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बेहद अनोखी है राधा रानी की जन्म कथा, 11 महीने तक इस वजह से नहीं खोली थी आंखें

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Radha Ashtami 2025: 31 अगस्त को पूरा देश राधाष्टमी का पावन पर्व मना रहा है।

इस दिन को राधा जन्मोत्सव के रूप में भी जाना जाता है।

मान्यता है कि द्वापर युग में भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को ही राधा रानी इस धरती पर प्रकट हुई थीं। लेकिन राधा जी का जन्म कोई साधारण कहानी नहीं है।

उनके जन्म, उनके बचपन और उनके ‘किशोरी’ नाम से जुड़ी कथाएं बेहद रोचक और चमत्कारी हैं।

आइए जानते हैं राधा रानी की पूरी जन्म कथा आसान भाषा में।

मां के गर्भ से नहीं, यमुना जी से मिली थीं राधा

राधा रानी का जन्म एक सामान्य बच्चे की तरह नहीं हुआ था। उन्होंने अपनी माता कीर्ति के गर्भ से जन्म नहीं लिया था।

कहानी यह है कि राधा जी के माता-पिता वृषभानु और कीर्ति देवी बरसाना के पास रहते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी।

कीर्ति देवी रोजाना यमुना नदी में स्नान करतीं और यमुना मैया से एक पुत्री का वरदान मांगती थीं।

एक दिन, भाद्रपद शुक्ल अष्टमी की सुबह, कीर्ति देवी ब्रह्म मुहूर्त में यमुना स्नान कर रही थीं। तभी उनकी नजर नदी में तैरते एक सुंदर कमल के फूल पर पड़ी।

उस कमल से एक अद्भुत तेज निकल रहा था। जिज्ञासावश जब कीर्ति देवी ने उस कमल के पास जाकर देखा तो हैरान रह गईं। कमल के ऊपर एक सुंदर सी कन्या बैठी थी, लेकिन उसकी आंखें बंद थीं।

कीर्ति देवी समझ गईं कि यह यमुना मैया की देन है। वह खुशी-खुशी उस बालिका को लेकर महल में वापस आईं और राजा वृषभानु को सारी बात बताई। पूरे राज्य में खुशी की लहर दौड़ गई।

11 महीने तक क्यों नहीं खोली थीं आंखें?

घर में उत्सव मनाया गया, लेकिन सभी को चिंता थी कि नन्ही राधा की आंखें बंद ही क्यों हैं?

क्या वह देख नहीं सकती? लेकिन असलियत कुछ और ही थी।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, राधा जी ने संकल्प लिया था कि वह अपनी आंखें तब तक नहीं खोलेंगी जब तक इस धरती पर आए अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के दर्शन नहीं कर लेतीं।

राधा जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को हुआ था, जबकि श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को, यानी लगभग साढ़े ग्यारह महीने बाद हुआ था।

जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तो एक साल बाद उनके जन्मोत्सव पर राजा वृषभानु और कीर्ति देवी बधाई देने के लिए अपनी नन्ही पुत्री राधा को लेकर नंदगांव पहुंचे।

कहते हैं कि वहां पहुंचकर राधा रानी घुटनों के बल चलती हुईं बालकृष्ण के पास पहुंचीं और जैसे ही उन्होंने कृष्ण को छुआ, उनकी आंखें पहली बार खुलीं।

उन्होंने इस दुनिया की पहली नजर अपने प्राणनाथ श्रीकृष्ण पर डाली। इस तरह पहली बार राधा-कृष्ण का मिलन हुआ।

राधाष्टमी पर ही क्यों होते हैं चरण दर्शन?

राधा जी का जन्म स्थान रावल गांव है, जो बरसाना से करीब 50 किलोमीटर दूर है। यहां यमुना किनारे करील के एक पेड़ के नीचे कमल पर उनका प्रकट होना माना जाता है।

आज यहां एक भव्य मंदिर है। रावल में राधा जी के बाल स्वरूप की पूजा होती है, जबकि बरसाने में उनके किशोर स्वरूप की।

मान्यता है कि राधा जी का जन्म ब्रह्म मुहूर्त में हुआ था, इसलिए राधाष्टमी के दिन मंदिरों में मंगला आरती के समय विशेष अभिषेक और श्रृंगार किया जाता है।

इस दिन ही विशेष रूप से उनका ऐसा श्रृंगार किया जाता है जिसमें भक्तों को उनके चरणों के दर्शन का सौभाग्य मिलता है।

साल में केवल इसी एक दिन यह दर्शन होते हैं, इसलिए इस पर्व का इतना महत्व है।

राधा जी को ‘किशोरी’ क्यों कहते हैं?

राधा रानी को ‘किशोरी जी’ या ‘किशोरी’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह आजीवन सोलह साल की किशोरी (युवती) जैसी ही दिखती रहीं।

उन पर बुढ़ापे का असर नहीं हुआ। इसके पीछे एक रोचक कथा है।

कहते हैं कि राधा देवी लक्ष्मी का स्वरूप थीं, जो प्राकृतिक रूप से सदैव युवा रहती हैं। लेकिन मनुष्य रूप में उन्हें यह बात याद नहीं थी।

एक बार की बात है, ऋषि अष्टावक्र (जिनके आठ अंग टेढ़े थे) बरसाना पहुंचे। लोग उनके टेढ़े-मेढ़े शरीर को देखकर हंसते थे, जिससे क्रोधित होकर ऋषि उन्हें श्राप दे देते थे।

जब ऋषि अष्टावक्र राधा रानी के सामने से गुजरे, तो राधा जी भी देखकर मुस्कुरा उठीं। ऋषि ने सोचा कि राधा भी उनका मजाक उड़ा रही हैं और उन्हें श्राप देने को तैयार हो गए।

तभी श्रीकृष्ण वहां प्रकट हुए और उनसे अनुरोध किया कि पहले राधा से मुस्कुराने का कारण पूछ लें।

राधा जी ने ऋषि से कहा, “हे ऋषिवर, मैं आपके शरीर के टेढ़ेपन पर नहीं हंस रही हूं। आपके भीतर मुझे परमात्मा का वास दिखाई दे रहा है। आपके अंदर का दिव्य ज्ञान और सत्य देखकर मेरा हृदय खुशी से हंस उठा।”

राधा की यह बात सुनकर ऋषि अष्टावक्र बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने राधा रानी को आशीर्वाद दिया, “तुम सदैव इसी तरह किशोरी बनी रहो, तुम पर कभी बुढ़ापा का असर नहीं होगा।”

इस वरदान के कारण राधा रानी हमेशा के लिए युवा हो गईं और तभी से उन्हें ‘किशोरी जी’ कहा जाने लगा।

राधाष्टमी का पर्व हमें प्रेम, भक्ति और निष्ठा की इस अद्भुत मिसाल को याद करने का अवसर देता है। जय हो राधे राधे।

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