Age Of Consent For Sex: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्पष्ट किया है कि यौन संबंधों के लिए सहमति की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष से कम नहीं की जा सकती।
यह बयान एक याचिका की सुनवाई के दौरान दिया गया, जिसमें सहमति की उम्र कम करके 16 साल करने की मांग की गई थी।
सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि POCSO एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012) और भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत नाबालिगों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित की गई है।
सरकार का तर्क: बच्चों को शोषण से बचाना जरूरी
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18 वर्ष की उम्र सोच-समझकर तय की गई
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केंद्र ने कहा कि यह उम्र सीमा विचार-विमर्श के बाद तय की गई है।
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भारतीय न्याय संहिता (BNS) और POCSO कानून इसी सिद्धांत पर आधारित हैं कि 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे यौन सहमति देने में सक्षम नहीं होते।
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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
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1860 में IPC के तहत सहमति की उम्र 10 वर्ष थी, जिसे बाद में बढ़ाकर 12, 14, 16 और आखिरकार 1978 में 18 वर्ष कर दिया गया।
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यह बदलाव बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास को ध्यान में रखते हुए किया गया।
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अपराधियों को बचाव का मौका न मिले
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NCRB और NGOs के आंकड़ों के अनुसार, 50% से ज्यादा बाल यौन शोषण के मामले परिचितों (रिश्तेदारों, शिक्षकों, पड़ोसियों) द्वारा किए जाते हैं।
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अगर सहमति की उम्र कम की गई, तो अपराधी “सहमति” का बहाना बनाकर बच निकलेंगे, जिससे POCSO कानून कमजोर होगा।
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बच्चों को दोषी ठहराने का खतरा
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अगर पीड़ित का शोषक कोई करीबी है, तो बच्चे के लिए विरोध करना या शिकायत दर्ज कराना मुश्किल होता है।
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ऐसे में “सहमति” का तर्क देना बच्चे को ही दोषी ठहराने जैसा होगा।
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क्या न्यायपालिका को विवेकाधिकार मिलेगा?
सरकार ने माना कि कुछ विशेष मामलों में न्यायिक विवेक का उपयोग किया जा सकता है, जैसे:
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दो किशोरों के बीच आपसी सहमति से बने प्रेम संबंध (जहां दोनों की उम्र लगभग 18 वर्ष हो)।
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“Close-in-age” छूट पर विचार किया जा सकता है, लेकिन सामान्य नियम नहीं बनाया जा सकता।
केंद्र सरकार का यह फैसला बच्चों के अधिकारों और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।
सरकार ने स्पष्ट किया कि 18 वर्ष से कम उम्र में सहमति से बने यौन संबंधों को मंजूरी नहीं दी जा सकती, क्योंकि इससे बाल शोषण के मामलों में बढ़ोतरी होगी।