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पितरों को प्रसन्न करने का आखिरी उपाय, पढ़ें गीता का ये अध्याय और पाएं पितृ दोष से मुक्ति

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 12 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Gita path For Pitru: सर्व पितृ अमावस्या के साथ ही पितृपक्ष की समाप्ति हो जाएगी और सभी पितृ धरती लोक छोड़कर पितर लोक चले जाएंगे।

पितृपक्ष के दौरान लोग अपने पितरों के लिए पूजा-पाठ, श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं, ताकि उनकी आत्मा सतुंष्ट रहे और उन्हें आशीर्वाद मिले।

लेकिन कई बार व्यस्त दिनचर्या के चलते लोग पितरों की पूजा नहीं कर पाते हैं।

इसके लिए शास्श्रो में एक उपाय बताया गया है जो घर बैठे आसानी से किया जा सकता है।

पितरों के लिए करें गीता का पाठ

अगर आप श्राद्ध या पितृ दोष की शांति नहीं करा पा रहे हैं तो घर पर ही श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करें।

गीत शब्द का अर्थ है गीत और भगवद शब्द का अर्थ भगवान यानी कि भगवद गीता को भगवान का गीत कहा गया है।

पितृपक्ष में श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करने से पूर्वजों का उद्धार होता है और उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है।

गीता पाठ करने वाले को पितृ दोष से मुक्ति और पितृ शांति मिलती है।

शास्त्रों में इसे पितरों के कल्याण का सबसे सरल उपाय बताया गया है।

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पितृ मुक्ति से जुड़ा है सातवां अध्याय

अगर आप गीता के सारे अध्याय नहीं पढ़ सकते तो गीता का सातवां अध्याय जरूर पढ़ें।

गीता का सप्तम अध्याय पितृ मुक्ति और मोक्ष से जुड़ा हुआ है।

ऐसे में इसे पढ़ने और सुनने से पितृ दोष से मुक्ति मिलकर अपने पितृरेश्वरों का आशीर्वाद मिलेगा

श्राद्ध में श्रीमद्भागवत गीता के सातवें अध्याय का माहात्म्य पढ़कर फिर पूरे अध्याय का पाठ करना चाहिए।

इस पाठ का फल आत्मा को समर्पित करना चाहिए।

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कैसे करें गीता पाठ

गीता पाठ करने का स्थान शुद्ध होना चाहिए और गीता पढ़ने वाले को भी पवित्रता का ख्याल रखना चाहिए।

गीता पाठ करने से पहले हाथ में जल लेकर संकल्प करना चाहिए।

आसपास रहने वाले बुजुर्ग और परिवार के सदस्यों को भी गीता पाठ के दौरान साथ बिठा सकते हैं।

अगर पितृपक्ष में सारे दिन गीता पाठ न कर पाएं तो आखिरी दिन सर्व पितृ अमावस्या पर गीता का सातवां अध्याय जरूर पढ़ें।

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क्यों जरूरी है श्राद्ध

जन्म के साथ ही मनुष्य पर देव, गुरु और पितृ ऋण होते हैं।

गुरु के बताए रास्ते का पालन करने से गुरु ऋण औऱ देवताओं की पूजा करने देव ऋण पूरा होता है।

ऐसे ही पूर्वजों का तर्पण श्राद्ध, पिंडदान करके पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है।

इसलिए सनातन धर्म में ऐसी परंपरा बनाई गई है कि हर साल 15 दिनों के लिए पितरों के लिए विशेष श्राद्ध कर्म किए जाते हैं।

इन लोगों के लिए लाभदायक

जो लोग देश से बाहर रहते हैं या फिर किसी वजह से श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान नहीं कर पाते हैं।

उनके लिए गीता का पाठ करना पितृ दोष से मुक्ति पाने का सबसे सरल उपाय है।

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