Why is Navratri Celebrated: 3 अक्टूबर से पूरे देश में नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। हर जगह इस उत्सव की धूम है।
माता के भक्त जोर-शोर से शक्ति की पूजा कर रहे हैं।
लेकिन क्या आपको पता है कि नवरात्रि क्यों मनाते हैं और इसकी शुरुआत कैसे हुई?
अगर नहीं तो हम आपको बताते हैं जगतजननी के इस पावन पर्व की प्राचीन कथा…
नवरात्रि का मतलब (Meaning of Navratri)
नवरात्र का शाब्दिक अर्थ है “नौ रातें।” इन नौ रातों की गिनती अमावस्या के अगले दिन से की जाती है।
यह देवी के लिए एक विशेष समय है, जो ईश्वर की स्त्री प्रकृति का प्रतिनिधित्व करती है।
दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती को स्त्री के तीन आयामों के रूप में देखा जाता है।
इसलिए इन नौ दिनों को शक्ति की आराधना के लिए समर्पित कर दिया गया।
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क्यों कहते है शारदीय नवरात्रि (Why is it called Sharadiya Navratri?)
आश्विन मास में शरद ऋतु का प्रारंभ हो जाता है, इसलिए इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है।
शारदीय नवरात्रि के दसवें दिन को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है।
नवरात्रि की प्राचीन कथा (Ancient Story of Navratri)
मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अराधना से जुड़े नवरात्रि का पावन पर्व मनाए जाने से कई कथाएं जुड़ी हुई हैं।
इनमें एक प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार, असुर महिषासुर को ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान प्राप्त था।
उसकी मृत्यु मानव, असुर या देवता किसी के हाथों नहीं हो सकती थी, उसकी मृत्यु केवल एक स्त्री के हाथ से ही निश्चित की गई थी।
यह वरदान पाकर महिषासुर मानवों और देवताओं को सताने लगा।
महिषासुर के अत्याचार से परेशान होकर सभी देवतागण त्रिदेव के पास पहुंचे।
तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं ने आदिशक्ति का आवाहन किया फिर त्रिदेवों के तेज पुंज से मां दुर्गा की उत्पति हुई।
देवताओं से अस्त्र-शस्त्र शक्तियां पाकर मां दुर्गा ने महिषासुर को युद्ध के लिए ललकारा।
महिषासुर और देवी दुर्गा के बीच पूरे 9 दिनों तक युद्ध चला और दसवें दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया।
इसके बाद ही वो महिषासुर मर्दिनी कहलाई।
जब मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया, तब आश्विन मास का समय था,
इसलिए हर साल आश्विन माह की प्रतिपदा से लेकर पूरे नौ दिनों कर नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है।
कहा जाता है कि युद्ध के दौरान सभी देवताओं ने भी नौ दिनों तक प्रतिदिन पूजा-पाठ कर देवी को महिषासुर के वध के लिए बल प्रदान किया।
मान्यता है कि तब से ही नवरात्रि का पर्व मनाने की शुरुआत हुई है।
लंका विजय के लिए श्रीराम ने की थी दुर्गा पूजा
नवरात्रि मनाए जाने की एक और कथा श्रीराम से जुड़ी है।
जब रावण ने सीता जी का हरण कर लिया था तब रावण से लड़ाई में विजय प्राप्त करने और सीता जी को छुड़ाने के लिए श्री राम ने मां दुर्गा की पूजा की थी।
वाल्मीकि रामायण में उल्लेख है कि,लंका की चढ़ाई करने से पहले प्रभु राम ने माता दुर्गा की उपासना की थी।
ब्रह्मा जी ने युद्ध में विजय के लिए श्री राम को देवी दुर्गा के चंडी स्वरूप की पूजा करने की सलाह दी, जिसके बाद श्री राम ने प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक चंडी देवी की पूजा-अराधना।
बह्मा जी ने राम जी को ये भी बताया कि, आपकी पूजा तभी सफल होगी जब आप चंडी पूजा और हवन के बाद 108 नील कमल भी मां को अर्पित करेंगे।
नील कमल बहुत दुर्लभ माने जाते हैं लेकिन राम जी ने अपनी सेना की मदद से ये 108 नील कमल ढूंढ लिए, लेकिन जब रावण को यह पता चला तो उसने अपनी मायावी शक्ति से एक नील कमल गायब कर दिया।
चंडी पूजा के आखिर में जब भगवान राम ने वे नील कमल चढ़ाए तो उनमें एक कमल कम निकला।
यह देखकर वो परेशान हुए और अंत में उन्होंने कमल की जगह अपनी एक आंख माता चंडी पर अर्पित करने का फैसला लिया।
अपनी आंख अर्पित करने के लिए जैसे ही उन्होंने तीर उठाया तभी माता चंडी प्रकट हुईं और उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर श्रीराम को विजय का आशीर्वाद दिया।
श्रीराम ने रखा था नवरात्रि का पहला व्रत (Ram kept first fast of Navratri)
माता चंडी को प्रसन्न करने के लिए प्रभु श्री राम ने नौ दिनों तक अन्न जल कुछ भी ग्रहण नहीं किया था।
ऐसा माना जाता है कि तभी से नवरात्रि मनाने और 9 दिनों तक व्रत रखने की शुरुआत हुई।
ऐसे में श्रीराम नवरात्रि के 9 दिनों तक व्रत रखने वाले पहले राजा और पहले मनुष्य थे।
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