Why Shiv Loves Belpatra: भगवान शिव की पूजा में बेलपत्र (बिल्व पत्र) का विशेष महत्व है।
शिवरात्रि हो या सोमवार, बिना बेलपत्र के शिव की आराधना अधूरी मानी जाती है।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि शिवजी को यह पत्ता इतना प्रिय क्यों है?
आइए, जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथाएं, धार्मिक मान्यताएं, वैज्ञानिक महत्व और इसे चढ़ान का तरीका…
बेलपत्र का पौराणिक महत्व
1. समुद्र मंथन और हलाहल विष की कथा
शिवपुराण के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया, तब हलाहल विष निकला।
इस विष को पीकर भगवान शिव ने संसार की रक्षा की, लेकिन विष की गर्मी से उनका शरीर तपने लगा।
तब देवताओं ने शिवजी को बेलपत्र और जल चढ़ाकर उनकी पीड़ा शांत की।
इसके बाद से ही बेलपत्र शिव की पूजा का अहम हिस्सा बन गया।

2. माता पार्वती का स्वरूप
एक अन्य कथा के अनुसार, माता पार्वती के पसीने की बूंद से बेल का वृक्ष उत्पन्न हुआ था। इसलिए बेलपत्र को माता पार्वती का स्वरूप माना जाता है।
बेल वृक्ष के हर भाग में देवी का वास माना जाता है:
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जड़ में गिरिजा (पार्वती),
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तने में माहेश्वरी,
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शाखाओं में दक्षिणायनी,
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पत्तियों में मां पार्वती का निवास है।
इस कारण बेलपत्र को पवित्र माना जाता है और शिवलिंग पर चढ़ाने से माता पार्वती की कृपा भी प्राप्त होती है।

बेलपत्र न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह स्वास्थ्य और वास्तु के लिए भी लाभकारी है।
3. त्रिदेव का प्रतीक
बेलपत्र की तीन पत्तियां त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) का प्रतीक हैं।
इसे शिवजी के त्रिशूल का भी रूप माना जाता है।
इसलिए तीन पत्तियों वाला बेलपत्र शिव पूजन में सबसे शुभ माना जाता है।
4. वास्तु शास्त्र में बेल वृक्ष का महत्व
घर के उत्तर-पूर्व में बेल का पेड़ लगाने से धन लाभ होता है।
पूर्व दिशा में लगाने से सुख-शांति मिलती है।
दक्षिण में लगाने से यम के भय से मुक्ति मिलती है

बेलपत्र चढ़ाने के नियम
शास्त्रों में बेलपत्र चढ़ाने के कुछ विशेष नियम बताए गए हैं। इनका पालन करने से शिवजी जल्दी प्रसन्न होते हैं:
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बेलपत्र की संख्या: बेलपत्र हमेशा विषम संख्या (3, 5, 7, आदि) में चढ़ाने चाहिए। तीन पत्तियों वाला बेलपत्र सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।
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पत्तियों की शुद्धता: कटे-फटे या टूटे हुए बेलपत्र शिवजी को नहीं चढ़ाने चाहिए। पत्तियां पूरी और ताजी होनी चाहिए।
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चढ़ाने का तरीका: बेलपत्र को हमेशा चिकनी सतह (पत्ती का चमकदार भाग) की तरफ से शिवलिंग पर रखें। इसे मध्यमा, अनामिका उंगली और अंगूठे से पकड़कर चढ़ाएं।
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पुनः उपयोग: बेलपत्र कभी अशुद्ध नहीं होता, इसलिए पहले चढ़ाए गए बेलपत्र को धोकर दोबारा उपयोग किया जा सकता है।
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जल अर्पण जरूरी: बेलपत्र चढ़ाने के बाद शिवलिंग पर जल अवश्य चढ़ाएं। इससे शिवजी की तपन शांत होती है।

शिवपुराण में कहा गया है—
“बिल्वपत्रस्य दर्शनं, स्पर्शनं पापनाशनम्।”
(बेलपत्र के दर्शन और स्पर्श मात्र से पापों का नाश होता है।)
बेलपत्र का वैज्ञानिक महत्व
बेलपत्र न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है:
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इसमें एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण होते हैं, जो वातावरण को शुद्ध करते हैं।
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बेलपत्र की शीतलता शिवलिंग की ऊर्जा को संतुलित करती है।
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आयुर्वेद में बेलपत्र का उपयोग पाचन, मधुमेह और हृदय रोगों में किया जाता है।

मिलता है एक करोड़ कन्यादान का पुण्य
शिवपुराण के अनुसार, जो भक्त श्रद्धा से शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाता है, उसे एक करोड़ कन्यादान के बराबर पुण्य मिलता है।
बेलपत्र शिव और पार्वती का प्रिय प्रसाद है, जो भक्तों के कष्टों को दूर करता है।
यदि आप भी शिवजी को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो नियमित रूप से बेलपत्र अर्पित करें और उनकी कृपा पाएं।