Radha Janam Katha: 11 सितंबर को देश भर में राधा अष्टमी यानी राधा जन्मोत्सव मनाया जा रहा है।
द्वापरयुग में इसी दिन राधा जी धरती पर अवतरित हुई थी।
लेकिन उनकी जन्म की कथा बेहद अनोखी है। जो हम आपको बताने जा रहे हैं।
रावल गांव में हुई थीं अवतरित
राधाजी का जन्म बरसाना से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रावल गांव में हुआ था।
मान्यता है कि राधाजी यहां यमुना किनारे करील के पेड़ के नीचे कमल के फूल पर अवतरित (प्रकट) हुईं थीं।
रावल में राधाजी के बाल स्वरूप की पूजा होती है तो बरसाने में किशोर स्वरूप की।
रावल में राधाजी को लाडली लाल कहा गया है, तो बरसाने में किशोरी जी।
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मां के गर्भ से नहीं जन्मी थीं राधा रानी
राधा रानी ने माता कीर्ति के गर्भ से जन्म नहीं लिया।
मान्यता है कि राधा रानी यमुना में कमल पुष्प पर मिलीं थीं।
दरअसल द्वापर में कीर्ति जी रोजाना यमुना नदी में स्नान करती थीं।
उनकी कोई संतान नहीं थी ऐसे में वो यमुना जी से संतान प्राप्ति की प्रार्थना करती थीं।
कमल के फूल पर मिली थीं राधा रानी
ऐसे ही एक दिन कीर्ति जी भाद्र महीने में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को ब्रह्म मुहूर्त में यमुना नदीं में स्नान कर रहीं थी।
तभी उनको नदी में एक कमल पुष्प दिखाई दिया। जिसमें से तेज रोशनी निकल रही थी।
जब कीर्ति जी ने कमल के पास जाकर देखा तो उसमें एक कन्या थी जिसकी दोनों आंख बंद थी।
इसी स्थान पर आज मंदिर का गर्भगृह बना दिया गया है।
कन्या को लेकर कीर्ति जी अपने महल ले आईं और इसकी जानकारी अपने पति वृषभानु जी को दी।
जिसके बाद पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ गई और लोग उत्सव मनाने लगे।
उत्सव के बाद जब सभी ने देखा कि राधा रानी की आंख बंद हैं तो सभी चिंतित हो गए।
श्री कृष्ण के इंतजार में 11 महीने तक नहीं खोली आंखे
कथाओं में वर्णित है कि जब तक राधा जी ने श्री कृष्ण के दर्शन नहीं कर लिए तब तक उन्होंने अपनी आंखें नही खोली थी।
राधाजी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को हुआ था जबकि श्रीकृष्ण का जन्म साढ़े 11 महीने बाद भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को।
1 साल बाद श्री राधा के माता-पिता वृषभानु और कीर्ति देवी श्री कृष्ण के जन्म उत्सव पर बधाई देने के लिए 1 साल की राधा रानी को लेकर गोकुल पहुंचे।
जब बधाई लेकर वृषभान अपने गोद में राधारानी को लेकर यहां गए तो राधारानी घुटने के बल चलते हुए बालकृष्ण के पास पहुंचीं।
वहां बैठते ही पहली बार राधारानी के नेत्र खुले और उन्होंने पहला दर्शन बालकृष्ण का किया।
इस तरह पहली बार राधा-कृष्ण का मिलन हुआ था।
राधाष्टमी पर ही होते हैं राधाजी के चरण दर्शन
रावल में राधाष्टमी के दिन ही साल में एक बार राधाजी के चरण दर्शन होते हैं।
मान्यता है कि राधाजी का जन्म ब्रह्म मुहूर्त में हुआ था।
इसलिए राधाकृष्ण मंदिरों में मंगला आरती के समय अभिषेक, श्रृंगार और दर्शन होते हैं।
राधाष्टमी पर ही राधाजी का ऐसा श्रंगार किया जाता है, जिसमें उनके चरण दिखाई देते हैं।
राधा जी को किशोरी क्यों कहते हैं
राधा रानी को किशोरी कहा जाता है मतलब वो जब तक जीवित रही 16 साल की लड़की के जैसी ही रही।
इस कथा का जिक्र भी पुराणों में है…
राधारानी देवी लक्ष्मी का रूप थीं, जो आजीवन किशोरावस्था में ही रहती, लेकिन मनुष्य रूप में राधारानी को यह याद नहीं था,
इसलिए श्रीकृष्ण ने ऋषि अष्टावक्र के साथ मिलकर ऐसी लीला रचाई, कि ऋषि अष्टावक्र ने राधारानी को आजीवन किशोरी रहने का वरदान दिया।
ऋषि अष्टावक्र ने दिया राधा जी को वरदान
ऋषि अष्टावक्र 8 अंगों से टेढ़े थे, ऐसे में वो जहां भी जाते लोग उनके टेढ़े अंगों को देखकर हंसने लगते थे।
इस अपमान से क्रोधित होकर ऋषि अष्टावक्र लोगों को श्राप दे दिया करते थे।
एक बार ऋषि अष्टावक्र बरसाना गए थे, जहां वो राधारानी से मिले।
राधारानी भी ऋषि अष्टावक्र को देखकर मुस्कुराने लगीं, तब ऋषि अष्टावक्र ने क्रोध में राधारानी को भी श्राप देना चाहा।
लेकिन श्रीकृष्ण ने ऋषि अष्टावक्र से अनुरोध किया कि एक बार राधारानी से मुस्कुराने का कारण जाने।
तब राधाजी ने ऋषि अष्टावक्र से कहा कि वह उनके टेढ़े अंगों को देखकर नहीं हंसी बल्कि ऋषि के अंदर उन्हें परमात्मा के दर्शन हो रहे हैं।
वो परम ज्ञान और सत्य की अनुभूति के कारण आनंद से हंस रही थीं।
ऋषि अष्टावक्र राधा जी की इस बात से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने राधा जी को आजीवन किशोरी रहने का वरदान दिया।
इसलिए तभी से राधारानी को किशोरी जी भी कहा जाता है।
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