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हिंदी पत्रकारिता के 200 वर्ष: सांस्कृतिक निरक्षरता है सबसे बड़ी चुनौती- प्रो. संजय द्विवेदी

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Hindi journalism: भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के पूर्व महानिदेशक प्रोफेसर संजय द्विवेदी ने कहा है कि समकालीन समय में गहन सांस्कृतिक निरक्षरता और संवेदनहीनता समाज के लिए एक गंभीर चुनौती बनकर उभरी है।

उन्होंने कहा कि इस संकट ने मीडिया की विश्वसनीयता जैसे मुद्दों को भी जन्म दिया है। प्रोफेसर द्विवेदी ने यह बात वसुंधरा संस्था द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में ‘भारतबोध, भारतीयता और हिंदी पत्रकारिता’ विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए कही।

उन्होंने कहा, “सत्य के पक्ष में खड़ा होना कभी भी आसान नहीं रहा, लेकिन इतिहास उन्हीं नायकों को याद रखता है जो समाज के दर्द को दूर करने के लिए सच्चाई के साथ अडिग रहते हैं।”

उन्होंने हिंदी पत्रकारिता के 200 वर्षों के इतिहास को रचना, सृजन और संघर्ष की गाथा बताया और कहा कि दृढ़ मूल्यबोध वाले संपादकों-पत्रकारों के योगदान से ही हिंदी मीडिया का व्यापक प्रसार संभव हुआ है।

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कार्यक्रम के मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा मंत्री श्री गजेंद्र यादव ने पत्रकारिता में विश्वसनीयता को उसका मूल आधार बताया।

उन्होंने कहा कि आधुनिक पत्रकारिता में सकारात्मक खबरों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा, “एक नकारात्मक खबर समाज को विचलित करती है, जबकि सकारात्मक खबरें प्रेरणा और सकारात्मक प्रभाव डालती हैं। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में पत्रकारिता का दायित्व समाज को सही दिशा दिखाना है।”

वरिष्ठ स्तंभकार श्री अनंत विजय ने भारतेन्दु हरिश्चंद्र सहित हिंदी पत्रकारिता के पुरोधाओं के योगदान को याद किया और कहा कि पत्रकारिता और सिनेमा जैसे माध्यमों का लक्ष्य देश और समाज का हित सुनिश्चित करना होना चाहिए।

इस अवसर पर ‘कृति बहुमत’ और ‘कृति वसुन्धरा’ पत्रिकाओं के विशेष अंकों का लोकार्पण भी किया गया। कार्यक्रम में शशांक शर्मा, विश्वेश ठाकरे सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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