफ में साफ लिखा है कि इस्लाम में धर्म के प्रति कोई दबाव नहीं है।

सूरा बकरा की आयत 256 में कहा गया है कि इस्लाम को किसी पर थोपना गुनाह है।

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इस्लाम में हत्या का क्या दर्जा है?

इस्लाम में निर्दोष लोगों की हत्या को सबसे बड़ा गुनाह माना गया है।

कुरान शरीफ की आयत 93 में कहा गया है कि जानबूझकर हत्या करने वाले को नर्क की सजा दी जाएगी।

इस्लाम में किसी के धर्म को जबरन अपनवाना और हत्या करना गलत है, और यह हर मुस्लिम को नसीहत दी गई है कि वह शांति और भाईचारे के सिद्धांतों को मानें।

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कर्बला की लड़ाई और इस्लाम के सिद्धांत:

कर्बला की लड़ाई, जो इस्लाम के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हुई, ने हमें यह सिखाया कि धर्म के नाम पर किसी को भी मारने का अधिकार नहीं है।

हजरत इमाम हुसैन की शहादत ने इस्लाम के शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण सिद्धांतों को मजबूती दी।

मतलब पहलगाम की घटना को देखकर यह कहना सही होगा कि आतंकियों का यह कृत्य न सिर्फ इस्लाम के खिलाफ है, बल्कि यह शांति और मानवता के सिद्धांतों के भी खिलाफ है।

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