Bangladesh Dress Code Controversy: बांग्लादेश में हाल ही में बैंक कर्मचारियों के लिए जारी किए गए नए ड्रेस कोड को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया।
केंद्रीय बैंक ने पुरुष और महिला कर्मचारियों के लिए कपड़ों से जुड़े सख्त नियम बनाए थे, जिसमें शॉर्ट्स, स्लीवलेस ड्रेस और लेगिंग्स पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
हालांकि, सोशल मीडिया और सार्वजनिक विरोध के बाद बैंक को यह आदेश वापस लेना पड़ा।
क्या थे नए नियम?
बांग्लादेश बैंक ने एक सर्कुलर जारी कर बैंक कर्मचारियों के लिए ड्रेस कोड तय किया था, जिसमें कहा गया था:
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महिलाएं शॉर्ट्स, स्लीवलेस कपड़े और लेगिंग्स नहीं पहन सकेंगी। उन्हें साड़ी, सलवार-कमीज या हिजाब/स्कार्फ के साथ फॉर्मल कपड़े पहनने होंगे।
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पुरुषों के लिए जींस, चिनो पैंट और अन्य कैजुअल ड्रेस पर रोक लगाई गई। उन्हें फॉर्मल शर्ट-पैंट और जूते पहनने के निर्देश दिए गए।
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नियमों का पालन न करने वालों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी भी दी गई।
तालिबान से तुलना और विरोध
इन नियमों की सख्ती और महिलाओं के कपड़ों पर पाबंदी को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया हुई।
कई लोगों ने इसे तालिबानी फरमानों से जोड़ा, जहां अफगानिस्तान में महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर बुर्का पहनना अनिवार्य है।
एक यूजर ने लिखा, “यह तालिबानीकरण की शुरुआत है।”
बांग्लादेश महिला परिषद की अध्यक्ष फौजिया मुस्लिम ने भी इसे “अभूतपूर्व और चिंताजनक” बताया। उन्होंने कहा कि यह महिलाओं की आजादी पर हमला है।
सरकार और बैंक का पलटवार
विवाद बढ़ने के बाद बांग्लादेश बैंक के प्रवक्ता आरिफ हुसैन खान ने स्पष्ट किया कि यह सिर्फ एक सलाह थी, न कि अनिवार्य आदेश।
उन्होंने कहा, “हिजाब या बुर्का पहनना जरूरी नहीं है।”
अंततः बैंक ने इस सर्कुलर को वापस ले लिया।
क्या बांग्लादेश में बढ़ रहा है कट्टरपंथी प्रभाव?
यह घटना ऐसे समय में हुई है जब बांग्लादेश में कट्टरपंथी विचारधारा का प्रभाव बढ़ने की खबरें आ रही हैं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुछ युवा तालिबान और TTP (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) जैसे संगठनों से प्रभावित हो रहे हैं।
पिछले कुछ महीनों में कई बांग्लादेशी नागरिकों को अफगानिस्तान और पाकिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों में शामिल पाया गया है।
बांग्लादेश में यह विवाद धार्मिक रूढ़िवाद बनाम आधुनिकता की बहस को फिर से उजागर करता है। हालांकि बैंक ने अपना आदेश वापस ले लिया, लेकिन इससे सवाल उठता है कि क्या देश में धीरे-धीरे तालिबानी सोच फैल रही है?
सरकार और नागरिक समाज को इस दिशा में सतर्क रहने की जरूरत है।
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