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Diwali: क्यों मनाते है दिवाली? जानें देवी लक्ष्मी और श्री राम से जुड़ी पौराणिक कथाएं

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Diwali Maa Lakshmi Story: दिवाली यानी रोशनी का त्योहार।

यह सिर्फ दीपों की शोभा और पटाखों की आतिशबाजी भर नहीं, बल्कि हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र त्योहारों में से एक है।

इस दिन घर-आंगन में जगमगाते दीये सिर्फ उजाले ही नहीं, बल्कि बुराई पर अच्छाई की जीत, अंधकार पर प्रकाश की विजय और अज्ञान पर ज्ञान की सफलता का संदेश भी फैलाते हैं।

आइए, जानते हैं कि आखिर क्यों मनाई जाती है दिवाली और क्या है इससे जुड़ी दो प्रमुख पौराणिक कथाएं…

समुद्र मंथन से हुई थी धन-संपदा की देवी लक्ष्मी की उत्पत्ति

दिवाली के साथ सबसे गहरा नाता धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी मां लक्ष्मी की उत्पत्ति की कथा का है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवताओं और राक्षसों ने अमृत प्राप्त करने के लिए मिलकर समुद्र मंथन किया था।

इस ‘सागर मंथन’ की प्रक्रिया में समुद्र से कुल 14 दुर्लभ रत्न निकले, जिनमें से एक देवी लक्ष्मी स्वयं थीं।

माना जाता है कि जिस दिन मां लक्ष्मी कार्तिक मास की अमावस्या को समुद्र से प्रकट हुईं, वह दिन दिवाली का ही दिन था। इसलिए इस दिन को मां लक्ष्मी के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।

समुद्र से निकलने के बाद, देवी लक्ष्मी के अद्भुत सौंदर्य ने सभी देवताओं और दानवों को आकर्षित कर दिया। लेकिन देवी ने स्वयं सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु को अपना पति चुना और उनकी अर्धांगिनी बन गईं।

तभी से वह ‘विष्णुप्रिया’ कहलाईं। समुद्र मंथन से जन्म लेने के कारण ही उन्हें ‘क्षीरब्धितान्या’ (दूध के समुद्र की पुत्री) भी कहा जाता है।

दिवाली की रात को लक्ष्मी पूजन का मुख्य कारण यही है कि इस दिन मां धन और संपदा की देवी पृथ्वी लोक में आती हैं और अपने भक्तों के घरों में विराजमान होकर उन्हें आशीर्वाद देती हैं।

14 वर्षों का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटे थे भगवान राम

दिवाली मनाने का दूसरा सबसे बड़ा और लोकप्रिय कारण भगवान राम की अयोध्या वापसी से जुड़ा है।

रामायण के अनुसार, जब भगवान राम, अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 साल के वनवास को पूरा करके अयोध्या वापस लौटे, तो पूरी अयोध्या नगरी खुशी से झूम उठी।

अयोध्यावासियों ने अपने प्रिय राजा राम के स्वागत में पूरे नगर को दीपों से जगमगा दिया।

घर-घर में दीये जलाए गए, मिठाइयां बांटी गईं और जश्न मनाया गया।

मान्यता है कि तभी से दीपों के इस त्योहार ‘दीपावली’ को मनाने की परंपरा शुरू हुई।

यह घटना सत्य की असत्य पर, धर्म की अधर्म पर और प्रकाश की अंधकार पर विजय का प्रतीक है।

मां लक्ष्मी का स्वरूप और महत्व

मां लक्ष्मी को आमतौर पर एक सुंदर, चार भुजाओं वाली देवी के रूप में दर्शाया जाता है, जो एक कमल के फूल पर विराजमान हैं।

कमल पवित्रता और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतीक है।

उनके हाथों में कमल का फूल, अभय मुद्रा, सोने के सिक्कों से भरा कलश और वरदान देती मुद्रा दिखाई देती है।

वह धन, समृद्धि, सौभाग्य और सुख-शांति की दाता हैं।

चूंकि उनका स्थान भगवान विष्णु के हृदय में माना गया है, इसलिए उन्हें ‘श्रीनिवास’ भी कहा जाता है।

दिवाली 2025: तारीख और पूजन का शुभ मुहूर्त

इस साल 2025 में, दिवाली का पर्व 20 अक्टूबर, सोमवार को मनाया जाएगा।

  • कार्तिक अमावस्या तिथि प्रारंभ: 20 अक्टूबर, दोपहर 03:44 बजे
  • कार्तिक अमावस्या तिथि समाप्त: 21 अक्टूबर, शाम 05:54 बजे

लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त:

  • दिवाली पूजा मुहूर्त: शाम 07:08 बजे से रात 08:18 बजे तक
  • निशिता काल मुहूर्त: रात 11:41 बजे से 12:31 बजे तक (यह समय भी पूजन के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है)
  • प्रदोष काल: शाम 05:36 बजे से रात 08:07 बजे तक

दिवाली का त्योहार न सिर्फ बाहरी चमक-दमक प्रदान करता है, बल्कि आपसी प्रेम और नई शुरुआत करने की प्रेरणा भी देता है।

यह त्योहार हमें सिखाता है कि अंधकार कितना भी गहरा क्यों न हो, एक छोटा सा दीया उसे हमेशा के लिए दूर कर सकता है।

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