SC Hearing On Government Job: सरकारी नौकरी के नियम को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है।
देश की शीर्ष न्यायालय ने मनमाने तरीके से सरकारी नौकरी के नियम में बदलाव करने पर रोक लगा दी है।
कोर्ट का साफ कहना है कि सरकारी नौकरी की प्रक्रिया शुरू होने के बाद नियमों में बदलाव नहीं होगा।
भर्ती की प्रकिया पारदर्शी और निष्पक्ष हो
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला राजस्थान हाईकोर्ट में नियुक्त मामले में सुनाया है।
5 जजों की संविधान पीठ के सामने ये सवाल था कि क्या भर्ती की प्रक्रिया शुरू होने के बाद नियमों में बदलाव किया जा सकता है या नहीं।
इस पर कोर्ट ने कहा कि अगर नियम में पहले कहा गया है कि नौकरी की पात्रता में बदलाव हो सकता है, तो ऐसा किया जा सकता है।
लेकिन, ऐसा समानता के अधिकार का उल्लंघन करते हुए मनमाने तरीके से नहीं हो सकता।
वहीं SC ने अपने फैसले में यह भी कहा कि सरकारी पदों में भर्ती की प्रकिया पूर्णतया पारदर्शी और निष्पक्ष होनी चाहिए।
यह फैसला जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने सुनाया है।
पीठ में जस्टिस ऋषिकेश रॉय, पीएस नरसिम्हा, पंकज मित्तल और मनोज मिश्रा भी शामिल थे।
राजस्थान हाईकोर्ट में नियुक्त से जुड़ा है मामला
यह मामला राजस्थान हाई कोर्ट में 13 ट्रांसलेटर के पदों पर भर्ती प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है।
उम्मीदवारों को एक लिखित परीक्षा में हिस्सा लेना था, जिसके बाद लिखित परीक्षा में सफल अभ्यर्थियों को इंटरव्यू देना था।
एग्जाम में 21 अभ्यर्थी उपस्थित हुए थे, उनमें से केवल 3 को ही हाईकोर्ट (प्रशासनिक पक्ष) ने सफल घोषित किया।
बाद में यह बात सामने आई कि हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने आदेश दिया था कि इन पदों के लिए कम से कम 75 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों का ही चयन किया जाना चाहिए।
इस संशोधित मानदंड को लागू करने पर ही 3 उम्मीदवारों को छोड़ बाकि के अभ्यार्थी बाहर हो गए और नौकरी पाने से वंचित रह गए थे।।
हालांकि इस भर्ती प्रक्रिया में 75 फीसदी क्वालीफाइंग नियम का उल्लेख तब नहीं किया गया था, जब भर्ती प्रक्रिया पहली बार उच्च न्यायालय द्वारा अधिसूचित की गई थी।
इसके बाद 3 असफल उम्मीदवारों ने हाईकोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका दायर करके इस परिणाम को चुनौती दी।
उनका कहना था कि एक बार प्रक्रिया शुरू होने के बाद नियमों में बदलाव नहीं किया जा सकता।
हालांकि 2010 में ये याचिका खारिज हो गई थी।
इसके बाद 2013 में सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की बेंच ने मामला 5 जजों की संविधान पीठ को भेजा था।
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