3 Ekadashi in December: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष स्थान है।
दिसंबर 2025 का महीना भक्तों के लिए एक अद्भुत आध्यात्मिक संयोग लेकर आ रहा है।
इस माह में एक नहीं, बल्कि तीन एकादशी व्रत पड़ रहे हैं।
यह दुर्लभ स्थिति ‘खरमास’ के कारण बन रही है।
आइए, जानते हैं इस संयोग के पीछे का कारण, सभी तीन एकादशी की तिथियां और उनके महत्व।
खरमास क्या है और यह संयोग कैसे बन रहा है?
खरमास एक विशेष अवधि है जो तब शुरू होती है जब सूर्य देव गुरु बृहस्पति की राशि धनु या मीन में प्रवेश करते हैं।
इस वर्ष यह अवधि 16 दिसंबर से शुरू हो रही है।
खरमास लगभग 30 दिनों तक रहता है और इस दौरान शुभ मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है।
पंचांग के अनुसार, इसी खगोलीय स्थिति के कारण दिसंबर माह में तीन एकादशी तिथियां आने का यह दुर्लभ संयोग बना है।
तीनों एकादशी की तिथियां और उनका महत्व
मोक्षदा एकादशी (1 दिसंबर 2025, सोमवार):
यह दिसंबर की पहली एकादशी मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष में आती है। इस व्रत का नाम ‘मोक्षदा’ यानी ‘मोक्ष देने वाली’ है।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की आराधना करने से व्यक्ति के सभी पापों से मुक्ति मिलती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
यह व्रत पितरों की शांति के लिए भी अत्यंत फलदायी माना गया है।
सफला एकादशी (15 दिसंबर 2025, सोमवार):
दिसंबर की दूसरी एकादशी पौष मास के कृष्ण पक्ष में पड़ती है। ‘सफला’ का अर्थ है ‘सफलता’।
इस व्रत को करने से जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के द्वार खुलते हैं।
यह व्रत निराशा और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने में सहायक माना जाता है।
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से भक्त के सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं।
पुत्रदा एकादशी (30 दिसंबर 2025, मंगलवार):
दिसंबर की तीसरी और अंतिम एकादशी पौष मास के शुक्ल पक्ष में आती है।
जैसा कि नाम से स्पष्ट है, यह व्रत संतान प्राप्ति और उनके कल्याण के लिए रखा जाता है।
संतान की इच्छा रखने वाले दंपत्तियों के लिए यह व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण है।
साथ ही, इससे घर में धन-वैभव और सुख-शांति भी बनी रहती है।
एकादशी व्रत का सामान्य महत्व
हिंदू शास्त्रों में एकादशी तिथि को भगवान विष्णु की अत्यंत प्रिय तिथि माना गया है।
यह व्रत पापों का नाश करके भक्ति भाव को बढ़ाता है और मन को पवित्र करता है।
पुराणों के अनुसार, इस व्रत का फल हजारों यज्ञों के समान मिलता है।
एकादशी की रात जागरण करके भगवान का स्मरण और कीर्तन करने का विशेष विधान है।
ऐसा करने से दरिद्रता व कष्टों से मुक्ति मिलती है और आत्मा को शांति प्राप्त होती है।
ध्यान रखें: उपरोक्त जानकारी धार्मिक मान्यताओं और पंचांग के आधार पर है। किसी भी व्रत या अनुष्ठान को करने से पहले किसी विद्वान पंडित या जानकार से सही विधि अवश्य जान लें।


