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बिहार चुनाव 2025: वोटिंग से पहले ही 467 उम्मीदवार हुए बाहर, जानें क्यों रद्द हुआ नामांकन?

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Bihar Election Nomination Cancel: बिहार विधानसभा चुनाव की वोटिंग से पहले एक बड़ा भूचाल आया है। चुनाव आयोग की सख्ती के चलते अब तक 467 उम्मीदवारों का नामांकन पत्र रद्द किया जा चुका है।

यह झटका सत्ता पक्ष एनडीए और विपक्षी महागठबंधन दोनों को लगा है, क्योंकि दोनों गठबंधनों के कई प्रमुख चेहरे चुनावी दौड़ से बाहर हो गए हैं।

यह घटना चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और नियमों की कठोरता को तो रेखांकित कर रही है, साथ ही राजनीतिक दलों की तैयारियों पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर रही है।

नामांकन रद्द होने के कारण क्या हैं?

चुनाव आयोग ने नामांकन रद्द करने के पीछे कुछ खास तकनीकी कारण बताए हैं।

इनमें से ज्यादातर मामलों में उम्मीदवारों से जुड़े दस्तावेजों में कमी पाई गई।

आइए इन कारणों पर नजर डालते हैं:

अपूर्ण शपथ-पत्र (Incomplete Affidavit): 

कई उम्मीदवारों ने अपने शपथ-पत्र में जरूरी जानकारियां, जैसे कि मूल निवास, जाति प्रमाण-पत्र या आय के स्रोत, पूरी तरह से नहीं भरे। इस श्रेणी में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की प्रत्याशी श्वेता सुमन आती हैं, जिनका मोहिनया सीट से नामांकन इसी आधार पर रद्द हुआ।

प्रस्तावकों की अधूरी जानकारी (Incomplete Proposer Details): 

नामांकन दाखिल करते समय उम्मीदवार को अपने प्रस्तावकों (Proposers) की पूरी और सही जानकारी देना अनिवार्य होता है। महागठबंधन के सहयोगी विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के शशि भूषण सिंह का सुगौली सीट से नामांकन इसलिए रद्द कर दिया गया क्योंकि उन्होंने अपने प्रस्तावकों का ब्योरा ठीक से नहीं दिया।

मतदाता सूची में दोहरी एंट्री (Duplicate Entry in Voter List): 

यह एक गंभीर मामला माना जाता है। अगर किसी उम्मीदवार का नाम एक से ज्यादा मतदाता सूचियों में दर्ज है, तो उसका नामांकन रद्द किया जा सकता है। जहानाबाद सीट से महागठबंधन के उम्मीदवार राहुल शर्मा के खिलाफ यही आरोप है और उनके मामले की जांच currently चल रही है।

पर्याप्त प्रस्तावकों का अभाव (Lack of Sufficient Proposers): 

हर उम्मीदवार को नामांकन दाखिल करने के लिए एक निर्धारित संख्या में प्रस्तावक चाहिए होते हैं। कई निर्दलीय और छोटे दलों के उम्मीदवार इस शर्त को पूरा नहीं कर पाए।

किन-किन बड़े चेहरों को झटका लगा?

नामांकन रद्द होने वालों की सूची में कई जाने-माने नाम शामिल हैं, जिससे साफ है कि चुनाव आयोग ने बड़े और छोटे सभी उम्मीदवारों के साथ एक जैसा व्यवहार किया है।

सीमा सिंह (भोजपुरी अभिनेत्री): एनडीए गठबंधन में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की उम्मीदवार सीमा सिंह का सारण जिले की मढ़ौरा सीट से नामांकन तकनीकी कारणों से रद्द होना एनडीए के लिए पहला बड़ा झटका था।

श्वेता सुमन (RJD): महागठबंधन की प्रमुख पार्टी RJD की उम्मीदवार श्वेता सुमन के नामांकन के रद्द होने से पार्टी की मोहिनया सीट पर मुश्किलें बढ़ गई हैं।

छोटे दलों के उम्मीदवार: पूर्वी चंपारण की मधुबन सीट से तीन उम्मीदवारों – रणधीर कुमार (निर्दलीय), अभिषेक कुमार (भारतीय आम जनता विकास पार्टी) और लक्ष्मण साह (राष्ट्रीय सद्भावना पार्टी) का नामांकन दस्तावेज पूरे न होने के कारण रद्द हुआ।

राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया

इस पूरे मामले ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। दोनों ही गठबंधनों ने इस मामले पर अलग-अलग प्रतिक्रिया दी है।

एनडीए का रुख: एनडीए ने चुनाव आयोग के इस फैसले को ‘नियमों की जीत’ करार दिया है। उनका कहना है कि यह साबित करता है कि चुनावी प्रक्रिया किसी के लिए भी रियायत नहीं बरतती और कानून सबके लिए एक जैसा है।

महागठबंधन का आरोप: वहीं, महागठबंधन की तरफ से इस घटना को ‘दबाव की राजनीति’ बताया जा रहा है। उनका आरोप है कि सत्ता पक्ष की ओर से दबाव डालकर उनके उम्मीदवारों को तकनीकी बारीकियों के आधार पर चुनावी दौड़ से बाहर किया जा रहा है।

चुनाव आयोग का स्पष्टीकरण 

चुनाव आयोग ने अपनी कार्रवाई को पूरी तरह से नियमों के अनुरूप बताया है। आयोग का कहना है कि ऐसे कदम से चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित होती है। यह एक संदेश जाता है कि दस्तावेजों की जांच को हल्के में नहीं लिया जाएगा।

बिहार चुनाव 2025 में इतने बड़े पैमाने पर नामांकन रद्द होना एक बड़ी घटना है। इससे न सिर्फ राजनीतिक दलों की सीट-समझौते की रणनीति प्रभावित हुई है, बल्कि यह भी साबित हुआ है कि चुनाव लड़ने की प्रक्रिया में छोटी-सी चूक बड़ी कीमत पर पड़ सकती है।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कैसे ये दल अपने खोए हुए उम्मीदवारों की जगह वैकल्पिक व्यवस्था करते हैं और यह घटना चुनाव के नतीजों पर क्या असर डालती है।

6 नवंबर को होने वाले पहले चरण के मतदान के बाद इसके राजनीतिक नतीजे और साफ होंगे।

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