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हजरतबल दरगाह में अशोक स्तंभ पर हमला! जानें भारत में कितना गंभीर है राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान का कानून

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Hazratbal Dargah Ashoka Pillar: जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर स्थित पवित्र हजरतबल दरगाह इन दिनों विवाद के केंद्र में है, जहां ईद-ए-मिलाद के मौके पर एक नवनिर्मित शिलापट्ट को कुछ लोगों ने तोड़ दिया।

इस शिलापट्ट पर भारत का राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ बना हुआ था।

इस घटना ने एक बड़े राजनीतिक और सामाजिक विवाद को जन्म दे दिया है।

लोगों ने शिलापट्ट से हटाया अशोक स्तंभ

हाल ही में जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड ने करोड़ों रुपये खर्च करके हजरतबल दरगाह का पुनर्निर्माण और सौंदर्यीकरण किया था।

ये जगह पैगंबर मोहम्मद के एक बाल (मुई-ए-मुकद्दस) के कारण मुसलमानों का एक अत्यंत पवित्र स्थल माना जाता है, का

इस कार्य के उद्घाटन के लिए एक शिलापट्ट लगाई गई थी, जिस पर राष्ट्रीय प्रतीक अंकित था।

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शुक्रवार को ईद-ए-मिलाद के मौके पर जुमे की नमाज के बाद कुछ लोगों की भीड़ इस शिलापट्ट के पास एकत्र हो गई।

उन्होंने वक्फ बोर्ड के खिलाफ नारेबाजी की और पत्थरबाजी करते हुए शिलापट्ट को तोड़ दिया।

उनका कहना था कि एक धार्मिक स्थल पर राष्ट्रीय चिन्ह लगाना गलत है और यह मुस्लिम भावनाओं के साथ खिलवाड़ है।

नेताओं और अधिकारियों ने क्या कहा?

इस घटना पर विभिन्न राजनीतिक दलों और नेताओं ने अपनी प्रतिक्रिया दी:

  • मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला: उन्होंने कहा, “मैंने कभी किसी धार्मिक स्थल पर राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह का इस्तेमाल होते नहीं देखा। तो हजरतबल दरगाह के पत्थर पर प्रतीक चिन्ह लगाने की क्या जरूरत थी? क्या सिर्फ काम ही काफी नहीं था?” उनके इस बयान ने विवाद को और बढ़ा दिया।

वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष दरख्शां अंद्राबी: उन्होंने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए इसे “संविधान पर हमला” बताया।

उन्होंने विरोध करने वालों को ‘उपद्रवी’ और ‘आतंकी’ करार दिया और धमकी दी कि अगर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की गई तो वह भूख हड़ताल पर बैठ जाएंगी।

उन्होंने एक तीखा तंज कसते हुए कहा, “जिन लोगों को राष्ट्रीय प्रतीक से समस्या है, उन्हें दरगाह में जाते समय अपनी जेब में राष्ट्रीय प्रतीक वाले नोट (करेंसी) भी नहीं ले जाने चाहिए।”

विपक्षी दल: नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जैसे विपक्षी दलों ने दरगाह पर राष्ट्रीय प्रतीक लगाने को “धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़” बताया।

पीडीपी नेता इल्तिजा मुफ्ती ने आरोप लगाया कि “मुस्लिम समुदाय को जानबूझकर उकसाया जा रहा है।”

क्या है कानूनी पहलू?

भारत में राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान को गंभीर अपराध माना जाता है।

भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 124 के तहत, अगर कोई व्यक्ति राष्ट्रीय ध्वज, गान, संविधान या राष्ट्रीय प्रतीक (अशोक स्तंभ) का अपमान करता है, तो उसे 3 साल तक की कैद, जुर्माना या दोनों सजाएं हो सकती हैं।

हालांकि, इस मामले में यह स्पष्ट नहीं है कि क्या शिलापट्ट तोड़ने की कार्रवाई को कानूनी रूप से ‘अपमान’ माना जाएगा, क्योंकि विरोध करने वालों का तर्क था कि उसे वहां लगाना ही गलत था।

हजरतबल दरगाह का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व

  • हजरतबल दरगाह श्रीनगर की डल झील के उत्तरी किनारे पर स्थित है।
  • ‘हजरत’ का अर्थ है ‘आदरणीय’ और ‘बल’ का अर्थ है ‘स्थान’।
  • यह सफेद संगमरमर से बनी एक खूबसूरत इमारत है जो इस्लामी और कश्मीरी वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है।
  • मान्यता है कि यहां इस्लाम के पैगंबर हजरत मोहम्मद का एक बाल सुरक्षित रखा गया है, जिसे ‘मुई-ए-मुकद्दस’ कहा जाता है।
  • यह बाल 1699 ईस्वी में यहां लाया गया था। विशेष धार्मिक अवसरों जैसे ईद-ए-मिलाद-उन-नबी पर इसे आम जनता के दर्शन के लिए रखा जाता है।
  • इसकी अहमियच इस बात से पता चलती है कि 1963 में जब यह बाल गायब हो गया था, तो पूरे कश्मीर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसके बाद इसे वापस लाया गया।
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यह घटना धार्मिक पहचान और राष्ट्रीय प्रतीकों के बीच की जटिल समझ को उजागर करती है।

एक तरफ जहां देश के राष्ट्रीय चिन्ह का सम्मान होना चाहिए, वहीं दूसरी तरफ धार्मिक स्थलों की स्वायत्तता और भावनाओं का भी ध्यान रखना जरूरी है।

यह मामला दर्शाता है कि सार्वजनिक स्थानों पर, खासकर धार्मिक स्थलों पर, किसी भी प्रतीक को लगाने से पहले सभी लोगों से व्यापक सहमति और संवेदनशीलता बेहद जरूरी है।

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