Homeलाइफस्टाइलखरमास में मृत्‍यु क्‍यों है अशुभ? मौत के इंतजार में 58 दिनों...

खरमास में मृत्‍यु क्‍यों है अशुभ? मौत के इंतजार में 58 दिनों तक बाणों की सैय्या पर सोए थे भीष्‍म पितामह

और पढ़ें

Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 12 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Death in Kharmas: खरमास का महीना आते ही हर तरह के शुभ कार्य पर पाबंदी लग जाती है।

शादी, गृह प्रवेश से मुंडन तक सभी तरह के मांगलिक कार्य एक महीने के लिए रोक दिए जाते हैं।

1 महीने बाद जब खरमास समाप्त होता है तब कही जाकर दोबारा शुभ काम शुरू होते हैं।

मगर क्या आपको पता है कि हिंदू धर्म में खरमास में मृत्यु होना भी अशुभ माना जाता है और अगर किसी की मृत्यु हो जाए तो ऐसा माना जाता है कि उसे स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होगी।

इसी मान्यता की वजह से द्वापर युग में भी भीष्म पितामह ने अपने प्राण 58 दिनों तक रोककर रखे थें। ताकि उन्हें खरमास में प्राण न त्यागना पड़े।

आइए जानते हैं खरमास में मृत्यु क्यों है अशुभ और भीष्म पितामह के प्राण रोकने की कथा…

खरमास में मृत्यु का अर्थ

भारतीय पंचांग पद्धति में सौर पौष मास को खर मास कहते हैं। इसे मल मास या काला महीना भी कहा जाता है।

ब्रह्म पुराण के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु खरमास में हो रही है तो इसका अर्थ है कि उसने अपने जीवन में अच्छे कर्म नहीं किए हैं।

इसका एक और अर्थ है कि अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु खरमास में हुई है तो उसे मोक्ष नहीं मिलेगा और उसे नर्क मिलेगा।

साथ ही कर्मफल भुगतने के लिए फिर से धरती पर जन्म लेना होगा।

Death in Kharmas, Bhishma Pitamah Death Story, Bhishma Pitamah Death Kharmas, Bhishma Pitamah and Kharmas,
Death in Kharmas

खरमास में मृत्यु से मिलता है नर्क?

ब्रह्म पुराण के अनुसार खरमास में मौत होने पर व्यक्ति नर्क का भागी होता है. इस बात की पुष्टि महाभारत में भी होती है.

जब खरमास के दौरान भीष्म पितामह का पूरा शरीर बाणों से छलनी था, इसके बावजूद भी उन्‍होंने प्राण नहीं त्‍यागे, क्‍योंकि उस वक्‍त सूर्य दक्षिणायन में चल रहे थे.

धार्मिक मान्‍यता के अनुसार, जिस व्‍यक्ति की मृत्‍यु दक्षिणायन में होती है उसे मरने के बाद नर्क की प्राप्ति होती है.

भीष्म पितामह ने नहीं त्यागे थे प्राण

महाभारत की कथा के अनुसार पौष खरमास में कुरुक्षेत्र के युद्ध में जब अर्जुन ने भीष्म पितामह को बाणों से वेध दिया तो भी भीष्म पितामह ने अपने प्राण नहीं त्यागे।

उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। यानि वो अपने हिसाब से मृत्यु का वरण करेंगे।

इसलिए भीष्म पितामह पूरे खरमास में अर्द्ध मृत अवस्था में बाणों की सैय्या पर लेटे रहे और सूर्य के उत्तरायण होने और खरमास बीतने का इंतजार करते रहे।

58 दिन बाद जब माघ मास की मकर संक्रांति आई तो शुक्ल पक्ष की एकादशी को उन्होंने अपने प्राण त्यागे।

ऐसी मान्यता है कि माघ मास में देह त्यागने वाले व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

Death in Kharmas, Bhishma Pitamah Death Story, Bhishma Pitamah Death Kharmas, Bhishma Pitamah and Kharmas,
Death in Kharmas

खरमास यानि छोटा पितृ पक्ष

‘खरमास’ में मांगलिक कार्य नहीं होते हैं लेकिन ईश्वर की उपासना विशेष तौर पर सूर्य और पितरों की उपासना के लिए ये उत्तम समय होता है, जिस कारण इसे ‘छोटा पितृ पक्ष’ भी कहते हैं।

मान्यता है कि इस माह शांति से किया पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म जन्म-मरण के बंधनों से मुक्ति दिलाता है, जिससे घर में खुशहाली और मान-सम्मान के साथ धन की प्राप्ति होती है।

- Advertisement -spot_img