Bhopal Gas Tragedy : आज से ठीक 41 साल पहले 2-3 दिसंबर 1984 की रात, भोपाल शहर में दुनिया की सबसे भयानक औद्योगिक त्रासदी घटी।
यूनियन कार्बाइड कंपनी के कीटनाशक कारखाने से जहरीली मिथाइल आइसोसाइनाइट (MIC) गैस का रिसाव हुआ, जिसने हज़ारों लोगों की जान ले ली और लाखों को जीवनभर के लिए बीमार बना दिया।
इस हादसे में करीब 8,000 लोगों की तत्काल मौत हुई और 4 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए।
कंपनी की लापरवाही और सिस्टम की विफलता
इस त्रासदी के पीछे कंपनी की गंभीर लापरवाही और सरकारी तंत्र की विफलता थी।
कंपनी के मालिक वारेन एंडरसन को भारत लाया गया और गिरफ्तार किया गया, लेकिन अमेरिकी दबाव और कानूनी खामियों के चलते उन्हें जमानत मिल गई।
वे अमेरिका वापस चले गए और कभी भारत नहीं लौटे।

दुखद सच यह है कि आज 41 साल बाद भी भोपाल के पीड़ितों को पूरा न्याय नहीं मिला है।
कैसे हुआ विनाशकारी रिसाव?
प्लांट का इतिहास और सुरक्षा में कमियां
1970 के दशक में भारत सरकार की नीतियों के तहत यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन ने भोपाल में कीटनाशक संयंत्र स्थापित किया।
शुरुआत में प्लांट को केवल आयातित रसायनों से कीटनाशक बनाने की अनुमति थी, लेकिन बाद में कंपनी ने पूरी उत्पादन प्रक्रिया यहीं शुरू कर दी, जो अधिक खतरनाक थी।
1984 तक संयंत्र घाटे में चल रहा था। सुरक्षा उपकरणों को नज़रअंदाज किया जा रहा था:
- वेंट गैस स्क्रबर तीन हफ्ते पहले बंद कर दिया गया था
- 30 टन की रेफ्रिजरेशन इकाई बंद थी
- गैस फ्लेयर सिस्टम तीन महीने से काम नहीं कर रहा था

वो भयानक रात: 2-3 दिसंबर 1984
रात 11 बजे, एक ऑपरेटर ने MIC टैंक में दबाव बढ़ते देखा। एक दोषपूर्ण वाल्व के कारण 1 टन पानी 40 टन MIC के संपर्क में आ गया, जिससे खतरनाक रासायनिक प्रतिक्रिया शुरू हो गई।
रात 1 बजे, सुरक्षा वाल्व फट गया और जहरीली गैस का बादल शहर में फैलने लगा।
कुछ ही घंटों में भोपाल की सड़कें इंसानों और जानवरों की लाशों से पट गईं।
लोग आंखों में जलन, सांस लेने में तकलीफ के साथ बेहोश हो रहे थे।
तत्कालिक और दीर्घकालिक प्रभाव
तात्कालिक प्रभाव (0-6 महीने):
- 3,800 से 8,000 लोगों की तुरंत मौत
- आंखों में जलन, लालिमा, अल्सर
- सांस लेने में दिक्कत, फेफड़ों में सूजन
- लगातार दस्त और पेट दर्द
- मानसिक तनाव, चिंता, न्यूरोसिस
- याददाश्त और एकाग्रता में कमी
दीर्घकालिक प्रभाव (6 महीने के बाद):
- 15,000-20,000 लोगों की समय से पहले मौत
- पुरानी आंखों की समस्याएं
- सांस की बीमारियां
- प्रजनन संबंधी समस्याएं
- कैंसर के मामले
- बच्चों में जन्मजात विकलांगता
- मानसिक और न्यूरोलॉजिकल विकार
सरकारी आंकड़ों के अनुसार 5 लाख से अधिक लोग गैस के संपर्क में आए।
कई लोग त्रासदी के बाद भोपाल छोड़कर चले गए, इसलिए वास्तविक संख्या इससे भी अधिक हो सकती है।

न्याय की लड़ाई और मुआवजे का मामला
हादसे के बाद यूनियन कार्बाइड ने जिम्मेदारी से बचने की कोशिश की।
मार्च 1985 में भारत सरकार ने ‘भोपाल गैस रिसाव आपदा अधिनियम’ लागू किया, जिससे सरकार पीड़ितों की एकमात्र प्रतिनिधि बन गई।
1989 में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय की मध्यस्थता में यूनियन कार्बाइड ने 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर (करीब 470 करोड़ रुपये) मुआवजा देने पर सहमति जताई।
यह रकम प्रभावितों की वास्तविक संख्या के आधार पर बहुत कम थी।
मुआवजे का वितरण:
- मरने वाले के परिवार को औसतन 2,200 डॉलर (करीब 1.65 लाख रुपये)
- 5,54,895 लोगों को चोट के आधार पर मुआवजा
- 15,310 लोगों को स्थायी विकलांगता का मुआवजा

अधूरे सवाल और छिपाई गई सच्चाई
41 साल बाद भी कई सवाल अनुत्तरित हैं:
- गैस की सही संरचना: कंपनी ने कभी नहीं बताया कि जहरीले बादल में क्या था। सबूत बताते हैं कि इसमें हाइड्रोजन साइनाइड भी था, जो MIC से भी ज़्यादा खतरनाक है।
- सफाई की जिम्मेदारी: कंपनी ने प्लांट को पूरी तरह साफ नहीं किया, जिससे ज़हरीले रसायन भूजल में मिलते रहे।
- दूषित पानी: आज भी भोपाल के कई इलाकों का पानी पीने लायक नहीं है, जिससे नई पीढ़ी भी बीमारियों का शिकार हो रही है।
सबक और वर्तमान स्थिति
भोपाल त्रासदी से महत्वपूर्ण सबक मिलते हैं:
- औद्योगिक सुरक्षा मानकों का कड़ाई से पालन ज़रूरी है
- पर्यावरणीय नियमों को लचीला नहीं बनाया जाना चाहिए
- जन सुरक्षा को कॉर्पोरेट मुनाफे से ऊपर रखना चाहिए
- पारदर्शिता और जवाबदेही औद्योगिक प्रक्रियाओं का अभिन्न अंग होने चाहिए
भोपाल के लोग आज भी स्वास्थ्य समस्याओं, आर्थिक तंगी और सामाजिक कलंक से जूझ रहे हैं।
दूसरी और तीसरी पीढ़ी में भी जन्मजात विकलांगता और बीमारियां देखी जा रही हैं।

सवाल और अधूरा न्याय
भोपाल गैस त्रासदी सिर्फ एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि एक जीवित त्रासदी है जो आज भी हज़ारों परिवारों के जीवन को प्रभावित कर रही है।
यह मानवीय लापरवाही, कॉर्पोरेट लालच और प्रशासनिक विफलता का काला अध्याय है।
41 साल बाद भी न्याय की पूरी उम्मीद नहीं मिली है।
वारेन एंडरसन की मृत्यु हो चुकी है, लेकिन भोपाल के पीड़ित आज भी इलाज, मुआवजे और सम्मान के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
यह त्रासदी हमें याद दिलाती है कि औद्योगिक विकास मानव सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण की कीमत पर नहीं होना चाहिए।
भोपाल गैस त्रासदी के 41 वर्ष: एक ऐसी दुर्घटना जिसने न केवल हज़ारों जानें लीं, बल्कि पीढ़ियों को प्रभावित किया और औद्योगिक सुरक्षा के मानकों पर गंभीर सवाल खड़े किए है।


