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छतरपुर में पालतू कुत्ते ‘तिलकधारी’ का अंतिम संस्कार: मालिक ने कराया मुंडन, तेरहवीं भोज भी होगा

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Chhatarpur dog funeral: छतरपुर जिले के एक छोटे से गांव पिपट में इंसान और जानवर के बीच ऐसा प्यार देखने को मिला, जिसने सभी के दिलों को छू लिया है।

यहां एक पालतू कुत्ते की मौत के बाद उसके मालिक ने उसका इंसानों जैसे सभी रीति-रिवाजों से अंतिम संस्कार किया।

इतना ही नहीं अब उसकी अस्थियां प्रयागराज ले जाकर गंगा नदी में विसर्जित की जाएंगी और तेरहवीं के दिन पशु-पक्षियों के लिए भंडारा भी कराया जाएगा।

कौन था ‘तिलकधारी’?

यह कहानी है ‘तिलकधारी’ नाम के कुत्ते की, जिसे उसके मालिक राम संजीवन पटेरिया उर्फ सद्दू महाराज ने परिवार के एक सदस्य की तरह पाला था।

करीब 10 साल पहले गांव की एक गली में एक देशी नस्ल की कुतिया ‘रामकली’ ने कुछ पिल्लों को जन्म दिया।

प्रसव के बाद रामकली की मौत हो गई और उसके सभी पिल्ले भी एक-एक करके मर गए, सिवाय एक के।

उस एक जीवित बचे पिल्ले को सद्दू महाराज ने गोद ले लिया और उसका नाम ‘तिलकधारी’ रखा।

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जन्म से ही शुरू हुआ सफर

सद्दू महाराज ने तिलकधारी को सिर्फ पाला ही नहीं, बल्कि उसके सारे संस्कार भी एक इंसान के बच्चे की तरह किए।

जन्म के बाद उसका ‘चौक संस्कार’ (नामकरण) बहुत धूमधाम से मनाया गया।

इस मौके पर बैंड-बाजा बजाया गया, नाच-गाना हुआ और पूरे गांव के लगभग 5000 लोगों को भोजन कराया गया।

तिलकधारी घर का अभिन्न अंग बन गया।

सद्दू महाराज की बेटी उसे रक्षाबंधन पर राखी और भाई दूज पर तिलक बांधती थी।

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भावभीनी विदाई: ‘राम नाम सत्य है’

10 साल बाद बुढ़ापे में तिलकधारी ने अपने मालिक के घर ही आखिरी सांस ली।

उसकी मौत से पूरा परिवार और गांव शोक में डूब गया।

सद्दू महाराज ने तिलकधारी का अंतिम संस्कार पूरे विधि-विधान से करने का फैसला किया।

उन्होंने खुद का मुंडन करवाया, जो कि एक रिवाज है।

तिलकधारी की अंतिम यात्रा घर से श्मशान घाट तक निकाली गई।

इस यात्रा में गांव के सैकड़ों लोग शामिल हुए।

लोगों ने ‘राम नाम सत्य है’ के नारे लगाए, ठीक उसी तरह जैसे किसी इंसान की अंतिम यात्रा में लगाए जाते हैं।

वहां पूरी रस्म के साथ तिलकधारी की चिता जलाई गई और लोगों ने उसे भावभीनी विदाई दी।

प्रयागराज जाएंगी अस्थियां 

अब सद्दू महाराज और उनका परिवार तिलकधारी की अस्थियां (राख) प्रयागराज ले जाएगा।

वहां गंगा नदी में उसका अस्थि विसर्जन किया जाएगा।

इसके बाद, 1 अक्टूबर को उसकी मौत की तेरहवीं मनाई जाएगी।

इस दिन एक अनोखा भंडारा आयोजित किया जाएगा, जिसमें पूरे इलाके के कुत्तों और पशु-पक्षियों को भोजन कराया जाएगा।

उनके लिए पूड़ी, सब्जी, हलवा आदि बनाया जाएगा।

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पशु प्रेम की मिसाल

सद्दू महाराज कहते हैं कि तिलकधारी उनके लिए एक पालतू जानवर नहीं, बल्कि परिवार का ही एक सदस्य था।

उनका कहना है, “जिस तरह हम इंसानों के साथ रिश्ते होते हैं, उसी तरह का रिश्ता हमारा तिलकधारी के साथ था। इसलिए हमने उसे वही सम्मान दिया, जो एक परिवार के सदस्य को मिलना चाहिए।”

यह घटना पशु प्रेम और उनके साथ जुड़ाव की एक अनोखी मिसाल पेश करती है।

छतरपुर के इस छोटे से गांव की यह कहानी दिल को छू जाने वाली है और सोशल मीडिया पर भी खूब सराहना बटोर रही है।

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