Sharad Purnima 2025: आश्विन मास की पूर्णिमा का यह पावन दिन हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा और रास पूर्णिमा के नाम से विख्यात है।
इस साल यह पर्व 6 अक्टूबर, सोमवार को मनाया जाएगा।
मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट आ जाता है और अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है।
इसकी चांदनी में अमृत समान गुण आ जाते हैं।
यह त्योहार केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आयुर्वेद और विज्ञान से भी गहरा जुड़ाव रखता है।
कोजागरी पूर्णिमा: जिस रात मां लक्ष्मी पूछती हैं – “कौन जाग रहा है?”
“कोजागरी” शब्द की उत्पत्ति बंगाली भाषा के वाक्य “को जाग्रति?” से हुई है, जिसका हिंदी में अर्थ है – “कौन जाग रहा है?“
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस रात धन-संपदा की देवी मां लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर सवार होकर पूरी पृथ्वी का भ्रमण करती हैं।
वह इस बात की परीक्षा लेती हैं कि कौन व्यक्ति अपने कर्तव्यों के प्रति सजग है और कौन इस पावन रात में जागरण कर रहा है।
ऐसा विश्वास है कि जो भक्त इस रात जागकर मां लक्ष्मी की पूजा-आराधना करते हैं, उन पर मां की विशेष कृपा बरसती है।
वह उन्हें धन, वैभव, यश और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
इसीलिए इस रात घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाकर मां लक्ष्मी का स्वागत किया जाता है।
समुद्र मंथन से निकलीं थीं मां लक्ष्मी, जन्मदिन पर करें विशेष पूजा
शरद पूर्णिमा का सबसे बड़ा धार्मिक महत्व मां लक्ष्मी के अवतरण से जुड़ा है।
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, जब देवों और दानवों ने अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया, तो उसी प्रक्रिया से शरद पूर्णिमा के दिन ही मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं।
इसीलिए इस दिन को मां लक्ष्मी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
यही कारण है कि शरद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व माना गया है।
इस दिन विधि-विधान से पूजा करने और व्रत रखने से घर-परिवार में सुख-शांति और आर्थिक समृद्धि आती है।
कई क्षेत्रों में कुंवारी कन्याएं इस दिन सूर्य और चंद्र देव की पूजा करके अपने लिए मनचाहा वर मांगती हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने किया था महारास
इसके अलावा, इसी रात को भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में राधा और गोपियों के साथ महारास रचाया था।
माना जाता है कि इस रासलीला में श्रीकृष्ण ने प्रत्येक गोपी के साथ अलग-अलग रूप धारण कर नृत्य किया।
यह लीला प्रेम और भक्ति के परम संगम का प्रतीक है, इसलिए इस दिन को रास पूर्णिमा भी कहते हैं।
चांदनी रात में रखी खीर बन जाती है ‘अमृत’
शरद पूर्णिमा की परंपराओं में सबसे अनोखी और प्रसिद्ध परंपरा है खुले आसमान के नीचे खीर रखने की।
इसके पीछे एक गहरा आयुर्वेदिक और वैज्ञानिक कारण छिपा है।
माना जाता है कि इस रात चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है और उसकी किरणें अपनी पूर्ण 16 कलाओं के साथ चमकती हैं।
इन किरणों में विशेष प्रकार की ऊर्जा और अमृत तुल्य गुण होते हैं।
आंखों की रोशनी होती है तेज
एक और मान्यता है कि इस रात चांद को निहारने या सुई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से आंखों की रोशनी तेज होती है।
शरद पूर्णिमा वह पावन अवसर है जो हमें प्रकृति, विज्ञान और आस्था के अद्भुत संगम से जोड़ता है।
यह दिन केवल मां लक्ष्मी की कृपा पाने तक सीमित नहीं है, बल्कि स्वस्थ और निरोगी जीवन का मार्ग भी दिखाता है।
इस बार 6 अक्टूबर, सोमवार की रात को जागरण करें, मां लक्ष्मी का आशीर्वाद लें और चंद्रमा की इस अमृतमयी चांदनी का लाभ उठाएं।