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परशुराम जयंती: 21 बार किया क्षत्रियों का संहार, पिता के कहने पर काट दिया था अपनी ही माता का सिर

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Parashuram Jayanti 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार, 29 अप्रैल 2025 को परशुराम जयंती मनाई जा रही है।

इस दिन भक्त भगवान परशुराम की पूजा-अर्चना करते हैं और गरीबों को अन्न, वस्त्र व दान देकर पुण्य कमाते हैं।

मान्यता है कि परशुराम जी की पूजा करने से जीवन में सुख-शांति आती है और संकटों से मुक्ति मिलती है।

परशुराम जी के जीवन में काफी विचित्र संयोग देखने को मिले।

ब्राह्मण होते हुए भी उन्होंने क्षत्रियों की तरह हथियार उठाए। पिता के कहने पर अपनी ही माता का सिर काटकर उनका वध कर दिया।

माना जाता है कि भगवान परशुराम आज भी धरती पर निवास करते हैं।

आइए, जानते हैं भगवान परशुराम के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण कथाएं…

ब्राह्मण कुल में जन्म, कर्म से क्षत्रिय

परशुराम का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था, लेकिन वे कर्म से क्षत्रिय बने।

वे भृगु वंश के ब्राह्मण ऋषि जमदग्नि और क्षत्रिय राजकुमारी रेणुका के पुत्र थे।

उन्होंने क्षत्रियों के अत्याचार के खिलाफ संघर्ष किया, और इसलिए उन्हें कर्म से क्षत्रिय माना जाता है.

उन्होंने कई बार क्षत्रियों के अत्याचार के खिलाफ संघर्ष किया और पृथ्वी को क्षत्रियों से मुक्त किया।

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भगवान विष्णु के अवतार

पौराणिक संदर्भों में, परशुराम को भगवान विष्णु का छठवां अवतार माना जाता है, जिन्होंने क्षत्रिय राजाओं के अत्याचारों को खत्म करने के लिए धरती पर अवतार लिया था।

ऐसे ‘राम’ बनें परशुराम

भगवान परशुराम के बचपन का नाम राम था।

कथाओं के अनुसार उन्होंने भगवान शिव कठिन तपस्या की थी। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें युद्ध कला का ज्ञान और कई अस्त्र भेंट किए।

इन सभी अस्त्र-शस्त्र में से भगवान परशुराम को फरसा सबसे अत्यधिक प्रिय था।

इस फरसे को ही परशु (कुल्हाड़ी) कहा जाता है।

हमेशा अपने साथ फरसा रखने की वजह से ही इन्हें परशुराम कहा जाने लगा।

क्या परशुराम ने अपनी मां का सिर काटा था?

एक प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार एक खूबसूरत गंधर्व को देखकर परशुराम की माता रेणुका के मन में उसके लिए मोह उत्पन्न हो गया।

लेकिन इस बात का पता उनके पति ऋषि जमदग्नि को चल गया।

ऋषि जमदग्नि ने क्रोधित होकर अपने पुत्रों से माता का वध करने को कहा।

जब अन्य पुत्रों ने मना कर दिया, तो परशुराम ने पिता की आज्ञा मानकर माता का सिर काट दिया।

अपने पुत्र का पिताप्रेम देखकर जमदग्नि परशुराम से बेहद प्रसन्न हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा।

तो परशुराम ने मां को पुनर्जीवित करने और भाइयों की स्मृति वापस लाने की मांग की।

इस तरह, यह घटना उनकी आज्ञाकारिता और न्यायप्रियता को दर्शाती है।

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21 बार क्षत्रियों का संहार क्यों किया?

परशुराम ने हैहयवंशी क्षत्रिय राजा सहस्त्रबाहु (सहस्त्रार्जुन) के पुत्रों से बदला लेने के लिए 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय-विहीन किया।

महाभारत के अनुसार एक बार सहस्त्रबाहु अर्जुन अपनी सेना के साथ ऋषि जमदग्नि के आश्रम में ठहरे थे। उस समय ऋषि जमदग्नि के पास कामधेनु गाय थी।

कामधेनु सभी इच्छाएं पूरी करने वाली दिव्य गाय थी जिसकी मदद से ऋषि जमदग्नि ने सहस्त्रबाहु अर्जुन और उनकी सेना का भव्य स्वागत किया।

कामधेनु का चमत्कार देखकर सहस्त्रबाहु अर्जुन उस गाय को बलपूर्वक अपने साथ ले गए।

जब ये बात ऋषि जमदग्नि के पुत्र परशुराम को मालूम हुई तो वो क्रोधित हो गए और सहस्त्रबाहु अर्जुन से युद्ध करने पहुंच गए।

परशुराम और सहस्त्रबाहु अर्जुन के बीच युद्ध हुआ, जिसमें परशुराम ने सहस्त्रबाहु को पराजित कर दिया।

इस बात का बाद बदला लेने के लिए सहस्त्रबाहु अर्जुन के पुत्रों ने ऋषि जमदग्नि का वध कर दिया था।

इसके बाद पिता की हत्या से क्रोधित होकर परशुराम ने हैहयवंश का विनाश करने की प्रतिज्ञा ली और 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था।

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चारों युग में परशुराम का जिक्र, कल्कि अवतार के गुरु होंगे

-सतयुग में भगवान परशुराम का जिक्र तब आता है जब गणेशजी ने परशुराम को भगवान शिव के दर्शन करने से रोक दिया था।

-तब क्रोधित होकर परशुराम जी ने उन पर परशु से प्रहार कर दिया था जिससे गणेश जी का एक दांत टूट गया था।

-त्रेतायुग में जब सीता स्वयंवर के समय श्रीराम ने शिव जी का धनुष उठाया और वह टूट गया तो परशुराम स्वयंवर के स्थान पर पहुंचे और शिव जी का टूटा धनुष देखकर क्रोधित हो गए।

-इसके बाद भगवान राम ने परशुराम जी को बताया कि वे भगवान विष्णु का ही अवतार हैं, तब परशुराम जी का क्रोध शांत हुआ।

-द्वापर युग में उन्होंने झूठ बोलने के दंड स्वरूप कर्ण की सारी विद्या उस समय पर विस्मृत हो जाने का श्राप दिया जब उन्हें उनकी विद्या की सबसे ज्यादा जरूरत होगी। इसी श्राप के कारण महाभारत युद्ध में कर्ण की हार हुई थी।

-कल्कि पुराण में बताया गया है कि परशुराम जी ही कलयुग के कल्कि अवतार के गुरु भी होंगे।

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आज भी धरती पर हैं परशुराम

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम अमर है और ऐसा माना जाता है कि वे आज भी धरती पर रहते हैं।

उन्हें 8 चिरंजीवियों में से एक माना जाता है।

इनमें हनुमान, विभीषण, राजा बलि, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, वेदव्यास, परशुराम और मार्कंडेय शामिल हैं।

परशुराम जयंती कैसे मनाएं?

सुबह स्नान करके भगवान परशुराम की मूर्ति या चित्र पर फूल, फल और मिठाई चढ़ाएं।

“ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात्” मंत्र का जाप करें।

गरीबों को भोजन, वस्त्र या दान दें।

“भगवान परशुराम का आशीर्वाद आपके जीवन से सभी कष्ट दूर करे। परशुराम जयंती की शुभकामनाएं!”

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