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क्यों मनाई जाती है अक्षय नवमी, आंवले के पेड़ के नीचे ही क्यों किया जाता है भोजन? जानें महत्व

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Akshay Navami 2025 Katha: हिंदू धर्म में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी या आंवला नवमी के रूप में मनाया जाता है।

इस साल 2025 में यह पर्व 31 अक्टूबर, गुरुवार को मनाया जाएगा।

इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है और लोग इसके नीचे बैठकर भोजन करते हैं।

मान्यता है कि इस दिन किया गया कोई भी पुण्य कार्य अक्षय यानी कभी नष्ट नहीं होता।

आइए जानते हैं इस पर्व से जुड़ी पौराणिक कथा, महत्व और पूजन विधि के बारे में विस्तार से।

अक्षय नवमी क्यों है खास? जानें इस दिन का धार्मिक और पौराणिक महत्व

‘अक्षय’ शब्द का अर्थ है – जिसका कभी क्षय न हो या अमर।

अक्षय नवमी का दिन अक्षय तृतीया के समान ही अत्यंत शुभ और पवित्र माना गया है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन किए गए दान, पूजन और साधना का फल भक्त को कई गुना होकर मिलता है और यह कभी नष्ट नहीं होता।

ऐसा भी माना जाता है कि सत्ययुग की शुरुआत इसी दिन से हुई थी, इसलिए इसे ‘सत्ययुगादि’ भी कहा जाता है।

एक अन्य मान्यता के मुताबिक, इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए वृंदावन छोड़कर मथुरा के लिए प्रस्थान किया था।

इसीलिए इस दिन मथुरा और वृंदावन की परिक्रमा करने का भी विशेष महत्व है।

क्या है आंवले के पेड़ से गहरा नाता? देवी लक्ष्मी ने की थी शुरुआत

अक्षय नवमी को ‘आंवला नवमी’ भी कहा जाता है।

इसकी वजह है आंवले के वृक्ष का इस दिन विशेष पूजन।

इसके पीछे एक रोचक पौराणिक कथा प्रचलित है।

कहा जाता है कि एक बार देवी लक्ष्मी ने धरती पर ऐसी पूजा करने की इच्छा जताई जिससे भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की एक साथ प्रसन्नता प्राप्त हो सके।

लेकिन उनके सामने एक दुविधा थी। भगवान विष्णु को तुलसी अत्यंत प्रिय है, जबकि भगवान शिव को बेलपत्र।

ऐसे में दोनों की एक साथ पूजा कैसे की जाए?

इस समस्या के समाधान के तौर पर देवी लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष को चुना, क्योंकि मान्यता है कि आंवले में तुलसी और बेलपत्र दोनों के ही गुण समाहित हैं।

उन्होंने अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की।

देवी लक्ष्मी की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों एक साथ प्रकट हुए।

तब देवी लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष के नीचे ही भोजन बनाया और सबसे पहले दोनों देवताओं को भोग लगाया, फिर स्वयं भोजन किया।

माना जाता है कि इसी घटना के बाद से अक्षय नवमी पर आंवले के वृक्ष की पूजा और उसके नीचे भोजन करने की परंपरा की शुरुआत हुई।

ब्रह्माजी के आंसुओं से हुई थी आंवले की उत्पत्ति

ब्रह्माण्ड पुराण में आंवले की उत्पत्ति की एक और दिलचस्प कथा मिलती है।

कहा जाता है कि सृष्टि की रचना के बाद जब ब्रह्माजी ने अपनी बनाई हुई सृष्टि को देखा तो वे अत्यंत प्रसन्न हुए और इस खुशी में उनकी आंखों से आंसू बह निकले।

इन्हीं आंसुओं की एक बूंद जब धरती पर गिरी, तो उससे पहला आंवले का वृक्ष उत्पन्न हुआ।

इसीलिए आंवले के वृक्ष को धरती का सबसे पहला पेड़ माना जाता है।

आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने के हैं चमत्कारी लाभ

अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।

ऐसा करने से कई तरह के लाभ माने गए हैं:

  • रोगों का नाश: मान्यता है कि इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने से सभी तरह के रोगों का नाश होता है और अच्छी सेहत प्राप्त होती है।
  • देवताओं की कृपा: आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु और शिवजी दोनों का वास माना जाता है। इसके नीचे भोजन करने से भक्तों को दोनों देवताओं की कृपा एक साथ प्राप्त होती है।
  • धन-संपदा में वृद्धि: चूंकि इस परंपरा की शुरुआत देवी लक्ष्मी ने की थी, इसलिए ऐसा करने से घर में धन-संपदा और सुख-शांति बनी रहती है।

इस तरह करें अक्षय नवमी की पूजा, मिलेगा अक्षय पुण्य

अक्षय नवमी के दिन सही विधि से पूजा-अर्चना करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। यह है पूजन की सरल विधि:

  1. स्नान और संकल्प: सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद हाथ में जल, अक्षत (चावल) और फूल लेकर अक्षय नवमी का व्रत और पूजा करने का संकल्प लें।
  2. वृक्ष को जल चढ़ाएं: शुभ मुहूर्त में आंवले के वृक्ष के पास जाएं। सबसे पहले उसकी जड़ में जल चढ़ाएं।
  3. वृक्ष की पूजा: आंवले के वृक्ष पर हल्दी, कुमकुम, चंदन, फल-फूल और मिठाई चढ़ाएं। एक दीपक जलाएं।
  4. परिक्रमा और प्रार्थना: आंवले के वृक्ष के चारों ओर कच्चा सूत या मौली लपेटते हुए आठ बार परिक्रमा करें। इसके बाद भगवान विष्णु, भगवान शिव और देवी लक्ष्मी से प्रार्थना करें और उनका आशीर्वाद मांगें।
  5. भोग लगाएं: आंवले के वृक्ष के नीचे ही भोजन बनाएं। इस भोजन में आंवले की सब्जी या चटनी आदि जरूर शामिल करें। सबसे पहले इस भोग को तीनों देवताओं को अर्पित करें।
  6. दान का महत्व: इस दिन ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोजन कराना और दान देना अत्यंत फलदायी माना गया है। ऐसा करने से धन और सुख की प्राप्ति होती है।
  7. स्वयं भोजन करें: पूजन और दान के बाद परिवार के साथ आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करें। भोजन में आंवले का सेवन अवश्य करें।

अक्षय नवमी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त

  • अक्षय नवमी तिथि: 31 अक्टूबर, 2025 (गुरुवार)
  • नवमी तिथि आरंभ: 30 अक्टूबर, सुबह 10 बजकर 06 मिनट से
  • नवमी तिथि समापन: 31 अक्टूबर, सुबह 10 बजकर 03 मिनट तक
  • पूजा का शुभ मुहूर्त: 31 अक्टूबर, सुबह 06 बजकर 44 मिनट से 10 बजकर 03 मिनट तक

अक्षय नवमी हिंदू धर्म का एक ऐसा पावन पर्व है जो हमें प्रकृति और देवताओं के साथ सकारात्मक संबंध स्थापित करने की प्रेरणा देता है।

आंवला जहाँ सेहत के लिए गुणकारी है, वहीं इस दिन इसकी पूजा और इसके नीचे भोजन करने की परंपरा आध्यात्मिक लाभ प्रदान करती है।

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