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पितृ पक्ष: प्रयागराज से बद्रीनाथ तक, गया जी के अलावा इन 7 जगहों पर भी कर कते हैं पिंडदान और श्राद्ध

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Pitru Paksha 2025: पितृ पक्ष का समय अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और उन्हें श्रद्धांजलि देने का एक पवित्र अवसर होता है।

ऐसी मान्यता है कि इस दौरान किया गया श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान सीधे पितरों तक पहुंचता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

जहां ज्यादातर लोग पिंडदान के लिए बिहार के गया जी की ओर रुख करते हैं, वहीं भारत में कई अन्य ऐसे पवित्र स्थल हैं जहां श्राद्ध कर्म करने का विशेष महत्व है।

अगर आप किसी कारणवश गया जी नहीं जा पा रहे हैं, तो इन 7 पवित्र स्थलों पर अपने पितरों का पिंडदान कर सकते हैं…

क्यों है गया जी का विशेष स्थान?

बिहार स्थित गया जी को मुक्तिधाम कहा जाता है। यहां विष्णुपद मंदिर और फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने की प्रथा है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गया जी में किया गया श्राद्ध सीधे सात पीढ़ियों के पूर्वजों तक पहुंचता है और उन्हें मुक्ति दिलाता है। इसीलिए इसका इतना अधिक महत्व है।

गया जी के अतिरिक्त पिंडदान के 7 प्रमुख स्थल…

1. काशी (वाराणसी), उत्तर प्रदेश:

शिव की नगरी काशी को मोक्ष की नगरी भी कहा जाता है।

यहां मणिकर्णिका घाट और पिशाचमोचन कुंड पर किया गया त्रिपिंडी श्राद्ध अत्यंत फलदायी माना जाता है।

मान्यता है कि यहां श्राद्ध करने से पितरों को शिवलोक की प्राप्ति होती है और मोक्ष का मार्ग सुगम हो जाता है।

अक्सर लोग गया जी जाने से पहले काशी में श्राद्ध करते हैं।

2. हर की पौड़ी, हरिद्वार, उत्तराखंड:

गंगा नदी के तट पर बसे हरिद्वार को मोक्षदायिनी नगरी कहा जाता है।

यहां कुशावर्त घाट और नारायण शिला पर किया गया श्राद्ध विशेष माना जाता है।

ऐसी आस्था है कि यहां श्राद्ध करने से प्रेतयोनि में भटक रही आत्माओं को भी शांति मिलती है और उन्हें मुक्ति प्राप्त होती है।

3. प्रयागराज, उत्तर प्रदेश:

त्रिवेणी संगम के लिए प्रसिद्ध प्रयागराज में तर्पण का विशेष महत्व है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीराम ने अपने पिता राजा दशरथ का तर्पण यहीं किया था।

माना जाता है कि यहां किए गए तर्पण से पितर जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

4. बद्रीनाथ, उत्तराखंड:

चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम के पास अलकनंदा नदी के तट पर स्थित ब्रह्मकपाल घाट एक प्रमुख श्राद्ध स्थल है।

यहां पिंडदान करने से पितरों को सद्गति (अच्छी गति) प्राप्त होती है।

इसकी महिमा इतनी है कि यहां किए गए श्राद्ध का फल अक्षय माना जाता है।

5. जगन्नाथ पुरी, ओडिशा:

पूर्वी भारत के चार धामों में शामिल पुरी धाम में भगवान जगन्नाथ का विश्वप्रसिद्ध मंदिर है।

यह स्थान पिंडदान के लिए भी उतना ही पवित्र माना जाता है।

पुरी में श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को मोक्ष मिलता है और उनके सभी कष्ट दूर होते हैं।

6. रामेश्वरम, तमिलनाडु:

रामेश्वरम को दक्षिण की काशी कहा जाता है।

कहा जाता है कि भगवान राम ने रावण वध के पाप से मुक्ति पाने के लिए यहां शिवलिंग की स्थापना की थी और अपने पूर्वजों का श्राद्ध भी किया था।

यहां समुद्र में स्नान करके श्राद्ध करने से पितरों को मुक्ति मिलती है।

7. ध्रुव घाट, मथुरा, उत्तर प्रदेश:

भगवान कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा भी पिंडदान के लिए अत्यंत फलदायी स्थान है।

यहां स्थित ध्रुव घाट पर पिंडदान की प्राचीन परंपरा है।

पौराणिक कथा के अनुसार, ध्रुव ने इसी घाट पर अपने पूर्वजों का पिंडदान किया था, जिसे स्वयं भगवान विष्णु ने स्वीकार किया था। यहां श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होते हैं।

अगर कहीं न जा सकें तो क्या करें?

अगर आप पितृ पक्ष के दौरान इनमें से किसी भी स्थान पर नहीं जा पा रहे हैं, तो भी निराश न हों। आप निम्नलिखित तरीके से घर पर ही श्राद्ध कर सकते हैं:

  • घर की दक्षिण दिशा: मान्यता है कि पितर दक्षिण दिशा से आते हैं। किसी योग्य ब्राह्मण या पुरोहित की मदद से घर की दक्षिण दिशा में बैठकर श्राद्ध कर्म किया जा सकता है।
  • किसी पवित्र नदी के तट पर: अपने नजदीकी किसी पवित्र नदी या तालाब के किनारे जाकर तर्पण और श्राद्ध कर्म किया जा सकता है। गंगा, यमुना, नर्मदा आदि नदियों का विशेष महत्व है।

Pitru Paksha 2025: तिथि और महत्व

इस साल पितृ पक्ष 7 सितंबर 2025 से शुरू होकर 21 सितंबर 2025 तक रहेगा।

भाद्रपद मास की पूर्णिमा के बाद आने वाले 15 दिनों में लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कर्मकांड करते हैं।

ऐसा माना जाता है कि इस अवधि में पितर धरती पर आते हैं और उन्हें किया गया दान-पुण्य सीधे प्राप्त होता है, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है और मोक्ष मार्ग प्रशस्त होता है।

श्राद्ध करते समय इन नियमों का रखें ध्यान

  • श्राद्ध हमेशा कुतुप मुहूर्त (लगभग दोपहर 11:40 से 12:30 बजे तक का समय) में करना सर्वोत्तम माना जाता है।
  • श्राद्ध कर्म पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करें।
  • श्राद्ध के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना अवश्यक है।
  • भोजन का एक अंश कौए, गाय, कुत्ते और चींटियों के लिए भी निकालें। ऐसा माना जाता है कि कौआ पितरों का प्रतिनिधित्व करता है।
  • पितृ पक्ष के दौरान सात्विक जीवन जिएं, मांस-मदिरा आदि से परहेज करें।
  • इन दिनों नए कार्यों या शुभ कार्यों की शुरुआत न करें।
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