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Raksha Bandhan पर एक साथ बने 5 योग, जानें राखी बांधने का शुभ मुहूर्त और भद्रा काल

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 12 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Raksha Bandhan Muhurat: हिंदू धर्म में रक्षाबंधन का त्यौहार बहुत महत्वपूर्ण है। ये दिन भाई-बहन के प्यार को समर्पित होता है। इस साल ये त्यौहार 19 अगस्त सोमवार को मनाया जाएगा।

इस साल रक्षाबंधन पर एक साथ 5 शुभ योग बन रहे हैं।

तो आइए जानते हैं इस साल राखी बांधने का शुभ मुहूर्त कब होगा और भद्रा की स्थिति क्या होगी।

भद्राकाल का समय

19 अगस्त को सोमवार सुबह 5.32 बजे से भद्राकाल आरंभ हो जाएगा जो दोपहर 1.31 बजे तक रहेगा।

इसके बाद बहने अपने भाइयों को राखी बांध सकती हैं।

राखी बांधने का शुभ मुहूर्त

राखी बांधने का सबसे शुभ मुहूर्त दोपहर 1.32 बजे से शाम 4.20 मिनट तक रहेगा।

उसके बाद शाम में भी बहनें अपने भाइयों को शाम 6.39 बजे से रात 8.52 बजे तक राखी बांध सकती हैं।

Raksha Bandhan Muhurat
Raksha Bandhan Muhurat

सावन सोमवार और पूर्णिमा का शुभ प्रभाव

19 अगस्त को सावन का आखिरी सोमवार होगा और इसी दिन सावन पूर्णिमा भी मनाई जाएगी। ऐसे में ये दिन बेहद शुभ है।

सावन पूर्णिमा की तिथि 19 अगस्त को सुबह 3.05 मिनट से होगी और रात 11.56 मिनट पर समाप्त होगी।

इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्‍मी की पूजा की जाती है।

रक्षाबंधन पर एक साथ बने 5 शुभ योग

इसके अलावा इस शुभ दिन 4 शुभ योग एक साथ मौजूद होंगे।

इस बार का रक्षाबंधन सर्वार्थ सिद्धि योग, शोभन योग, रवि योग और सौभाग्‍य योग के बीच में मनाया जाएगा।

इसके साथ ही इस दिन श्रवण नक्षत्र का भी अद्भुत संयोग बन रहा है।

Raksha Bandhan Muhurat
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पाताल में रहेगी भद्रा, नहीं होगा अशुभ प्रभाव

हालांकि इस दिन भद्रा का साया भी रहेगा लेकिन क्योंकि इस दिन भद्रा पाताल लोक में रहेंगी। इसलिए भद्रा का अशुभ प्रभाव धरती पर नहीं माना जाएगा।

कौन है भद्रा? (Who is Bhadra)

पुराणों के अनुसार, भद्रा न्याय के देवता शनि देव की बहन और सूर्यदेव की पुत्री है। कहा जाता है कि भद्रा का स्वभाव क्रोधी है।

भद्रा के स्वभाव को काबू में करने के लिए भगवान ब्रह्मा ने उन्हें पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया था।

भद्राकाल के दौरान शुभ और मांगलिक कार्य करना वर्जित है। भद्राकाल के समापन के बाद शुभ कार्य किए जा सकते हैं। इसलिए रक्षाबंधन पर राखी नहीं बांधी जाती है।

क्या है भद्रा वास और इसका प्रभाव

भद्रा का वास अलग-अलग लोकों में होने पर वह अलग-अलग प्रभाव डालती है।

हिंदू पंचांग के पांच प्रमुख अंग होते हैं, पहला तिथि, फिर नक्षत्र, वार, योग और करण। इसमें भी करण को तिथि का आधा भाग माना जाता है।

करण कुल 11 होते हैं। इसमें से 7 स्थिर चर होते हैं और 4 करण स्थिर होते हैं। 7वें कर करण का नाम ही वष्टि या भद्रा है।

भद्रा का विचार इन 4 स्थिति पर होता हैं

  • पहला स्वर्ग या पाताल में भद्रा का वास
  • प्रतिकूल काल वाली भद्रा
  • दिनार्द्ध के अंतर वाली भद्रा
  • भद्रा का पुच्छ काल

भद्रा के शुभ-अशुभ परिणाम का पता लगाने के लिए इन सभी का विचार किया जाता है।

Raksha Bandhan Muhurat
Raksha Bandhan Muhurat

भद्रा का वास कब कहां होगा इसका पता चंद्रमा के गोचर से चलता है।

जब भद्राकाल के दौरान चंद्रमा मेष, वृषभ, मिथुन और वृश्चिक राशि में होते हैं तो उस समय भद्रा का वास स्वर्ग में माना जाता है।

वहीं, जिस समय चंद्रमा कन्या, तुला, धनु और मकर राशियों में हो तो भद्रा पाताल में वास करती है।

जिस समय चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि में होते हैं तो उस समय भद्रा का वास मृत्यु लोक यानी धरती पर होता है।

भद्रा जिस लोक में होती है वहां पर ही अशुभ परिणाम देती हैं। धरती पर भद्रा का होने दोषकारक माना गया है।

जबकि भद्रा के स्वर्ग और पाताल में होने पर यह शुभ रहती है।

इसलिए भद्राकाल का समय जब भी चंद्रमा मेष, वृष, मिथुन, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु और मकर राशि में हो तो भद्रा स्वर्ग या पाताल में रहेगी और ऐसे में मांगलिक कार्यों करना शुभ है।

साथ ही भद्रा पुच्छ में भी शुभ कार्य किए जा सकते हैं। जो अलग-अलग तिथियों में अलग तरह से निर्धारित किए जाते हैं।

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