Tripur Sundari Temple: नवरात्रि के पावन अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने त्रिपुरा के उदयपुर स्थित ऐतिहासिक माता त्रिपुर सुंदरी मंदिर के पुनर्विकसित स्वरूप का उद्घाटन किया।
51 शक्तिपीठों में शामिल यह मंदिर न सिर्फ आस्था का केंद्र है, बल्कि इसका इतिहास, वास्तुकला और आध्यात्मिक महत्व इसे देश के सबसे खास धार्मिक स्थलों में शुमार करता है।
आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी रोचक और महत्वपूर्ण बातें…
त्रिपुर सुंदरी मंदिर का इतिहास
स्थान: यह मंदिर त्रिपुरा राज्य के गोमती जिले के उदयपुर शहर में स्थित है।
ध्यान रहे, यह उदयपुर राजस्थान का नहीं, बल्कि त्रिपुरा का है, जिसे ‘पूर्व का लेक सिटी’ भी कहा जाता है।
निर्माण की कहानी:
इस मंदिर का निर्माण 1501 ईस्वी (लगभग 524 वर्ष पहले) में त्रिपुरा के महाराजा धन्य माणिक्य ने करवाया था।
किंवदंती है कि महाराजा धन्य माणिक्य को एक स्वप्न आया, जिसमें देवी ने उन्हें आदेश दिया कि उदयपुर के निकट एक पहाड़ी पर उनकी पूजा-अर्चना शुरू की जाए।
इस स्वप्न के बार-बार आने पर महाराजा ने वहाँ मां त्रिपुर सुंदरी की मूर्ति स्थापित करवाकर इस मंदिर का निर्माण कराया।
दिलचस्प बात यह है कि शुरुआत में इस मंदिर को भगवान विष्णु को समर्पित करने का विचार था, लेकिन देवी के आदेश के बाद इसे एक शक्तिपीठ के रूप में स्थापित किया गया।
क्यों है यह मंदिर इतना खास?
51 शक्तिपीठों में से एक
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, जहां-जहां देवी सती के शरीर के अंग या आभूषण पृथ्वी पर गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए।
त्रिपुर सुंदरी मंदिर वह स्थान है जहां माता सती का दायां पैर (दक्षिण चरण) गिरा था। इसीलिए इसे एक प्रमुख शक्तिपीठ का दर्जा प्राप्त है।
यहां देवी की पूजा त्रिपुर सुंदरी (बालाभैरवी) के रूप में और भैरव की पूजा त्रिपुरेश के रूप में होती है।
तंत्र साधना और श्री विद्या का प्रमुख केंद्र
यह मंदिर तांत्रिक साधना और श्री विद्या परंपरा का एक बहुत ही महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है।
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मां त्रिपुर सुंदरी: श्री विद्या में मां त्रिपुर सुंदरी को सर्वोच्च देवी माना गया है, जो तीनों लोकों (स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल) में सबसे सुंदर हैं। उन्हें ललिता, षोडशी और राजराजेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है।
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श्री यंत्र: मंदिर में देवी के चरणों के नीचे श्री यंत्र पत्थर पर अंकित है, जिसे ब्रह्मांड की समस्त ऊर्जाओं का प्रतीक माना जाता है। इस यंत्र की पूजा का विशेष महत्व है।
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कूर्म पीठ: जिस पहाड़ी पर मंदिर स्थित है, उसका आकार ऊपर से देखने पर कछुए (कूर्म) जैसा लगता है। इस वजह से इसे ‘कूर्म पीठ’ भी कहा जाता है। कछुआ स्थिरता और दीर्घायु का प्रतीक है।
वैष्णव और शाक्त परंपरा का अद्भुत संगम
एक अनोखी बात यह है कि यह एक शक्तिपीठ होने के बावजूद यहां भगवान विष्णु की पूजा शालग्राम शिला के रूप में की जाती है।
यह वैष्णव और शाक्त परंपराओं के सह-अस्तित्व का एक दुर्लभ और सुंदर उदाहरण है, जो भारतीय संस्कृति की ‘विविधता में एकता’ को दर्शाता है।
मंदिर की वास्तुकला और अनोखी विशेषताएं
- वास्तुशैली: मंदिर का निर्माण विशिष्ट बंगाली ‘एक-रत्न’ (Ek-ratna) शैली में हुआ है। इस शैली में मंदिर के शीर्ष पर एक मुख्य शिखर होता है।
- गर्भगृह: मंदिर का गर्भगृह चौकोर आकार का है और इसे एक पारंपरिक बंगाली झोपड़ी के डिजाइन से प्रेरित होकर बनाया गया है।
- दो मूर्तियां: गर्भगृह में देवी की दो काले पत्थर की प्रतिमाएं स्थापित हैं।
- बड़ी प्रतिमा (5 फीट ऊंची): यह मां त्रिपुर सुंदरी की है।
- छोटी प्रतिमा (2 फीट ऊंची): यह मां चंडी की है, जिन्हें प्यार से ‘छोटो-मा’ कहा जाता है। मान्यता है कि त्रिपुरा के राजा युद्ध या शिकार पर जाते समय इस छोटी मूर्ति को अपने साथ ले जाते थे।
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कल्याण सागर झील: मंदिर के पीछे सुंदर कल्याण सागर झील है, जिसमें अनेक कछुए रहते हैं। यह झील मंदिर के वातावरण में शांति और मनोरमता का संचार करती है।
पुनर्विकास: PRASAD योजना के तहत मंदिर का नया स्वरूप
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जिस पुनर्विकसित स्वरूप का उद्घाटन किया गया, वह केंद्र सरकार की ‘पिल्ग्रिमेज रिजुवनेशन एंड स्पिरिचुअल, ऑगमेंटेशन ड्राइव’ (PRASAD) योजना के तहत किया गया है।
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लागत: इस परियोजना पर लगभग 52 करोड़ रुपये से अधिक की लागत आई है।
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विकास कार्य: इसमें मंदिर परिसर का व्यापक उन्नयन शामिल है, जैसे:
- संगमरमर की फर्श और नए फुटपाथ।
- भव्य प्रवेश द्वार और परिसर की बाउंडरी वॉल।
- श्रद्धालुओं के लिए तीन मंजिला कॉम्प्लेक्स, जिसमें ध्यान कक्ष, अतिथि आवास, फूड कोर्ट, दुकानें और सुविधाएं शामिल हैं।
- बेहतर जल निकासी और पेयजल की व्यवस्था।
3. उद्देश्य: इस विकास कार्य का मुख्य उद्देश्य उदयपुर को एक प्रमुख धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करना है, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे और पर्यटकों को बेहतर सुविधाएं मिल सकें।
मंदिर से जुड़ी कुछ रोचक बातें
- राज्य का नाम: माना जाता है कि इसी मंदिर के नाम पर त्रिपुरा राज्य का नाम पड़ा है।
- प्रसाद: यहां का मुख्य प्रसाद पेड़ा (एक प्रकार की मिठाई) है।
- फूल: देवी को लाल गुड़हल का फूल चढ़ाना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- दीपावली मेला: हर साल दीपावली के अवसर पर यहां एक विशाल मेला लगता है, जिसमें देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं।
माता त्रिपुर सुंदरी मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि त्रिपुरा की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर है।
इसका पुनर्विकास न सिर्फ श्रद्धालुओं के लिए एक बेहतर अनुभव सुनिश्चित करेगा, बल्कि पूरे क्षेत्र के विकास में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
नवरात्रि का यह पावन समय इस पवित्र धाम के नए स्वरूप में अवतरित होने का सबसे उत्तम अवसर है।