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हलवाई को नहीं मिली सैलरी तो दिन भर भूखे रहे बांके बिहारी, वृंदावन में टूटी सदियों पुरानी परंपरा

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Banke Bihari Tradition Broken वृंदावन के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में सोमवार 15 दिसंबर को सदियों से चली आ रही एक पवित्र परंपरा टूट गई।

यहां ठाकुर जी यानी बांके बिहारी को सुबह का बाल भोग और रात का शयन भोग नहीं चढ़ाया गया।

इसका मुख्य कारण था मंदिर के हलवाई मयंक गुप्ता को वेतन न मिलना।

वेतन के बकाया होने से नाराज हलवाई ने भोग तैयार करने से मना कर दिया, जिससे यह स्थिति उत्पन्न हुई।

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वेतन विवाद की वजह से भूखे रहे ठाकुर जी 

श्री बांके बिहारी मंदिर में हर दिन ठाकुर जी को चार बार भोग लगता है:

  1. सुबह बाल भोग
  2. दोपहर राजभोग
  3. शाम उत्थापन भोग 
  4. रात में शयन भोग

इन्हें तैयार करने की जिम्मेदारी हलवाई मयंक गुप्ता की है, जिन्हें हर महीने लगभग 80,000 रुपये वेतन मिलता है।

हालांकि, पिछले कई महीनों से उन्हें वेतन नहीं मिला था।

इसी नाराजगी में उन्होंने सोमवार को बाल भोग और शयन भोग तैयार नहीं किया।

परिणामस्वरूप, सैकड़ों सालों से चली आ रही यह अनूठी परंपरा पहली बार टूट गई और ठाकुर जी बिना भोग के रह गए।

कमेटी में मचा हड़कंप

इस घटना की जानकारी मिलते ही मंदिर प्रबंधन में हड़कंप मच गया। मंदिर के गोस्वामी इस घटना से काफी नाराज हैं।

उनका कहना है कि ठाकुर जी की सेवा में किसी भी प्रकार की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जा सकती।

वहीं, मंदिर की देखरेख के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित हाई-पावर कमेटी ने स्थिति को गंभीरता से लिया है।

कमेटी ने आश्वासन दिया है कि हलवाई का बकाया वेतन तुरंत दिया जाएगा और भविष्य में इस तरह की घटना दोबारा न हो, इसके लिए सख्त निर्देश जारी किए जाएंगे।

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इस बीच, दर्शनार्थी श्रद्धालु भी इस घटना पर चर्चा करते नजर आए।

आखिर क्यों जरूरी है यह भोग परंपरा?

बांके बिहारी मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भक्ति और परंपराओं का केंद्र है।

यहां आने वाले लाखों श्रद्धालु ठाकुर जी के दर्शन के साथ-साथ उनके प्रसाद का आशीर्वाद भी प्राप्त करते हैं।

भोग लगाना यहाँ की दैनिक अनुष्ठानिक सेवा का एक अभिन्न अंग है।

मान्यता है कि भगवान को चढ़ाया गया भोग उनकी कृपा का प्रतीक है, जो बाद में प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित होता है।

इसलिए, भोग की नियमितता में कोई भी व्यवधान भक्तों की आस्था को प्रभावित करता है।

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क्या होगा आगे?

एक तरफ जहां भक्तों की आस्था सर्वोपरि है, वहीं मंदिर से जुड़े कर्मचारियों के हकों का ध्यान रखना भी उतना ही जरूरी है।

उम्मीद है कि प्रबंधन इस घटना से सबक लेगा और भविष्य में सेवाओं और प्रशासन के बीच बेहतर तालमेल सुनिश्चित करेगा, ताकि ऐसी स्थिति दोबारा न उत्पन्न हो और सदियों पुरानी परंपराएं निर्बाध रूप से चलती रहें।

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