भोपाल। सुरेश पचौरी, पूर्व सांसद गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी, कमलेश प्रताप शाह और हरि वल्लभ शुक्ला, कांग्रेस के ये वो बड़े चेहरे हैं जिन्होंने ना सिर्फ अपनी विचारधारा बदली बल्कि अपना ईमान अब उस पार्टी के नाम कर दिया है जिसे रात-दिन पानी पी-पीकर कोसा करते थे।
मध्य प्रदेश में पिछले चार महीने में ईमान बेचने वाले छोटे-बड़े कांग्रेस के 8 हजार से ज्यादा नेताओं ने अपने गले में बीजेपी की विचारधारा का गमछा और हाथ में कमल का फूल थाम लिया है।
देश भर में विपक्षी दलों से करीब 80 हजार से ज्यादा नेता और कार्यकर्ता बीजेपी में पहुंच चुके हैं। यहां पर अब सवाल ये है कि बीजेपी को इसकी जरूरत क्या है। जब बहुत पहले से मोबाइल फोन पर मिस्ड कॉल के जरिये उसने सबसे बड़ा विश्व स्तरीय राजनीतिक संगठन का ताज हासिल कर लिया है।
ऐसे में आये दिन आयातित नेताओं का ऐसा रेला क्यों बना हुआ है। वो भी ऐसा नेताओं को लिया जा रहा है जो आए दिन बीजेपी नेताओं को कोसने में लगे रहते थे।
क्या बीजेपी में नेता आयात नीति के कारण उसके जमीनी कार्यकर्ता आयातितों से खुद को ठगा महसूस नहीं कर रहे हैं। बिलकुल कर रहे होंगे और कर रहे हैं।
बीजेपी के जमीनी कार्यकर्ताओं और संघ से जुड़े कार्यकर्ताओं के बीच से ही यह आवाज लगातार मुखर हो रही है कि जब केन्द्र से लेकर राज्यों और यहां तक कि निगमों, निकायों और पंचायतों तक में संगठन-सरकार की मेहनत से पार्टी की गाड़ी सरपट दौड़ रही है तो उसमें कांग्रेस से लेकर अन्य दलों की आयातित जबरिया सवारियां बैठाकर पूरी गाड़ी अनियंत्रित करने का आत्मघाती कदम पार्टी के कर्ताधर्ता लगातार क्यों उठा रहे हैं?
क्या खांटी भाजपाइयों की ये आवाज बीजेपी हाईकमान तक पहुंचेगी क्योंकि अब पार्टी को संजीवनी देना वाले संगठन संघ से भी अंदरखाने बीजेपी की ‘नेता आयात नीति’ पर सवाल उठने लगे हैं।