Toll Tax Rules: भारत में बने टोल प्लाजा से अब तक 2 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई हो चुकी है।
टोल प्लाजा से होने वाली कमाई के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है और दिल्ली-NCR सबसे कम है।
वहीं अब ज्यादातर लोग टोल का भुगतान FASTag से कर रहे हैं।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले कुछ महीनों में 98% से ज्यादा टोल पेमेंट फास्टैग के जरिए हुए हैं।
लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि हाईवे पर टोल दरें कैसे तय होती हैं?
भारत में टोल टैक्स क्यों लिया जाता है और इसका उद्देश्य क्या है?
रोड टैक्स के बाद हमें टोल टैक्स क्यों देना पड़ता है?
आइए जानते हैं इन सवालों के जवाब और GNSS सिस्टम के बारे में-
UP टोल राजस्व में सबसे आगे, दिल्ली-NCR सबसे कम
भारत में नेशनल हाईवे पर टोल प्लाजा बने है, जिनसे कुल 2.4 लाख करोड़ रुपये का राजस्व वसूला जा चुका है।
यह सरकारी आंकड़ा उन 758 टोल प्लाजा से जुटाया गया है, जिनका पूरा डेटा उपलब्ध था।
सरकार ने ये भी बताया कि पिछले तीन सालों में 14 टोल प्लाजा बंद हुए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक टोल राजस्व के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है, जहां से 32 हजार 510 करोड़ रुपये वसूले गए हैं।
इसके बाद राजस्थान और महाराष्ट्र क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं।
दिल्ली-चेन्नई नेशनल हाईवे NH48 पर 24 हजार 490 करोड़ रुपये का टोल वसूला गया है।
वहीं, दिल्ली-NCR क्षेत्र से सबसे कम 263 करोड़ रुपये का राजस्व आया है।
टोल प्लाजा पर लगभग 98% भुगतान FASTag के जरिए हो रहा है।
बता दें FASTag एक इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम है, जो गाड़ियों को बिना रुके टोल चुकाने की सुविधा देता है।
इसकी वजह से समय, पैसा और ईंधन की बचत होती है।
टोल टैक्स का उद्देश्य और हाईवे पर टोल दरें
हाईवे या एक्सप्रेसवे को बनाने की लागत लंबी-चौड़ी होती है।
इन सड़कों की लागत और मेंटिनेंस निकालने के लिए सरकार टोल टैक्स के ज़रिये जनता से मदद लेती है।
टोल टैक्स कुछ खास सड़कों पर ही लगता है, जब आप इसपर सफर करते हैं, वहीं रोड टैक्स राज्य सरकारें वसूलती हैं।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने बताया कि टोल टैक्स का उद्देश्य बेहतर सड़कों का निर्माण और रखरखाव है।
यह यात्रा को सुगम और सामान की ढुलाई को सस्ता बनाता है।
टोल दरों में हर साल महंगाई के अनुसार बदलाव किया जाता है।
हाईवे पर टोल टैक्स तय करते समय कई बातों का ध्यान रखना होता है।
जैसे समय हाईवे की लंबाई, लेन की संख्या, किनारों की पक्काई और पुलों या सुरंगों की उपस्थिति का ध्यान रखा जाता है।
बड़ी गाड़ियों पर अधिक और छोटी गाड़ियों पर कम टोल दरें लागू होती हैं।
अभी टोल ‘NH Fee Rules’ नाम के नियमों के हिसाब से वसूला जाता है।
यह नियम तय करते हैं कि कितना टोल लिया जाएगा और कैसे लिया जाएगा।
बता दें कि रोड टैक्स और टोल टैक्स दोनों अलग-अलग होते हैं।
गाड़ी खरीदते समय आप रोड टैक्स देते हैं, जो कि सभी सड़कों के इस्तेमाल के लिए होता है।
लेकिन, टोल टैक्स किसी खास सड़क या हाईवे के इस्तेमाल के लिए लिया जाता है।
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क्या GNSS भविष्य में खत्म कर देगा टोल प्लाजा?
सरकार सैटेलाइट सिस्टम के जरिए टोल वसूलने की तैयारी कर रही है।
सरकार ‘इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन’ (ETC) नाम की एक नई तकनीक ला रही है।
इससे टोल प्लाजा पर बिना रुके ही टोल का भुगतान किया जा सकेगा।
यह फास्टैग जैसा ही है, लेकिन इसमें गाड़ी एक सेंकड के लिए भी नहीं रोकनी पड़ेगी।
इसे GNSS (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) भी कहा जाता है।
अभी यह सिस्टम कहीं भी चालू नहीं है, लेकिन सरकार इस पर काम कर रही है।
यह सिस्टम सस्ता होगा और इससे टोल प्लाजा पर काम करने वाले लोगों की जरूरत नहीं पड़ेगी।
कंसेशन एग्रीमेंट: सरकार और कंपनी का समझौता
जब सरकार किसी प्राइवेट कंपनी को सड़क बनाने का काम देती है, तो इसे PPP मॉडल कहते हैं।
इस PPP मॉडल से टोल टैक्स के ज़रिए सरकार को काफी पैसे मिलते हैं।
जब सरकार किसी कंपनी को हाईवे बनाने का काम देती है, तो उनके बीच एक समझौता होता है।
सरकार और कंपनी दोनों के बीच हुआ यह समझौता ‘कंसेशन एग्रीमेंट’ कहलाता है।
इस समझौते में यह तय होता है कि कंपनी कितने समय तक और कितना टोल वसूल कर सकती है।
इसमें टोल टैक्स शुरू करने और खत्म करने की समय सीमा तय होती है।
जब कोई नया हाईवे, पुल या सुरंग बनकर तैयार हो जाती है, तो 45 दिन के अंदर वहां टोल वसूलना शुरू हो जाता है।
वहीं सरकार ने अगर सड़क बनाई है, तो टोल कितने समय तक लिया जाएगा यह सरकार के नियमों के हिसाब से तय होता है।
अगर सड़क किसी प्राइवेट कंपनी ने बनाई है, तो टोल वसूलने का समय सरकार और कंपनी के बीच हुए समझौते में तय होता है।
सरकार ने बताया कि इन समझौतों की जानकारी कोई भी व्यक्ति ‘सूचना का अधिकार’ (RTI) के जरिए मांग सकता है।
दो टोल प्लाजा के बीच 60 किलोमीटर होनी चाहिए दूरी
‘क्लोज्ड यूजर फी कलेक्शन सिस्टम’ एक ऐसा सिस्टम है जिसमें आप जहां से हाईवे पर चढ़ते हैं और जहां से उतरते हैं, वहां टोल देना होता है।
इस सिस्टम में टोल प्लाजा कहीं भी बनाए जा सकते हैं।
वहीं जब कोई नया हाईवे बनता है, तो उसके आसपास के इलाके में भी सुधार होता है।
इसे पूरे इलाके को प्रोजेक्ट इन्फ्लुएंस लेंथ कहते हैं, जिसके तहत नई दुकानें खुलती हैं या नए घर बनते हैं।
NHAI के नियमों के अनुसार दो टोल प्लाजा के बीच कम से कम 60 किलोमीटर की दूरी होनी चाहिए।
यह नियम नेशनल हाईवे फी रूल्स 2008 के तहत लागू होता है।
कुछ स्थितियों में दो टोल प्लाजा के बीच की दूरी 60 किमी से कम हो सकती है।
ऐसा तब होता है अगर किसी हाईवे पर कोई बड़ा पुल, बाईपास या सुरंग होता है।
ऐसे में उसके लिए अलग से टोल प्लाजा बनाया जा सकता है, फिर भले ही वह दूसरे टोल प्लाजा से 60 किमी से कम दूरी पर ही क्यों न हो।
सरकार से मिली जानकारी के मुताबाकि उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में चौकड़ी और मड़वा नगर नाम के दो टोल प्लाजा हैं।
इनके बीच की दूरी लगभग 35 किलोमीटर है और यह दूरी नियमों के मुताबिक है।
ऐसा इसलिए क्योंकि दोनों टोल प्लाजा अलग-अलग प्रोजेक्ट के लिए बनाए गए हैं।
NHAI के नियमों के तहत चौकड़ी टोल प्लाजा 55 किमी लंबे इलाके के लिए टोल वसूल करता है।
जबकि, मड़वा नगर टोल प्लाजा 62.86 किमी लंबे इलाके के लिए टोल वसूल करता है।
भारत की चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया से तुलना
चीन भी भारत की तरह एक विकासशील देश है और यहां भी हाईवे पर टोल टैक्स वसूल किया जाता है।
2010 से 2019 तक चीन सरकार को टोल से अच्छी कमाई मिली, जो साल 2020 में घट गई।
गुआंग्डोंग प्रांत में सबसे ज्यादा सरकार की कमाई होती है क्योंकि वहां सबसे ज्यादा एक्सप्रेसवे हैं।
चीन में कोई एक कंपनी पूरे टोल रोड सिस्टम को कंट्रोल नहीं करती, बल्कि ज्यादातर टोल रोड स्थानीय सरकार की कंपनियों के पास ही होते हैं।
यह जानकारी चीन के परिवहन मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों पर आधारित है।
वहीं जापान में टोल रोड चलाने का तरीका बड़ा दिलचस्प है।
यह सरकार और प्राइवेट कंपनियों के बीच एक साझेदारी की तरह है।
सरकार की एक एजेंसी है, जिसके पास सारी टोल रोड हैं।
यह एजेंसी पुराने कर्ज चुकाती है और प्राइवेट कंपनियों को टोल रोड किराये पर देती है।
वहीं प्राइवेट कंपनियां टोल वसूलती हैं, टोल रोड चलाती हैं और नई सड़कें बनाती हैं।
वहीं जब ये कंपनियां नई सड़कें बनाती हैं, तो वो सड़कें सरकार की एजेंसी की हो जाती हैं।
बात ऑस्ट्रेलिया की करें तो यहां सभी टोल इलेक्ट्रॉनिक हैं।
टोल चुकाने के लिए LinkT या E-Toll जैसे टोल पास का इस्तेमाल करना होता है।
अगर किसी के पास टोल नहीं होता है, तो गाड़ी के मालिक पर जुर्माना लगाया जाता है।
चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया की तरह भारत भी धीरे-धीरे इलेक्ट्रॉनिक और सैटेलाइट आधारित टोल सिस्टम की ओर बढ़ रहा है।
भारत में टोल प्लाजा केवल कमाई का साधन नहीं हैं, बल्कि आधुनिक बुनियादी ढांचे का हिस्सा बन चुके हैं।