Roop Chaudas-Narak Chaturdashi: दिवाली के रोशनी और उल्लास भरे त्योहार से ठीक एक दिन पहले, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को एक विशेष पर्व मनाया जाता है, जिसे हम रूप चौदस, नरक चौदस या छोटी दिवाली के नाम से जानते हैं।
यह दिन केवल बाहरी सफाई और सजावट का नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धि, सौंदर्य और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है।
इस दिन की सबसे खास और प्रसिद्ध परंपरा है सूर्योदय से पहले उबटन लगाकर अभ्यंग स्नान करना।
आइए, जानते हैं कि यह परंपरा कैसे शुरू हुई और इसका क्या महत्व है…
रूप चौदस पर कैसे शुरू हुई उबटन लगाने की परंपरा
रूप चौदस नाम अपने आप में ही इसके महत्व को बयां करता है।
‘रूप’ का अर्थ है सौंदर्य और ‘चौदस’ यानी चतुर्दशी तिथि।
मान्यता है कि इस दिन किए गए विधि-विधान और उपाय से व्यक्ति को अद्भुत सौंदर्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
उबटन लगाने की इस परंपरा की शुरुआत को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं:
राजा हिरण्यगभ की कथा
प्राचीन काल में हिरण्यगभ नाम के एक राजा थे। उन्होंने राज-पाट छोड़कर कठोर तपस्या शुरू कर दी।
इतने वर्षों तक तपस्या में लीन रहने के कारण उनके शरीर की उपेक्षा हो गई। उनके शरीर पर मैल जम गया और कीड़े पड़ने लगे।
इस पीड़ा से दुखी होकर उन्होंने नारद मुनि से सहायता मांगी।
नारद मुनि ने उन्हें उपाय बताया कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व तिल के तेल की मालिश करके और हल्दी आदि का उबटन लगाकर स्नान करें, फिर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें।
राजा ने ऐसा ही किया। इससे प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने उन्हें पहले जैसा सुंदर और निरोगी शरीर प्रदान किया।
इस घटना के बाद से ही रूप चौदस पर उबटन लगाने की परंपरा की शुरुआत मानी जाती है।
भगवान श्रीकृष्ण और नरकासुर का वध
एक दूसरी प्रमुख कथा के अनुसार, इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी दैत्य नरकासुर का वध किया था।
नरकासुर का वध करने के बाद श्री कृष्ण के पूरे शरीर पर दैत्य का रक्त लग गया था, जिससे वे मैले हो गए।
अपने शरीर को शुद्ध और शुद्ध करने के लिए, उन्होंने तेल की मालिश की और फिर सुगंधित उबटन लगाकर स्नान किया।
चूंकि यह घटना चतुर्दशी के दिन हुई थी, इसलिए इस दिन उबटन लगाने की परंपरा शुरू हुई, ताकि शरीर की सभी प्रकार की गंदगी और नकारात्मक ऊर्जा दूर हो सके।
नरक चौदस क्यों कहते हैं?
इस दिन को ‘नरक चौदस’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि मान्यता है कि इस दिन का पालन करने से व्यक्ति नरक (नर्क) में जाने से बच जाता है।
नरकासुर का वध और 16,000 कन्याओं की मुक्ति
नरकासुर नामक दैत्य ने 16,000 कन्याओं को बंदी बना रखा था।
इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने उसका वध करके उन सभी कन्याओं को मुक्त कराया।
बाद में, उनके सम्मान को बचाने के लिए श्री कृष्ण ने सभी से विवाह किया।
इस विजय और मुक्ति के प्रतीक के रूप में इस दिन को नरक चौदस कहा जाता है।
इसी खुशी में लोग शाम को दीयों की बारात निकालते हैं।
यमराज की पूजा और अकाल मृत्यु से मुक्ति
इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विशेष महत्व है।
मान्यता है कि इस दिन घर के मुख्य द्वार पर यम के नाम का दीपक जलाने और उनकी पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है और व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं, जिससे उसे नरक की यातनाएं नहीं भोगनी पड़ती।
काली चौदस और हनुमान जन्मोत्सव
मां काली का प्राकट्य दिवस:
बंगाल और पूर्वी भारत में इस दिन को काली चौदस के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इसी दिन मां काली का प्राकट्य हुआ था।
मां काली की आराधना से शत्रुओं पर विजय और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
हनुमान जी का जन्म:
एक अन्य मान्यता के अनुसार, इसी दिन महाबली हनुमान जी का जन्म हुआ था।
इसलिए इस दिन हनुमान जी की पूजा करने का भी विशेष महत्व है।
उनकी पूजा से व्यक्ति को शक्ति, साहस और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
रूप चौदस मनाने की सही विधि और महत्व
1. ब्रह्म मुहूर्त में जागरण और अभ्यंग स्नान:
इस दिन सूर्योदय से पहले, ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए।
सबसे पहले तिल के तेल या सरसों के तेल की पूरे शरीर पर अच्छी तरह मालिश करें।
इसके बाद हल्दी, चंदन पाउडर, बेसन और दूध या गुलाबजल से बना उबटन लगाएं।
कुछ देर बाद पानी में चिरचिरी के पत्ते (या तुलसी के पत्ते) डालकर स्नान करें।
इस अभ्यंग स्नान से शरीर की सारी गंदगी बाहर निकलती हैं, त्वचा में निखार आता है और शरीर स्वस्थ रहता है।
2. यमराज पूजा और दीपदान:
स्नान के बाद दक्षिण दिशा की ओर मुख करके यमराज की पूजा करें।
एक थाली में एक चौमुखा दीया (चार मुख वाला दीपक) और 14 छोटे दीपक जलाएं।
इन्हें रोली, चावल, फूल, गुड़, खीर आदि से अर्पित करें। पूजा के बाद इन दीपकों को घर के मुख्य द्वार, यम दिशा (दक्षिण) और तुलसी के पास रखें।
शाम के समय किसी नदी या तालाब में यम के नाम का दीपदान करना भी शुभ माना जाता है।
3. घर की शुद्धि और नकारात्मक ऊर्जा का निष्कासन:
इस दिन घर की अच्छे से सफाई करके सभी टूटे-फूटे, बेकार और अनुपयोगी सामान को घर से बाहर निकाल देना चाहिए।
मान्यता है कि ऐसा सामान ‘नरक’ का प्रतीक है और इन्हें हटाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है तथा घर में सकारात्मकता का वास होता है।
4. व्रत और भगवान की आराधना:
इस दिन व्रत रखने का भी विशेष महत्व है।
ऐसा माना जाता है कि यह व्रत व्यक्ति को अलौकिक सौंदर्य और मोक्ष प्रदान करता है।
भगवान विष्णु, श्री कृष्ण, मां लक्ष्मी, मां काली और हनुमान जी की पूजा-आराधना करनी चाहिए।
रूप चौदस या नरक चौदस का पर्व हमें एक साथ कई शिक्षाएं देता है।
यह हमें सिखाता है कि सुंदरता केवल बाहरी रूप-रंग में नहीं, बल्कि स्वच्छता, स्वास्थ्य और पवित्रता में निहित है।
साथ ही, यह बुराई पर अच्छाई की जीत और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है।