10 Controversial Books: कई लोगों को किताबें पढ़ने का बहुत शौक होता है।
दुनियाभर में अनगिनत किताबें हैं, लेकिन हम आपको उन किताबों के बारे में बताएंगे, जो भारतीय राजनीति में विवाद का कारण बनीं।
इनमें कांग्रेस पार्टी से जुड़े नेताओं और उनके कार्यकाल पर लिखी गई किताबें प्रमुख रूप से शामिल हैं।
वैसे तो विवादित किताबों और कांग्रेस पार्टी का गहरा नाता है।
लेकिन, यह किताबें ना सिर्फ कांग्रेस के लिए सिरदर्द बनीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी पर भी इसका असर पड़ा।
तो आइए जानतें हैं वो 10 किताबें जिनकी वजह से भारत में जमकर विवाद हुआ।
विवादित किताबों का कांग्रेस और बीजेपी पर असर
भारतीय राजनीति में कई किताबें विवादों का कारण बन चुकी हैं।
हाल ही में कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर की नई किताब ‘ए मिवरिक इन पॉलिटिक्स‘ ने एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी को मुश्किल में डाल दिया है।
इस किताब में अय्यर ने दावा किया है कि अगर 2012 में डॉ. मनमोहन सिंह की जगह प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री बनाया जाता, तो कांग्रेस को 2014 के लोकसभा चुनाव में इतनी बुरी हार का सामना नहीं करना पड़ता।
इसके साथ ही उन्होंने गांधी परिवार से अपनी सीमित बातचीत का भी उल्लेख किया, जिससे यह साफ होता है कि पार्टी के भीतर वे अब हाशिए पर हैं।
यह पहली बार नहीं है जब किसी किताब ने कांग्रेस को मुश्किल में डाला हो।
देश की सबसे पुरानी पार्टी अक्सर ऐसी किताबों के चलते निशाने पर आई है, जिनमें पार्टी की नीतियों और नेतृत्व की आलोचना की गई हो।
इन किताबों ने न केवल राजनीतिक हलकों में हड़कंप मचाया, बल्कि पार्टियों को सफाई देने पर भी मजबूर किया।
खासकर कांग्रेस पार्टी के लिए, इन किताबों ने कई बार अंदरूनी कलह और नेतृत्व पर सवाल खड़े किए।
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‘द इमरजेंसी: ए पर्सनल हिस्ट्री‘ (लेखक: कोमी कपूर)
2015 में प्रकाशित इस किताब में आपातकाल (1975-1977) के दौरान कांग्रेस नेताओं के तानाशाही रवैये की आलोचना की गई।
इसमें विपक्षी नेताओं को जेल में बंद करने और मीडिया पर प्रतिबंध लगाने जैसे मामलों का जिक्र है।
कोमी कपूर की लिखी इस किताब में आपातकाल के समय हुई घटनाओं का जिक्र किया गया है।
साल 1975 में लगाई गई इमरजेंसी का ब्यौरा देती ये किताब उस समय के कांग्रेस नेताओं के रवैये की आलोचना करती है।
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‘नेहरू: द इन्वेंशन ऑफ इंडिया‘ (लेखक: शशि थरूर)
इस किताब में पंडित नेहरू के समाजवादी दृष्टिकोण और उनकी नीतियों का विश्लेषण किया है।
हालांकि, इसमें सांप्रदायिक दंगों और अन्य मुद्दों पर सवाल उठाए जाने से विवाद हुआ।
कांग्रेस के चर्चित नेता और सांसद शशि थरूर ने इस किताब में आजादी के बाद नेहरू के शासनकाल का विश्लेषण किया है।
हालांकि, इस किताब में उन्होंने संतुलन बनाते हुए कई जगहों पर आलोचनात्मक रवैया भी अपनाया है, जिससे नए विवाद का जन्म हुआ।
शशि थरूर ने देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू की समाजवादी-संरक्षणवादी सोच पर भी सवाल उठाए हैं।
इसके साथ ही उनके शासनकाल में सांप्रदायिक दंगों को रोकने के लिए उठाए गए कदमों पर भी सवाल उठाए हैं।
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‘जिन्ना: इंडिया, पार्टिशन, इंडिपेंडेंस‘ (लेखक: जसवंत सिंह)
2009 में आई इस किताब में विभाजन के लिए महात्मा गांधी और नेहरू को भी जिम्मेदार ठहराया।
किताब ने कांग्रेस को तो घेरा ही, साथ ही बीजेपी को भी विवादों में डाल दिया।
बीजेपी नेता और वाजपेयी सरकार में वित्त और विदेश मंत्री रहे जसवंत सिंह की ये किताब पाकिस्तान की मांग करने वाले जिन्ना को लेकर आम भारतीयों की धारणा के खिलाफ है।
इस किताब में दावा किया गया है कि पंडित नेहरू और महात्मा गांधी ने जिस तरह हिंदू-मुस्लिम झगड़ों को लेकर रवैया अपनाया था, इसकी वजह से जिन्ना ने अलग देश बनाने की मांग की थी।
इस किताब में आलोचना कांग्रेस नेताओं की गई थी, लेकिन विवादों में बीजेपी भी फंस गई, जिसके बाद बीजेपी ने जसवंत सिंह पार्टी से निकाल दिया था।
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‘इंडिया आफ्टर गांधी‘ (लेखक: रामचंद्र गुहा)
यह किताब आजादी के बाद भारत के राजनीतिक इतिहास पर आधारित है।
इसमें कांग्रेस शासनकाल की आलोचना की गई है, विशेषकर दंगों और आर्थिक नीतियों को लेकर।
इतिहासकार रामचंद्र गुहा की लिखी ये किताब एक भारत के राजनीतिक इतिहास का अहम दस्तावेज है।
इस किताब में तमाम राजनेताओं और पार्टियों के शासनकाल के बारे में संतुलित विश्लेषण किया गया है।
ये किताब भी विवादों के घेरे में रही।
रामचंद्र गुहा ने इस किताब के जरिए कांग्रेस के शासनकाल में हुए दंगों और आर्थिक नीतियों के बारे में लिखा है और पार्टी इससे सवालों के घेरे में आ गई।
हालांकि, किताब में बीजेपी, संघ परिवार और दक्षिणपंथी विचारधारा के बारे में भी लिखा गया है।
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‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर‘ (लेखक: संजय बारू)
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू की ये किताब काफी चर्चा में रही, जिस पर एक चर्चित फिल्म भी बन चुकी है।
किताब में मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल के बारे में कई विवादित घटनाओं का जिक्र किया गया है।
इसमें बताया गया है कि मनमोहन कैबिनेट से ऊपर एक सुपर कैबिनेट थी, जिसको उस समय की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी चलाती थीं।
कई बार सरकार फैसलों पर सुपर कैबिनेट ही अंतिम मुहर लगाती थी।
संजय बारू ने किताब में दावा किया है कि फैसला लेने कई बार मनमोहन सिंह को किनारे कर दिया जाता था जबकि वो प्रधानमंत्री थे।
किताब में मनमोहन सिंह को एक कमजोर नेता के तौर पर दिखाया गया है।
जबकि, दावा ये भी किया गया है कि साल 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के हीरो मनमोहन सिंह थे, लेकिन श्रेय गांधी परिवार को दिया गया।
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‘क्रुसेडर ऑर कन्सपाइरेटर? कोलगेट एंड अदर ट्रुथ‘ (लेखक: पीसी पारेख)
कोयला घोटाले पर आधारित यह किताब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की प्रशासनिक कमजोरी को उजागर करती है।
पूर्व कोयला सचिव पीसी पारेख की ये किताब कोयला घोटाले का सीधा दोषी उस समय मनमोहन सिंह को बताती है।
किताब में लिखा गया है कि व्यक्तिगत तौर मनमोहन सिंह एकदम साफ हैं. लेकिन, उनका अपने मंत्रियों पर नियंत्रण नहीं था।
पीसी पारेख ने इस किताब में दावा किया कोयला खनन के पट्टों में पारदर्शिता को लागू करने में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पूरी तरह से नाकाम साबित हुए।
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‘वन लाइफ इज नॉट इनफ‘ (लेखक: के. नटवर सिंह)
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे नटवर सिंह ने अपनी आत्मकथा में गांधी परिवार और मनमोहन सिंह के कार्यकाल पर गंभीर सवाल उठाए, जिससे पार्टी को सफाई देनी पड़ी।
नटवर सिंह की आत्मकथा रही ये किताब कांग्रेस के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हुई।
उन्होंने इस किताब के जरिए पार्टी के अंदर की राजनीति और मनमोहन सिंह के कार्यकाल की आलोचना की है।
सिंह ने पार्टी और सरकार में लिए गए फैसलों की प्रक्रिया के बारे में बताया है जो कि विवाद का विषय बन गए।
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‘द प्रेसिडेंशियल इयर्स‘ (लेखक: प्रणब मुखर्जी)
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी इस किताब में कांग्रेस के पतन और सोनिया गांधी की निर्णय लेने की अक्षमता पर टिप्पणी की।
यह किताब कांग्रेस के लिए विवाद का कारण बनी और पार्टी के नेताओं पर कई सवाल खड़े किए।
किताब में कांग्रेस और सोनिया गांधी पर टिप्पणी को लेकर उठे विवाद के बाद प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी ने किताब पर तब तक रोक लगाने की मांग की गई थी, लेकिन बाद में इसको पब्लिश कर दिया गया।
प्रणब मुखर्जी ने लिखा कि कांग्रेस का अपने ही करिश्माई नेतृत्व के खत्म होने की पहचान नहीं कर पाई और 2014 में बड़ी हार का सामना करना पड़ा।
प्रणब मुखर्जी ने लिखा कि उनके राष्ट्रपति बनने के बाद पार्टी ने दिशा खो दी थी और सोनिया गांधी सही फैसले नहीं कर पा रही थीं।
वहीं इस किताब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी आलोचना की गई है।
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‘द डिसेंट ऑफ एअर इंडिया‘ (लेखक: जितेंद्र भार्गव)
इस किताब में एअर इंडिया के पतन के लिए मनमोहन सिंह सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया गया।
एअर इंडिया के पूर्व कार्यकारी निदेशक रहे जितेंद्र भार्गव ने इस किताब के जरिए विमान सेवा देने वाली सरकारी कंपनी एअर इंडिया के ढहने के पीछे मनमोहन सिंह सरकार की नीतियों को बताया है।
किताब में दावा किया गया है कि यूपीए सरकार में किस तरह से फैसले लिए गए जो सार्वजनिक सेवा इस कंपनी के लिए बर्बादी की वजह बने।
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‘राजनीति के 5 दशक‘ (लेखक: सुशील कुमार शिंदे)
इस किताब में भगवा आतंकवाद का जिक्र और कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दों पर किए गए खुलासों ने कांग्रेस को विपक्षी दलों के निशाने पर ला दिया।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मनमोहन सरकार में गृहमंत्री रहे सुशील कुमार शिंदे की किताब में साल 2013 में जयपुर में आयोजित कांग्रेस के चिंतन शिविर में भगवा आतंकवाद का जिक्र है।
लेकिन, उन्होंने इसे पहली बार गृह मंत्रालय की एक गोपनीय फाइल में पढ़ा था।
उन्होंने कहा ये बयान देने से पहले मामले की तह तक भी गए थे।
इसके साथ ही उन्होंने किताब के विमोचन के दौरान कहा कि कश्मीर के लालचौक जाने की सलाह पर वो डर गए थे।
शिंदे की ओर से आए इन बयानों के बाद कांग्रेस और बीजेपी के निशाने पर आ गई थी।