Skanda Sashti Vrat Katha: हिंदू धर्म में स्कंद षष्ठी व्रत का विशेष महत्व है।
यह व्रत हर महीने शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है।
स्कंद पुराण के अनुसार, शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर ही शिव पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ था।
इसलिए इस दिन विशेष तौर पर भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है।
भगवान कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति माना जाता है।
इस दिन स्कंद षष्ठी व्रत कथा का पाठ करना बहुत ही शुभ माना जाता है।
आइए जानते हैं स्कंद षष्टी व्रत का महत्व और तिथि…
स्कंद षष्ठी व्रत 2025 तिथि
पंचांग के अनुसार, पौष माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि का आरंभ 4 जनवरी को रात 10 बजे होगा
और समापन 5 जनवरी को रात 08.15 मिनट पर होगा।
इसलिए उदया तिथि के अनुसार, इस साल पहला स्कंद षष्ठी का व्रत 5 जनवरी 2025 को रखा जाएगा।
स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, स्कंद षष्ठी का व्रत संतान की प्राप्ति और उसकी दीर्घायु के लिए रखा जाता है।
स्कंद षष्ठी का व्रत कर विधि पूर्वक पूजा करने से सुयोग्य संतान की प्राप्ति होती है।
अगर पहले से संतान है तो उसके जीवन के ऊपर मंडरा रहा हर तरह का खतरा टल जाता है।
साथ ही कहते हैं कि स्कंद माता कार्तिकेय के पूजन से जितनी प्रसन्न होती हैं, उतनी वे स्वयं के पूजन से भी नहीं होती हैं।
देव सेनापति कुमार कार्तिकेय की पूजा सबसे ज्यादा दक्षिण भारत में की जाती है। उनका वाहन मोर है।
स्कंद षष्टी व्रत पूजा-विधि
स्कंद षष्ठी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और फिर स्कंद भगवान का ध्यान कर व्रत का संकल्प लें।
इसके बाद पूजा घर में भगवान कार्तिकेय की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। साथ में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा भी जरूर करें।
पूजा के दौरान भगवान कार्तिकेय को पुष्प, चंदन, धूप, दीप नैवेद्य आदि अर्पित करें और फल, मिठाई का भोग लगाएं।
भगवान कार्तिकेय को मोर पंख भी अर्पित कर सकते हैं, क्योंकि मोर पंख उन्हें प्रिय माना गया है।
इससे आपको स्कंद देवता की विशेष कृपा की प्राप्ति हो सकती है।
स्कंद षष्ठी व्रत कथा- शिव पुत्र कार्तिकेय का जन्म और तारकासुर का वध
स्कंद पुराण के अनुसार, असुर तारकासुर ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की और वरदान प्राप्त किया कि उसे सिर्फ शिव पुत्र ही हरा सके।
शिव जी ने यह वरदान दे तो दिया, लेकिन कुछ समय बाद ही माता सती ने आत्मदाह कर लिया था, जिससे शिव का कोई पुत्र न हो सका।
माता सती के जाने के बाद शिव जी ने संसार से दूरी बना ली और गहरे तप में लीन हो गए।
इस बीच तारकासुर ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया। जिसके बाद देवता ब्रह्मा जी के पास मदद के लिए पहुंचे।
ब्रह्मा जी ने कहा कि तारकासुर का अंत केवल शिव-पुत्र के हाथों ही संभव है।
ऐसे में देवताओं ने शिव को वैराग्य से बाहर लाने के लिए कामदेव को भेजा।
शिव ने किया कामदेव को भस्म
कामदेव ने शिव पर प्रेम के बाण चलाए, जिससे शिव की तपस्या भंग हो गई।
इससे शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और अपनी तीसरी आंख खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया।
कामदेव की पत्नी रति पति का वियोग न सह पाई और शिव से कामदेव को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की। जो शिव ने मान ली और कामदेव को जीवित कर दिया।
तपस्या भंग होने के बाद ही शिव जी को माता पार्वती की तपस्या के बारे में पता चला और फिर शिव-पार्वती का विवाह हुआ।
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ऐसे हुआ कार्तिकेय का जन्म
शिव जी ने अपनी तीसरी आंख से 6 दिव्य चिंगारियां उत्पन्न कीं, जिन्हें अग्निदेव ने सरवन नदी में प्रवाहित कर दिया।
इन चिंगारियों से 6 बालकों का जन्म हुआ, जिन्हें माता पार्वती ने अपनी शक्तियों से एक कर दिया और इस तरह भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ।
कार्तिकेय ने किया तारकासुर का वध
भगवान कार्तिकेय 6 मुख और 12 भुजाओं वाले दिव्य योद्धा थे।
उन्होंने युद्ध-कौशल में महारत हासिल की और फिर तारकासुर से भीषण युद्ध कर उसका वध किया।
जिससे संसार को तारकासुर के प्रकोप से मुक्ति मिली।
तारकासुर के शरीर से उत्पन्न मोर बना वाहन
तारकासुर के मरने के बाद उसके शरीर से एक मोर उत्पन्न हुआ, जिसे भगवान कार्तिकेय ने अपना वाहन बना लिया।
देवताओं ने कार्तिकेय को उनकी वीरता और पराक्रम के लिए देवसेना का सेनापति घोषित किया।