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Tulsi Vivah: भगवान विष्णु को क्यों सबसे प्रिय है तुलसी, राक्षस कन्या वृंदा से जुड़ी है कथा

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Tulsi Vivah Katha: हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को केवल एक पौधा नहीं, बल्कि एक देवी के रूप में पूजा जाता है।

तुलसी की पत्तियों के बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है।

हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में देवउठनी एकादशी के बाद तुलसी जी का विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप के साथ धूमधाम से किया जाता है।

इस परंपरा को ‘तुलसी विवाह’ के नाम से जाना जाता है।

इस साल 2025 में यह शुभ पर्व 2 नवंबर को मनाया जाएगा।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह परंपरा शुरू कैसे हुई?

आइए, जानते हैं इस चमत्कारी कथा के बारे में।

राक्षस कन्या वृंदा और उसका पतिव्रत धर्म

कथा के अनुसार, असुरराज कालनेमी की एक पुत्री थी, जिसका नाम था वृंदा।

वह अत्यंत गुणवान और भगवान विष्णु की परम भक्त थी।

बड़ी होने पर उसका विवाह राक्षस जालंधर से हुआ।

जालंधर का जन्म समुद्र मंथन के दौरान निकले विष से हुआ था और वह बहुत ही शक्तिशाली था।

वृंदा एक आदर्श और पतिव्रता स्त्री थी। उसके पतिव्रत धर्म की शक्ति इतनी प्रबल थी कि उसके कारण जालंधर अजेय हो गया।

कोई भी देवता या योद्धा उसे युद्ध में पराजित नहीं कर सकता था।

जालंधर का अहंकार और देवताओं से युद्ध

अपनी इसी शक्ति के बल पर जालंधर अहंकारी हो गया। उसने स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर दिया और देवताओं को पराजित किया।

अहंकार में चूर होकर उसने माता लक्ष्मी को पाने की इच्छा की। जब माता लक्ष्मी ने उसे अपना भाई मानकर उसकी इच्छा पूरी नहीं की, तो उसने देवी पार्वती को पाने का प्रयास किया।

वह भगवान शिव का रूप धारण कर कैलाश पर्वत पर पहुंच गया। लेकिन देवी पार्वती ने अपने योगबल से उसे पहचान लिया और अंतर्ध्यान हो गईं। इसके बाद उन्होंने यह सारी बात भगवान विष्णु को बताई।

विष्णु जी ने किया वृंदा के साथ छल

देवताओं की इस समस्या का हल निकालने के लिए भगवान विष्णु के सामने एक ही रास्ता था – वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग करना।

क्योंकि जब तक वृंदा का सतीत्व बना रहेगा, तब तक जालंधर को कोई नहीं मार सकता था। इसलिए भगवान विष्णु ने एक योजना बनाई।

वे एक साधु का वेश धारण करके उस जंगल में पहुंचे, जहाँ वृंदा अकेली घूम रही थी। भगवान के साथ दो मायावी राक्षस भी थे, जिन्हें देखकर वृंदा डर गईं।

तब साधु रूपी विष्णु ने उन दोनों राक्षसों को भस्म कर दिया। अपनी इस शक्ति को देखकर वृंदा प्रभावित हुईं और उन्होंने साधु से अपने पति जालंधर के बारे में पूछा, जो भगवान शिव से युद्ध कर रहा था।

साधु ने अपनी माया से दो वानर प्रकट किए। एक वानर के हाथ में जालंधर का कटा हुआ सिर था और दूसरे के हाथ में उसका धड़।

अपने पति को इस हालत में देखकर वृंदा का हृदय द्रवित हो गया और वह बेहोश हो गईं। जब होश में आईं तो उन्होंने साधु से विनती की कि वह उनके पति को पुनर्जीवित कर दें।

भगवान विष्णु ने अपनी माया से जालंधर के सिर और धड़ को जोड़ दिया और स्वयं उसके शरीर में प्रवेश कर गए।

वृंदा को इस छल का आभास नहीं था, इसलिए उन्होंने जालंधर रूपी विष्णु के साथ पत्नी धर्म का पालन किया। इससे उनका पतिव्रत धर्म भंग हो गया।

वृंदा का श्राप और तुलसी का जन्म

जैसे ही वृंदा का सतीत्व भंग हुआ, वैसे ही युद्धस्थल में जालंधर की शक्ति कमजोर पड़ गई और भगवान शिव ने उसका वध कर दिया।

जब वृंदा को इस सच्चाई का पता चला कि जिसके साथ वह रह रही थी, वह उसका पति नहीं बल्कि भगवान विष्णु थे, तो उन्हें गहरा क्रोध आया।

उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया – “तुमने मेरे साथ छल किया है, इसलिए तुम पत्थर के बन जाओ।”

भगवान विष्णु ने अपने भक्त के श्राप को स्वीकार कर लिया और वे तुरंत शालिग्राम पत्थर बन गए।

भगवान के पत्थर बन जाने से पूरे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया। सभी देवताओं ने वृंदा से प्रार्थना की कि वह भगवान विष्णु को इस श्राप से मुक्त कर दें।

वृंदा ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार करते हुए भगवान विष्णु को श्राप मुक्त कर दिया, लेकिन पति की मृत्यु के दुख में उन्होंने खुद अपनी चिता में आत्मदाह कर लिया।

जहां पर वृंदा की राख गिरी, वहां से एक अद्भुत पौधा उग आया, जिसे हम तुलसी का पौधा कहते हैं।

विष्णु जी ने दिया वरदान और शुरू हुई तुलसी विवाह की परंपरा

भगवान विष्णु ने वृंदा की पवित्रता से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया, “हे वृंदा! तुम अपने पतिव्रत धर्म के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में इस लोक में सदैव पूजनीय रहोगी।

तुम्हारा स्थान मेरे सिर पर भी रहेगा और मेरी कोई भी पूजा तुम्हारे बिना पूर्ण नहीं होगी।

मैं वचन देता हूं कि जो कोई भी मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुम्हारा विधिवत विवाह करेगा, उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी और उसके सभी मनोरथ पूरे होंगे।”

मान्यता है कि तभी से कार्तिक माह में तुलसी और शालिग्राम के विवाह की यह पवित्र परंपरा शुरू हुई।

तुलसी विवाह 2025: शुभ मुहूर्त, तिथि और पूजन विधि

तुलसी विवाह 2025 की तिथियाँ (Tulsi Vivah Dates 2025)

इस साल तुलसी विवाह का पर्व 2 नवंबर 2025, रविवार को मनाया जाएगा।

हालाँकि, कई स्थानों पर देवउठनी एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक के पाँच दिनों में कभी भी तुलसी विवाह संपन्न कराया जा सकता है।

  • 1 नवंबर 2025, शनिवार – देवउठनी एकादशी (पहला दिन)

  • 2 नवंबर 2025, रविवार – कार्तिक शुक्ल द्वादशी (मुख्य दिन, सर्वोत्तम)

  • 3 नवंबर 2025, सोमवार – कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी

  • 4 नवंबर 2025, मंगलवार – कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी (बैकुंठ चतुर्दशी)

  • 5 नवंबर 2025, बुधवार – कार्तिक पूर्णिमा (अंतिम दिन)

तुलसी विवाह 2025 का शुभ मुहूर्त (Tulsi Vivah 2025 Shubh Muhurat)

  • द्वादशी तिथि प्रारंभ: 2 नवंबर, सुबह 07 बजकर 33 मिनट से

  • द्वादशी तिथि समाप्त: 3 नवंबर, सुबह 02 बजकर 07 मिनट तक

  • प्रदोष काल (सर्वाधिक शुभ): शाम 05 बजकर 35 मिनट से शाम 08 बजकर 14 मिनट तक

  • अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11 बजकर 42 मिनट से 12 बजकर 26 मिनट तक

तुलसी विवाह की विधि (Tulsi Vivah Vidhi Step-by-Step)

  1. स्नान और शुद्धि: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

  2. मंडप सज्जा: घर के आंगन या पूजा स्थल पर एक छोटा सा मंडप बनाएं। इसे गन्ने, केले के पत्तों, फूलों और रंगोली से सजाएं।

  3. तुलसी को सजाना: तुलसी के पौधे को सुंदर साड़ी या लाल चुनरी से ओढ़ाएं। उन पर सिंदूर, बिंदी, मंगलसूत्र, महावर, चूड़ियाँ, बिछुआ, कुमकुम, हल्दी, मेहंदी आदि सोलह श्रृंगार की सामग्री चढ़ाएं। तुलसी को दुल्हन के समान सजाएं।

  4. शालिग्राम को सजाना: भगवान विष्णु के शालिग्राम पत्थर को वस्त्र पहनाएं और उन्हें दूल्हे के रूप में सजाएं। यदि शालिग्राम नहीं है, तो भगवान विष्णु की कोई मूर्ति या चित्र भी रख सकते हैं।

  5. विवाह संस्कार: एक लाल रंग का धागा लेकर तुलसी और शालिग्राम को परिक्रमा कराएं और उन्हें इस धागे से बांध दें। यह वरमाला का प्रतीक है।

  6. मंत्रोच्चारण: इस दौरान “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें या तुलसी विवाह के विशेष मंत्रों का पाठ करें।

  7. कथा श्रवण: तुलसी विवाह की पूरी कथा का पाठ करें या सुनें।

  8. भोग लगाना: तुलसी और शालिग्राम को पंचामृत, फल, मिठाई और खीर आदि का भोग लगाएं।

  9. आरती: अंत में तुलसी माता और भगवान विष्णु की आरती करें।

  10. प्रसाद वितरण: सभी उपस्थित लोगों में प्रसाद वितरित करें।

सुख-समृद्धि का द्वार: तुलसी विवाह का महत्व और लाभ

तुलसी विवाह केवल एक रस्म नहीं, बल्कि एक ऐसा पवित्र अनुष्ठान है, जिसका हिंदू धर्म में अत्यधिक आध्यात्मिक और सांसारिक महत्व है।

  1. विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं: माना जाता है कि जिन कुंवारी कन्याओं या युवकों के विवाह में विलंब हो रहा है, यदि वे पूरी श्रद्धा के साथ तुलसी विवाह का आयोजन करते हैं या इसमें भाग लेते हैं, तो उनकी शादी जल्दी और अनुकूल स्थान में होती है।

  2. भगवान विष्णु की विशेष कृपा: इस विवाह को कराने से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं और भक्त के जीवन में सुख-समृद्धि, धन-धान्य और मान-सम्मान की वृद्धि होती है।

  3. पितृ दोष से मुक्ति: ऐसी मान्यता है कि तुलसी विवाह करने और तुलसी के पास पितरों का श्राद्ध करने से पितृ दोष शांत होते हैं और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

  4. मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति: शास्त्रों में कहा गया है कि जिस व्यक्ति के अंतिम समय में उसके मुख में तुलसी दल और गंगा जल डाला जाता है, उसे सभी पापों से मुक्ति मिलती है और वह भगवान विष्णु के धाम वैकुंठ को प्राप्त करता है।

  5. घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास: तुलसी का पौधा वातावरण को शुद्ध करता है। इसका विवाह कराने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, नकारात्मक शक्तियाँ दूर भागती हैं और मां लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है।

  6. वैवाहिक जीवन में सुख-शांति: जो दंपत्ति तुलसी विवाह का अनुष्ठान करते हैं, उनके वैवाहिक जीवन में प्रेम और सद्भाव बढ़ता है और उनके रिश्ते मजबूत होते हैं।

तुलसी विवाह का पर्व हमें भक्ति, पवित्रता और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

यह हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति और निष्ठा अंततः ईश्वर को प्राप्त करके ही रहती है, चाहे मार्ग में कितनी भी चुनौतियाँ क्यों न आएं।

इसलिए, इस पावन अवसर पर हम सभी को तुलसी माता और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस विवाह को पूरी श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए।

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