World Book Fair: प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि भाषाएं और माताएं अपनी संतानों से ही सम्मानित होती हैं।
इसलिए भारतीय भाषाओं को प्रतिष्ठा दिलाने के लिए हमें स्वयं आगे आना होगा।
भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) के पूर्व महानिदेशक विश्व पुस्तक मेले में व्याख्यान दे रहे थे।
भाषाएं और माताएं संतानों से होती हैं सम्मानित
नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा भारत मंडपम के थीम पवेलियन के हाल नंबर-5 में कार्यक्रम का आयोजन किया गया था।
विश्व पुस्तक मेला में प्रो. द्विवेदी ने ‘राजभाषा हिंदी: अनुप्रयोग के विविध आयाम’ विषय पर अपने विचार रखे।
इस अवसर पर प्रख्यात व्यंग्यकार सुभाष चंदर, लेखक और तकनीकविद् बालेंदु शर्मा दाधीच, उपन्यासकार अलका सिन्हा ने भी अपने विचार साझा किए।
कार्यक्रम का संचालन ललित लालित्य ने किया, जबकि एनबीटी के मुख्य संपादक कुमार विक्रम ने अतिथियों का स्वागत किया।
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इस कार्यक्रम में साहित्यकार रिंकल शर्मा, पत्रकार मुकेश तिवारी (इंदौर) और अर्पण जैन सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
सभी वक्ताओं ने भारतीय भाषाओं के महत्व और उनके प्रचार-प्रसार की जरूरत पर बल दिया।
भारतीय भाषाओं को न्याय दिलाने के लिए आंदोलन जरूरी
अपने संबोधन में प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैश्विक स्तर पर हिंदी को नई पहचान दिलाई है।
वहीं गृह मंत्री अमित शाह राजभाषा के क्रियान्वयन को लेकर पूरी संकल्प शक्ति से काम कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि यह समय भारतीय भाषाओं के लिए अमृतकाल है और इस अवसर का लाभ उठाकर हमें अपनी भाषाओं को न्याय दिलाने के लिए प्रयास करना चाहिए।
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उन्होंने कहा कि औपनिवेशिक सोच ने भारतीय भाषाओं और भारतीय मानस की स्वतंत्र चेतना पर गहरा प्रभाव डाला है।
इससे मुक्ति के लिए केवल सरकार के प्रयास ही पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि समाज को भी जागरूक होकर आगे आना होगा।
इसके लिए एक व्यापक सामाजिक आंदोलन की जरूरत है, जिसमें सरकार और समाज मिलकर कार्य करें।
प्रो. द्विवेदी ने कहा कि भारत स्वभाव से ही बहुभाषी देश है, इसलिए हमें सभी भारतीय भाषाओं को साथ लेकर चलने की आवश्यकता है।
केवल हिंदी ही नहीं, बल्कि अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को भी समान रूप से प्रोत्साहन देने से हम भाषाई चुनौतियों का प्रभावी तरीके से सामना कर सकते हैं।