Kamal Nath Honey Trap Case: मध्य प्रदेश के चर्चित हनी ट्रैप मामले में पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता कमलनाथ को बड़ी राहत मिली है।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हनी ट्रैप मामले में पूर्व सीएम कमलनाथ के खिलाफ दायर जनहित याचिका खारिज कर दी है।
याचिका में कमलनाथ के बयान को आधार बनाकर CBI जांच की मांग की गई थी।
कोर्ट ने कहा कि किसी राजनेता के राजनीतिक बयान को गंभीरता से नहीं लिया जा सकता।
याचिका क्यों दायर की गई थी?
एडवोकेट भूपेंद्र सिंह कुशवाह ने याचिका दायर कर कहा था कि कमलनाथ ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया था कि उनके पास हनी ट्रैप मामले की पेन ड्राइव है।
याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि कमलनाथ को यह पेन ड्राइव SIT (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) को सौंपनी चाहिए और मामले की CBI जांच होनी चाहिए।

कोर्ट ने क्या कहा?
हाईकोर्ट की डबल बेंच (जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी) ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या वह खुद कमलनाथ का बयान सुन चुके हैं?
जब याचिकाकर्ता ने इसका जवाब “नहीं” दिया, तो कोर्ट ने कहा कि “अखबारों में छपी खबरों के आधार पर याचिका स्वीकार नहीं की जा सकती।”
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “किसी राजनेता के राजनीतिक बयान को गंभीरता से नहीं लिया जा सकता।”
इसके बाद याचिका को खारिज कर दिया गया।
क्या है हनी ट्रैप मामला?
हनी ट्रैप मामला 2019 में सामने आया था, जब इंदौर नगर निगम के एक इंजीनियर ने ब्लैकमेलिंग की शिकायत की थी।
जांच में पता चला कि कुछ महिलाएं नेताओं, अधिकारियों और बिजनेसमैन से नजदीकी बनाकर उनके वीडियो बना रही थीं और फिर उन्हें ब्लैकमेल कर रही थीं।
तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने 2020 में SIT गठित की थी, लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने इस मामले को राजनीतिक रूप से उछालने की कोशिश की।
कमलनाथ और पूर्व मंत्री गोविंद सिंह ने दावा किया था कि उनके पास सेक्स सीडी है, लेकिन चुनाव में इसका कोई खास असर नहीं हुआ।

कोर्ट ने CGST को भी फटकार लगाई
इसी सुनवाई के दौरान, हाईकोर्ट ने केंद्रीय जीएसटी (CGST) विभाग को भी फटकार लगाई।
कोर्ट ने कहा कि “केस निपटाने में समय लगेगा, यह कहकर किसी को प्रतिपरीक्षण (Cross-Examination) का मौका नहीं छीन सकते।”
एडवोकेट पीयूष पाराशर ने बताया कि पेपर ट्रेड लिंक कंपनी के खिलाफ CGST ने 3.78 करोड़ रुपये की रिकवरी का आदेश दिया था, लेकिन गवाहों के प्रतिपरीक्षण का मौका नहीं दिया गया था।
कोर्ट ने इस आदेश को रद्द करते हुए फिर से सुनवाई का आदेश दिया।
यह फैसला कमलनाथ के लिए बड़ी कानूनी जीत मानी जा रही है।