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भोपाल में कार्बाइड गन पर लगा प्रतिबंध: 150 लोगों की आंखों की रोशनी गई, 300 से अधिक घायल

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Bhopal Carbide Gun Ban: दिवाली का त्योहार जहां खुशियां लेकर आता है, वहीं इस बार मध्य प्रदेश, खासकर भोपाल के लिए एक बड़ी त्रासदी का कारण बन गया।

पटाखों के विकल्प के रूप में इस्तेमाल होने वाली ‘कार्बाइड गन’ ने सैकड़ों लोगों, खासकर बच्चों की आंखों की रोशनी को गंभीर नुकसान पहुंचाया है।

भोपाल की बात करें तो अलग-अलग अस्पतालों में ऐसे 162 लोग पहुंचे हैं। करीब 300 लोगों की आंखें इस गन से घायल हुई है, जबकि 150 लोगों की आंखों की रोशनी जा चुकी है।

इस भयावह स्थिति के बाद भोपाल के जिला कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने गुरुवार को तत्काल प्रभाव से कार्बाइड गन की बिक्री, खरीद और भंडारण पर प्रतिबंध लगा दिया है।

आंखों को क्या हुआ नुकसान? 

नेत्र रोग विशेषज्ञों का कहना है कि इस गन से हुई चोटें सामान्य नहीं हैं।

कैल्शियम कार्बाइड में मौजूद फॉस्फोरस और आर्सेनिक जैसे जहरीले तत्वों ने आंखों की कोमल नसों और कॉर्निया (आंख का स्पष्ट सामने वाला हिस्सा) की कोशिकाओं को स्थायी नुकसान पहुंचाया है।

कई मरीजों की आंखों में इसके महीन कण अंदर तक घुस गए हैं, जिन्हें निकालना डॉक्टरों के लिए एक बड़ी चुनौती है।

इस हादसे में घायल लगभग 50% मरीजों ने अपनी आंखों की रोशनी पूरी तरह या आंशिक रूप से खो दी है।

डॉक्टर बोले- ट्रांसप्लांट के लिए कॉर्निया मिलना मुश्किल

कई मरीजों को सिर्फ एक सफेद रोशनी का गोला ही दिखाई दे रहा है।

अस्पतालों में डॉक्टर ‘एमनियोटिक मेम्ब्रेन इम्प्लांट’ और ‘टिशू ग्राफ्टिंग’ जैसी जटिल प्रक्रियाओं के जरिए आंखों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।

हालांकि, कई मामलों में अंतिम उपाय ‘कॉर्निया ट्रांसप्लांट’ ही बचा है, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में ट्रांसप्लांट के लिए कॉर्निया का मिलना अपने आप में एक बहुत बड़ी मुश्किल है।

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प्रतिबंध से पहले और बाद की कार्रवाई

सबसे दुखद पहलू यह है कि इस खतरे के बारे में अधिकारियों को पहले से ही चेतावनी मिली हुई थी।

भोपाल के ICMR (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) ने 2023 में ही एक रिसर्च जारी कर चेतावनी दी थी कि यह गन एक ‘विस्फोटक उपकरण’ की श्रेणी में आती है और इससे आंखों की रोशनी जा सकती है।

लेकिन समय रहते कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

दिवाली के बाद जब भोपाल समेत पूरे प्रदेश के अस्पतालों में सैकड़ों घायलों, जिनमें 7 से 14 साल के बच्चे शामिल हैं की भीड़ लगना शुरू हुई, तब प्रशासन की नींद खुली।

भोपाल के कलेक्टर ने धारा-163 के तहत प्रतिबंध का आदेश जारी किया।

इस आदेश के बाद अब कोई भी व्यक्ति इस गन को बेचते, खरीदते या अपने पास रखते हुए पकड़ा गया, तो उसके खिलाफ FIR दर्ज की जाएगी।

भोपाल और ग्वालियर में पहले ही दो विक्रेताओं को गिरफ्तार किया जा चुका है।

राजनीति शुरू: सरकार पर उठे सवाल, BJP ने किया पलटवार

इस पूरे हादसे ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस नेता उमंग सिंघार ने घायल बच्चों से मिलने अस्पताल पहुंचकर सरकार पर जमकर हमला बोला।

उन्होंने इसे ‘हादसा’ नहीं बल्कि ‘सरकारी अपराध’ बताया।

उनका सवाल था कि जब मुख्यमंत्री ने पहले ही इनकी बिक्री पर रोक के आदेश दिए थे, तो जमीन पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?

वहीं, भाजपा ने इसका पलटवार करते हुए कहा कि सरकार संवेदनशील है और घटना के बाद तुरंत जरूरी कदम उठाए गए हैं।

उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला भी घायलों से मिलने अस्पताल पहुंचे और बेहतर इलाज के निर्देश दिए।

कैसे बनी यह ‘देसी गन’ जानलेवा? 

कार्बाइड गन कोई नई बंदूक नहीं है, बल्कि एक खतरनाक ‘जुगाड़’ है जिसे सोशल मीडिया पर ‘बंदर भगाने का देसी तरीका’ बताकर वायरल किया गया था।

  • यह गन सिर्फ 100 से 200 रुपए में बाजार में आसानी से मिल जाती थी।
  • इसके खतरे का राज इसके अंदर भरे जाने वाले केमिकल ‘कैल्शियम कार्बाइड’ में छिपा है।
  • जब इस गन में कैल्शियम कार्बाइड के टुकड़े डालकर थोड़ा पानी डाला जाता है, तो एक रासायनिक प्रतिक्रिया होती है।
  • इस प्रतिक्रिया से ‘एसिटिलीन’ नाम की एक ज्वलनशील गैस पैदा होती है।
  • जैसे ही इस गन का ट्रिगर दबाया जाता है, यह गैस तेज आवाज के साथ विस्फोटक रूप से जल उठती है। लेकिन खतरा सिर्फ विस्फोट तक सीमित नहीं है।

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  • डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस प्रक्रिया में निकलने वाली गर्मी और रसायन आंखों के लिए बेहद घातक साबित होते हैं।
  • यह एक ‘थर्मो-केमिकल बर्न’ पैदा करती है, जो सामान्य आग या पटाखे से लगी चोट से कहीं ज्यादा खतरनाक होती है।

भोपाल में कार्बाइड गन की वजह से हुई यह घटना एक दुखद सबक है।

यह दिखाती है कि सस्ते और आकर्षक दिखने वाले जुगाड़ कितने खतरनाक साबित हो सकते हैं।

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