Early Puberty: वक्त से पहले छोटे बच्चे का जवान होना या 6 साल की बच्चियों को पीरियड्स आना।
ये है अर्ली प्यूबर्टी या प्रीकॉशियस प्यूबर्टी, जो भारत में एक गंभीर समस्या बनती जा रही है।
इससे ना केवल बच्चों के स्वास्थ्य को खतरा है, बल्कि ये शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाल रही है।
आइए जानते हैं अर्ली प्यूबर्टी के कारण और इस समस्या के समाधान के बारे में-
Early Puberty: भारत की गंभीर समस्या
भारत में एक नई और चिंताजनक समस्या उभर रही है, जिसे अर्ली प्यूबर्टी या प्रीकॉशियस प्यूबर्टी कहा जाता है।
प्यूबर्टी यानी किशोरावस्था, ये ऐसा समय होता है जब बच्चों के शरीर में यौन विकास की प्रक्रिया शुरू होती है।
आमतौर पर 8 से 13 साल की उम्र के बीच लड़कियों और 9 से 14 साल की उम्र के बीच लड़कों में यह होता है।
इस दौरान शारीरिक और मानसिक परिवर्तन होते हैं, जैसे कि शारीरिक अंगों का विकास, हार्मोनल परिवर्तन और यौन वृद्धि।
लेकिन, अब यह प्रक्रिया 6 साल की बच्चियों में भी देखने को मिल रही है।
अर्ली प्यूबर्टी का आसान भाषा में मतलब है, वक्त से पहले छोटे बच्चे का जवान होना।
विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों में किशोरावस्था के लक्षण सामान्य उम्र से पहले दिख रहे हैं।
पिछले कुछ सालों में लड़कियों में बदलाव का समय कम हो गया है।
पहले लड़कियों में शारीरिक बदलाव के लक्षण देखे जाने के 18 महीने से 3 साल बाद उनके पीरियड्स शुरू होते थे।
लेकिन, यही अब शारीरिक बदलाव के लक्षण के 3 से 4 महीने के अंदर ही उनकी माहवारी शुरू हो जाती है।
वहीं अब लड़कों में भी प्यूबर्टी शुरू होने के 1 से 1.5 साल के भीतर शारीरिक बदलाव दिखाई देने लगे हैं, जबकि पहले ऐसा होने में 4 साल लगते थे।
फिलहाल भारत में अर्ली प्यूबर्टी बच्चों और उनके परिवारों के लिए एक बड़ी चिंता का कारण बन गई है।
इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिनमें में जैविक, पर्यावरणीय, सामाजिक और शहरीकरण से जुड़े कारक शामिल हैं।
Early Puberty: भारत में बढ़ने के कारण
- रासायनिक प्रदूषण और कीटनाशक: कीटनाशकों में मौजूद हानिकारक रसायन हार्मोनल असंतुलन का कारण बनते हैं। इन रसायनों की बच्चों के आसपास मौजूदगी उनके विकास को प्रभावित कर रही है।
- पोषण और मोटापा: असंतुलित आहार और अधिक फैट वाले खाने की आदतें बच्चों में वजन बढ़ा रही हैं। पैकेज्ड फूड का ज्यादा इस्तेमाल भी शरीर के विकास में तेजी ला सकता है। वहीं मोटापा वैश्विक स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है और ये प्रीकॉशियस प्यूबर्टी के मुख्य कारणों में से एक है। मोटापा हार्मोनल बदलावों को उत्प्रेरित करता है और प्यूबर्टी जल्दी शुरू हो सकती है।
- स्क्रीन टाइम और शारीरिक गतिविधि की कमी: डिजिटल उपकरणों का अधिक उपयोग और कम शारीरिक गतिविधि पर नकारात्मक असर डाल रहा है। आजकल के बच्चें ज्यादा समय मोबाइल, टीवी और अन्य डिजिटल उपकरणों के साथ बिताते हैं। ज्यादा स्क्रीन टाइम और सोशल मीडिया बच्चों के मानसिक विकास को प्रभावित करती हैं। इसके परिणामस्वरूप उनके शारीरिक विकास में भी तेजी आ सकती है।
- परिवार और समाज का तनाव: पारिवारिक दबाव और सामाजिक तनाव भी बच्चों के हार्मोनल विकास को प्रभावित कर रहे हैं। जब बच्चे परिवारिक समस्याओं या सामाजिक तनावों का सामना करते हैं, तो उनके शरीर में हार्मोनल असंतुलन हो सकता है। अगर परिवार में अधिक वजन या शारीरिक असमानताएं हैं, तो बच्चों में भी इन्हीं समस्याओं का सामना हो सकता है।
Early Puberty: मानसिक और शारीरिक प्रभाव
अर्ली प्यूबर्टी शुरू होने से बच्चों को मानसिक और शारीरिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, साथ ही ये सामाजिक समस्याओं का कारण भी बन सकती है।
- शारीरिक छवि से संबंधित समस्याएं: बच्चे अपने शरीर में हो रहे बदलावों से आत्मविश्वास खो सकते हैं।
- मानसिक उलझन: शारीरिक विकास को समझ न पाने की वजह से बच्चों में मानसिक तनाव बढ़ता है।
- लंबाई पर प्रभाव: जल्दी विकास हड्डियों की वृद्धि को सीमित कर सकता है, जिससे बच्चों की लंबाई प्रभावित होती है।
Early Puberty: समस्या का समाधान, बच्चों को ऐसे बचाएं
- संतुलित आहार और शारीरिक गतिविधि: बच्चों को पौष्टिक भोजन और खेल-कूद के लिए प्रेरित करें।
- रासायनिक प्रदूषण से बचाव: बच्चों को कीटनाशकों और हानिकारक रसायनों से दूर रखें।
- मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल: बच्चों को परिवार और स्कूल से मनोवैज्ञानिक सहयोग मिलना चाहिए।
- जागरूकता अभियान: अभिभावकों और शिक्षकों को इस समस्या के प्रति जागरूक करना जरूरी है।