Hanuman Jayanti 2024: इस साल हनुमान जयंती 23 अप्रैल मंगलवार के दिन है। मंगलवार का दिन भगवान हनुमान को समर्पित होता है, इसलिए इस बार हनुमान जयंती और भी खास होने वाली है। जयंती का मतलब है जिस दिन उनका जन्म हुआ था। वैसे हनुमान जयंती साल में दो बार मनाई जाती है। पहली हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को अर्थात ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक मार्च या अप्रैल के बीच और दूसरी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी अर्थात नरक चतुर्दशी को अर्थात सितंबर-अक्टूबर के बीच। इसके अलावा तमिलानाडु और केरल में हनुमान जयंती मार्गशीर्ष माह की अमावस्या को तथा उड़ीसा में वैशाख महीने के पहले दिन मनाई जाती है। आखिर सही क्या है?
इसलिए मनाते है दो बार जयंती
एक तिथि को विजय अभिनन्दन महोत्सव के रूप में जबकि दूसरी तिथि को जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है।
चैत्र पूर्णिमा जन्म कथा
कहते हैं कि त्रेतायुग के अन्तिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मेष लग्न और चित्रा नक्षत्र में मंगलवार के दिन प्रातः 6:03 बजे हनुमानजी का जन्म एक गुफा में हुआ था। मतलब यह कि चैत्र माह में उनका जन्म हुआ था। इस मान्यता को उत्तर भारत में मान्यता प्राप्त है। अधिकतर क्षेत्र में इसी दिन हनुमान जन्मोत्सव मनाया जाता है। लेकिन कई विद्वानों का मानना है कि चैत्र माह की तिथि को उनका जन्म नहीं हुआ था।
दरअसल इस दिन हनुमानजी सूर्य को फल समझ कर खाने के लिए दौड़े थे, उसी दिन राहु भी सूर्य को अपना ग्रास बनाने के लिए आया हुआ था। राहु सूर्य को ग्रहण लगाने वाले थे, लेकिन वे सूर्य को ग्रहण लगा पाते उससे पहले ही हनुमान जी ने सूर्य को निगल लिया। राहु कुछ समझ नहीं पाए कि हो क्या रहा है? उन्होने इंद्र से सहायता मांगी। इंद्रदेव के बार-बार आग्रह करने पर जब हनुमान जी ने सूर्यदेव को मुक्त नहीं किया तो, इंद्र ने वज्र से उनके मुख पर प्रहार किया जिससे सूर्यदेव मुक्त हुए। वहीं वज्र के प्रहार से पवन पुत्र मूर्छित होकर पृथ्वी पर आ गिरे और उनकी ठुड्डी टेढ़ी हो गई। जब पवन देवता को इस बात की जानकारी हुई तो वे बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने अपनी शक्ति से पुरे संसार में वायु के प्रवाह को रोक दिया, जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी पर जीवों में त्राहि-त्राहि मच उठी।
इस विनाश को रोकने के लिए सारे देवगण पवनदेव से आग्रह करने पहुंचे कि वे अपने क्रोध को त्याग पृथ्वी पर प्राणवायु का प्रवाह करें। सभी देवताओं ने पवन देव की प्रसन्नता के लिए बाल हनुमान को पहले जैसा कर दिया और साथ ही बहुत सारे वरदान भी दिए। देवताओं के वरदान से बालक हनुमान और भी ज्यादा शक्तिशाली हो गए। लेकिन वज्र के चोट से उनकी ठुड्ढी टेढ़ी हो गई, जिसके कारण उनका नाम हनुमान पड़ा। क्योंकि एक तरह से उन्हें नया जीवनदान मिला था इसलिए इस दिन भी उनकी जयंती मनाते हैं। इसलिए इस दिन को विजय अभिनन्दन महोत्सव के रूप में मनाते हैं।
कार्तिक चतुर्दशी जन्म कथा
वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमानजी का जन्म कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मंगलवार के दिन, स्वाति नक्षत्र और मेष लग्न में हुआ था। कहते हैं कि इस तिथि को ही हनुमान जी का जन्मदिवस मनाया जाता है।
– एक अन्य मान्यता के अनुसार माता सीता ने हनुमानजी की भक्ति और समर्पण को देखकर उनको अमरता का वरदान दिया था। यह दिन नरक चतुर्दशी का दिन था।
पवन पुत्र हनुमान की जन्म कथा
वेदों और पुराणों के अनुसार, हनुमान जी के पिता का नाम वानरराज राजा केसरी थे। इनकी माता का नाम अंजनी थी। रामचरितमानस में हनुमान जी के जन्म से संबंधित बताया गया है कि हनुमान जी का जन्म ऋषियों द्वारा दिए गए वरदान से हुआ था। मान्यता है कि एक बार वानरराज केसरी प्रभास तीर्थ के पास पहुंचे। वहां उन्होंने ऋषियों को देखा जो समुद्र के किनारे पूजा कर रहे थे। तभी वहां एक विशाल हाथी आया और ऋषियों की पूजा में खलल डालने लगा। सभी उस हाथी से बेहद परेशान हो गए थे। वानरराज केसरी यह दृश्य पर्वत के शिखर से देख रहे थे। उन्होंने विशालकाय हांथी के दांत तोड़ दिए और उसे मृत्यु के घाट उतार दिया। ऋषिगण वानरराज से बेहद प्रसन्न हुए और उन्हें इच्छानुसार रुप धारण करने वाला, पवन के समान पराक्रमी तथा रुद्र के समान पुत्र का वरदान दिया।
भगवान शिव ने हनुमान जी के रूप में लिया था जन्म
एक अन्य कथा के अनुसार, माता अंजनी एक दिन मानव रूप धारण कर पर्वत के शिखर की ओर जा रही थीं। उस समय सूरज डूब रहा था। अंजनी डूबते सूरज की लालिमा को निहारने लगी। इसी समय तेज हवा चलने लगी और उनके वस्त्र उड़ने लगे। हवा इतनी तेज थी वो चारों तरफ देख रही थीं कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है। लेकिन उन्हें कोई दिखाई नहीं दिया। हवा से पत्ते भी नहीं हिल रहे थे। तब माता अंजनी को लगा कि शायद कोई मायावी राक्षस अदृश्य होकर यह सब कर रहा था। उन्हें क्रोध आया और उन्होंने कहा कि आखिर कौन है ऐसा जो एक पतिपरायण स्त्री का अपमान कर रहा है।
तब पवन देव प्रकट हुए और हाथ जोड़ते हुए अंजनी से माफी मांगने लगे। उन्होंने कहा, “ऋषियों ने आपके पति को मेरे समान पराक्रमी पुत्र का वरदान दिया है इसलिए मैं विवश हूं और मुझे आपके शरीर को स्पर्श करना पड़ा। मेरे अंश से आपको एक महातेजस्वी बालक प्राप्त होगा।” उन्होंने यह भी कहा कि मेरे स्पर्श से भगवान रुद्र आपके पुत्र के रूप में प्रविष्ट हुए हैं। वही आपके पुत्र के रूप में प्रकट होंगे। इस तरह की वानरराज केसरी और माता अंजनी के यहां भगवान शिव ने हनुमान जी के रूप में अवतार लिया।
हनुमान जयंती 2024 तिथि और समय
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल चैत्र शुक्ल पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 23 अप्रैल, 2024 दिन मंगलवार सुबह 03.25 मिनट पर होगी।
इसका समापन 24 अप्रैल, 2024 दिन बुधवार सुबह 05, 18 मिनट पर होगा।
उदयातिथि को देखते हुए इस बार हनुमान जयंती 23 अप्रैल को मनाई जाएगी।
हनुमान जयंती पूजन मुहूर्त
सुबह 06.06 मिनट से 07.40 मिनट तक
अभिजित मुहूर्त- दोपहर 12.02 से दोपहर 12.53 तक
भोग-
इस दिन हनुमान जी को केले, बेसन या बूंदी के लड्डुओं और पान के बीड़े का भोग लगाना शुभ रहेगा।
प्रिय पुष्प व रंग-
हनुमान जयंती के दिन पूजा के समय लाल या पीले रंग के वस्त्र पहनना अत्यंत शुभ रहेगा। वहीं, हनुमान जी का प्रिय रंग लाल माना जाता है। इसलिए प्रभु को लाल गुलाब के फूल और माला चढ़ाएं।
हनुमान जयंती पूजा-विधि
-इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और लाल रंग के साफ सुथरे कपड़े पहन लें।
-इसके बाद बजरंगबली को लाल रंग के पुष्प अर्पित करें, सिंदूर में चमेली का तेल मिलाकर चोला चढ़ाएं, चना, गुड़ और नारियल भी चढ़ाएं।
-प्रभु को बेसन के लड्डू या फिर बूंदी के लड्डू का भोग लगा सकते हैं।
-इसके बाद घी का दीपक जलाएं और सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का पाठ करें।
-इसके बाद आरती करें और व्रत रखने का संकल्प लें।
-हनुमान जी के साथ-साथ प्रभु श्री राम और माता सीता की भी उपासना करें।अंत में क्षमा प्रार्थना करें।
हनुमान जयंती की व्रत कथा
एक बार अग्निदेव से मिली खीर को राजा दशरथ ने अपनी तीनों रानियों को बांट दिया। कैकयी को जब खीर मिली तो चील ने झपट्टा मारकर उसे छीन लिया और उसे अपने मुंह में लेकर उड़ गई। उड़ते-उड़ते रास्ते में जब चील अंजना माता के आश्रम के ऊपर से गुजर रही थी तो माता अंजना ऊपर की ओर देख रही थी और उनका मुंह खुला होने की वजह से खीर उनके मुंह में गिर गई और उन्होंने उस खीर को गटक लिया। इससे उनके गर्भ में शिवजी के अवतार हनुमानजी आ गए और फिर उनका जन्म हुआ।
हनुमानजी के जन्म के विषय में दूसरी कथा यह है कि समुद्रमंथन के बाद जब भगवान शिव ने भगवान विष्णु का मोहिनी रूप देखने को कहा था जो उन्होंने समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और असुरों को दिखाया था। उनकी बात का मान रखते हुए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर लिया। भगवान विष्णु का आकर्षक रूप देखकर शिवजी आकर्षित होकर कामातुर हो गए और उन्होंने अपना वीर्य गिरा दिया। जिसे पवनदेव ने शिवजी के वानर राजा केसरी की पत्नी अंजना के गर्भ में प्रविष्ट कर दिया। इस तरह माता अंजना के गर्भ से वानर रूप में हनुमानजी का जन्म हुआ। उन्हें शिव का 11वां रूद्र अवतार माना जाता है।
हनुमान जी के बाल रूप की पूजा से मिलेगा विशेष वरदान
कहा जाता है कि इस दिन भगवान हनुमान के बाल रूप की पूजा करने से मनचाहा वरदान प्राप्त होता है तो आइए पूजा नियम के बारे में जानते हैं –
हनुमान जी के बाल रूप की पूजा विधि
-इस दिन सुबह उठकर स्नान करें।
-भगवान के सामने व्रत का संकल्प लें।
-एक चौकी पर हनुमान जी के बाल रूप की प्रतिमा स्थापित करें।
-हनुमान जी को सिंदूर अर्पित करें।
-इसके बाद चमेली के तेल का दीपक जलाएं।
-तुलसी व गुलाब के फूलों की माला चढ़ाएं।
-पीपल के 11 पत्तों पर चंदन व कुमकुम से श्री राम लिखकर चढ़ाएं।
-गुड़, लड्डू आदि का भोग लगाएं।
-सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का पाठ भाव के साथ करें।
-आरती से पूजा को समाप्त करें।
-पूजा के बाद शंखनाद करें।
-पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगे।
ये भी पढ़ें-