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रतलाम के महालक्ष्मी मंदिर में भक्तों के पैसों और गहनों से होती है सजावट, 300 साल पहले शुरू हुई थी परंपरा

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Ratlam Mahalaxmi Temple: दीपावली का त्योहार समृद्धि और धन की देवी महालक्ष्मी की आराधना का पर्व है।

लेकिन मध्य प्रदेश के रतलाम शहर में स्थित श्री महालक्ष्मी मंदिर में इसकी अभिव्यक्ति एकदम अद्भुत और अनूठे अंदाज में होती है।

यहां मां लक्ष्मी का मंदिर फूलों से नहीं, बल्कि भक्तों द्वारा चढ़ाए गए असली हीरे-जवाहरात, आभूषण और करोड़ों रुपये के नोटों से सजाया जाता है।

इस साल 2 करोड़ रुपये की सजावट

इस साल करीब 2 करोड़ रुपये से अधिक की नकदी और गहनों से मंदिर का श्रृंगार किया गया है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं।

मान्यता है कि इस सजावट में जिस भक्त का धन इस्तेमाल होता है, उसके घर में सुख-समृद्धि का वास बना रहता है।

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300 साल पुरानी है यह अनोखी परंपरा, राजा करते थे शुरुआत

इस अद्वितीय परंपरा की शुरुआत लगभग 300 वर्ष पुरानी बताई जाती है।

मंदिर के पुजारी अश्विनी जी बताते हैं कि रतलाम रियासत के संस्थापक महाराजा रतन सिंह राठौर ने शहर बसाने के बाद यहां दीपावली धूमधाम से मनाने की शुरुआत की।

राजा अपनी वैभवशाली संपदा, निरोगी काया और प्रजा की खुशहाली की कामना लेकर दीपावली के पांच दिनों तक शाही खजाने के सोने-चांदी के आभूषण मां लक्ष्मी के श्रृंगार के लिए चढ़ाते थे।

धीरे-धीरे यह परंपरा आम जनता तक पहुंच गई और भक्तगण भी मंदिर की सजावट के लिए अपना चढ़ावा लाने लगे।

समय के साथ यह परंपरा और भी भव्य होती गई और आज यह मंदिर देश भर में अपनी इसी अनूठी सजावट के लिए प्रसिद्ध है।

नोटों से बनते हैं वंदनवार

मंदिर की सजावट दीपावली से एक सप्ताह पहले ही शुरू हो जाती है।

शरद पूर्णिमा से ही भक्त नकदी और आभूषण चढ़ाना शुरू कर देते हैं।

मंदिर की हर लटकन और दीवार पर 1 रुपए से लेकर 500 रुपए तक के नए नोट सजाए जाते हैं।

इन नोटों से सुंदर वंदनवार (पर्दे) बनाए जाते हैं।

तिजोरियां होती हैं रखी

मां लक्ष्मी की मूर्ति का आकर्षक श्रृंगार आभूषणों से किया जाता है और पूरा गर्भगृह एक चमचमाते हुए खजाने में तब्दील हो जाता है।

कई भक्त तो अपनी निजी तिजोरियां तक मंदिर में लाकर रख देते हैं ताकि उनका धन मां के श्रृंगार में लग सके।

इस सजावट को ‘कुबेर का खजाना’ कहना गलत नहीं होगा।

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सुरक्षा का खास इंतजाम

इतनी बड़ी राशि और कीमती सामान की सजावट में सुरक्षा और पारदर्शिता सबसे महत्वपूर्ण पहलू है।

मंदिर परिसर में बंदूकधारी गार्ड्स और सीसीटीवी कैमरों की पुख्ता व्यवस्था की गई है।

मंदिर के पीछे ही माणक चौक पुलिस थाना होने से सुरक्षा को और बल मिलता है।

एक रुपया भी नहीं होता गड़बड़

सबसे खास बात यह है कि यहां एक भी रुपये का हेर-फेर नहीं होता।

भक्तों द्वारा दी गई हर राशि और हर आभूषण की डिजिटल एंट्री की जाती है।

नोट गिनने की मशीन का इस्तेमाल किया जाता है।

प्रत्येक दानदाता का नाम, पता, मोबाइल नंबर और दी गई वस्तु का ब्यौरा ऑनलाइन दर्ज किया जाता है और उन्हें एक टोकन दिया जाता है, जिस पर मंदिर की मोहर लगी होती है।

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पांच दिन बाद वापस मिल जाता है भक्तों का धन

यह परंपरा दान की नहीं, बल्कि श्रद्धा और श्रृंगार की है।

दीपोत्सव के पांच दिनों (धनतेरस से भैया दूज तक) के बाद, मंदिर समिति भक्तों को उनके टोकन दिखाकर उनकी संपूर्ण धनराशि और आभूषण वापस लौटा देती है

इसे ‘प्रसादी’ के रूप में देखा जाता है।

इस तरह, भक्तों की श्रद्धा भी पूरी हो जाती है और उनकी संपत्ति भी सुरक्षित वापस मिल जाती है। मंदिर के इतिहास में आज तक यहां से एक रुपया भी इधर-उधर नहीं हुआ है।

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आस्था और विश्वास का अद्भुत संगम

रतलाम का महालक्ष्मी मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था, विश्वास और सामुदायिक सहयोग का जीवंत उदाहरण है।

यह परंपरा दिखाती है कि कैसे एक पुरानी राजकीय प्रथा आज आम जनता की गहरी श्रद्धा में तब्दील हो गई है।

यह मंदिर उस विश्वास का प्रतीक है कि ईश्वर को चढ़ावा भौतिक नहीं, बल्कि श्रद्धा का भाव चाहिए।

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