Paush Month 2025: हिंदू धर्म में पौष माह का आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है।
विक्रम संवत के दसवें महीने के रूप में मनाया जाने वाला यह महीना इस बार 5 दिसंबर 2025 से शुरू होकर 3 जनवरी 2026 तक रहेगा।
पौष मास को सूर्य देव की उपासना के लिए सर्वोत्तम माना गया है, साथ ही इसमें कुछ विशेष नियमों व सावधानियों का पालन करने की सलाह दी जाती है।
आइए, जानते हैं इस पवित्र महीने के महत्व, पालन करने योग्य नियम और प्रमुख त्योहारों के बारे में।
पौष माह का महत्व: सूर्य देव की तपस्या और आराधना का समय
मान्यता है कि पौष के महीने में सूर्य देव ग्यारह हजार रश्मियों के साथ तप करके पृथ्वीवासियों को सर्दी से राहत प्रदान करते हैं।
इसीलिए इस मास में सूर्य को ‘भग’ के रूप में पूजा जाता है, जो साक्षात परब्रह्म का स्वरूप माना गया है।
शास्त्रों में ‘भग’ शब्द ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य इन छह गुणों का प्रतीक है।
इस माह में नियमित सूर्योपासना करने से व्यक्ति का तेज, बल और स्वास्थ्य बढ़ता है।
चूंकि सूर्य को शनिदेव का पिता माना जाता है, अतः इस माह की सूर्य साधना से शनि संबंधी दोषों में भी कमी आती है।
खरमास (धनुर्मास) क्या है और क्यों वर्जित हैं मांगलिक कार्य?
पौष मास का एक प्रमुख पहलू ‘खरमास’ या ‘मलमास’ का प्रारंभ होना है।
16 दिसंबर 2025, धनु संक्रांति के दिन सूर्य के धनु राशि में प्रवेश के साथ ही खरमास शुरू हो जाएगा, जो मकर संक्रांति (14 जनवरी 2026) तक रहेगा।
धनु राशि को दो भागों वाली या ‘खर’ (गधा) से संबंधित माना जाता है, इसीलिए इसे ‘खरमास’ कहते हैं।
ज्योतिष शास्त्र में इस अवधि को अशुभ माना गया है।
इस पूरे माह विशेष रूप से खरमास की अवधि में निम्नलिखित मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए:
- विवाह संस्कार या सगाई
- गृह प्रवेश (नए घर में प्रवेश)
- मुंडन या नामकरण संस्कार
- नए व्यवसाय या नौकरी की शुरुआत
- कोई बड़ी खरीदारी (वाहन, जमीन आदि)
मान्यता है कि इस दौरान किए गए शुभ कार्यों का पूर्ण शुभ फल प्राप्त नहीं होता।
हालांकि, यह समय आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए अत्यंत उपयुक्त है।
पौष माह में जरूर करें इन 10 नियमों का पालन
- सूर्य को अर्घ्य देना: प्रत्येक रविवार को तांबे के पात्र में जल लेकर उसमें लाल चंदन व लाल फूल डालें और सूर्य देव को अर्घ्य दें। साथ ही ‘ॐ सूर्याय नमः’ मंत्र का जाप करें।
- रविवार का व्रत: संभव हो तो पौष के रविवार को व्रत रखें। व्रत में नमक का सेवन न करें और शाम को मीठे भोजन से व्रत खोलें। तिल-चावल की खिचड़ी का दान अवश्य करें।
- गर्म वस्तुओं का दान: कड़ाके की सर्दी के इस माह में जरूरतमंदों को कंबल, गर्म कपड़े, गुड़, तिल, अन्न आदि का दान करना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है।
- विष्णु पूजा व गीता पाठ: इस माह भगवान विष्णु की पूजा का भी विशेष महत्व है। नियमित रूप से गीता पाठ करने से आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है।
- विशेष रंग के वस्त्र: भगवान विष्णु व सूर्य की कृपा पाने के लिए इस माह लाल या पीले रंग के वस्त्र अधिक पहनें।
- पितरों का तर्पण: पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए इस माह पिंडदान या तर्पण करना शुभ फलदायी होता है।
- सात्विक आहार: इस माह मांस-मदिरा का सेवन पूर्णतः त्याग दें। सात्विक भोजन ग्रहण करें।
- तेल मालिश से परहेज: प्रतिदिन शरीर पर तेल की मालिश करने से बचना चाहिए।
- ठंडी चीजों का सेवन न करें: दही, ठंडा पानी, आइसक्रीम आदि ठंडी तासीर वाली चीजों से परहेज करें। गुड़, अदरक, तिल का सेवन लाभकारी है।
- नए अन्न का सेवन: नए अनाज का सेवन करने से पहले उसे भगवान को भोग लगाएं, तत्पश्चात ही ग्रहण करें।
पौष मास 2025-26 के प्रमुख त्योहार (तिथियां)
- 5 दिसंबर 2025: रोहिणी व्रत
- 11 दिसंबर 2025: कालाष्टमी, मासिक कृष्ण जन्माष्टमी
- 15 दिसंबर 2025: सफला एकादशी
- 16 दिसंबर 2025: धनु संक्रांति, खरमास प्रारंभ
- 18 दिसंबर 2025: मासिक शिवरात्रि
- 19 दिसंबर 2025: पौष अमावस्या (स्नान-दान का विशेष दिन)
- 27 दिसंबर 2025: गुरु गोविंद सिंह जयंती
- 30 दिसंबर 2025: पौष पुत्रदा एकादशी
- 1 जनवरी 2026: रोहिणी व्रत, प्रदोष व्रत
- 3 जनवरी 2026: पौष पूर्णिमा, माघ स्नान प्रारंभ
आध्यात्मिक शुद्धि और सेवा का पर्व
पौष मास ठंड के चरम का समय है, लेकिन यह आत्मिक ताप बढ़ाने का भी अवसर है।
यह महीना हमें स्वयं की आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ समाज के कमजोर वर्ग की सेवा करने की प्रेरणा देता है।
सूर्य देव की आराधना, दान-पुण्य और पितरों के तर्पण से यह समय हमारे लिए पुण्य और शांति लाने वाला बन सकता है।
खरमास की अवधि में बाहरी मांगलिक कार्यों से बचकर अंतर्मुखी होकर पूजा-पाठ, हवन और तीर्थ यात्रा जैसे कार्यों में समय बिताना ही इस माह का सदुपयोग है।


