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सतना में डॉक्टरों की बड़ी लापरवाही: थैलेसीमिया से जूझ रहे 4 बच्चों को चढ़ाया HIV पॉजिटिव खून

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Satna HIV blood transfusion: मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की एक ऐसी भयानक लापरवाही सामने आई है, जिसने 4 मासूम बच्चों का वर्तमान और भविष्य दोनों बर्बाद कर दिया है।

जिला अस्पताल के ब्लड बैंक की गंभीर नाकामी के चलते थैलेसीमिया से पीड़ित इन बच्चों को HIV संक्रमित खून चढ़ा दिया गया, जिससे वे अब आजीवन एड्स से लड़ने को मजबूर हैं।

यह मामला करीब चार महीने पहले का है, लेकिन इसकी जानकारी अब सामने आई है।

क्या है पूरा मामला?

आठ से ग्यारह साल की उम्र के ये चारों बच्चे थैलेसीमिया के मरीज हैं, ये एक ऐसी बीमारी जिसमें शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी हो जाती है और नियमित अंतराल पर बाहर से रक्त चढ़ाने (ब्लड ट्रांसफ्यूजन) की जरूरत पड़ती है।

बच्चों का इलाज सतना जिला अस्पताल में चल रहा था।

हालांकि, जब इन बच्चों की नियमित जांच हुई तो पता चला कि जो बच्चे पहले एचआईवी नेगेटिव थे, अब उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आ रही है।

इस गंभीरता को देखते हुए जब जांच की गई तो पाया गया कि अस्पताल के ब्लड बैंक द्वारा इन बच्चों को चढ़ाए गए रक्त में से कम से कम एक यूनिट रक्त एचआईवी संक्रमित था।

हैरानी की बात यह है कि रक्तदान के बाद ब्लड बैंक में की जाने वाली अनिवार्य एचआईवी जांच या तो ठीक से नहीं की गई या फिर प्रोटोकॉल की अनदेखी कर दी गई।

इस लापरवाही का नतीजा यह हुआ कि मासूम बच्चों को जीवनदान देने वाला रक्त उनके लिए जानलेवा बीमारी का कारण बन गया।

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क्यों नहीं रोका जा सका यह हादसा? 

ब्लड बैंक के प्रभारी डॉ. देवेंद्र पटेल के अनुसार, थैलेसीमिया के मरीजों को बार-बार रक्त चढ़ाना पड़ता है, किसी को 70 तो किसी को 100 बार भी ट्रांसफ्यूजन हो चुका है।

ऐसे में संक्रमण का खतरा बना रहता है।

हालांकि, यह दलील इस गंभीर लापरवाही को जायज नहीं ठहरा सकती, क्योंकि हर ब्लड बैंक पर हर यूनिट रक्त की एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी और सिफलिस जैसे संक्रमणों की जांच करना अनिवार्य होता है।

इसके अलावा, यह भी पता चला है कि इन बच्चों को सिर्फ सतना जिला अस्पताल से ही नहीं, बल्कि रीवा के बिरला अस्पताल और प्रदेश के अन्य जिलों से भी रक्त मिला था।

इससे जांच प्रक्रिया और मुश्किल हो गई है।

फिलहाल, उन सभी रक्तदाताओं की पहचान और जांच की जा रही है, जिनका रक्त इन बच्चों को चढ़ाया गया था।

खुशी की बात यह है कि बच्चों के माता-पिता की एचआईवी जांच नेगेटिव आई है, जिससे पुष्टि होती है कि संक्रमण का स्रोत दूषित रक्त ही है।

मामला गंभीर, डिप्टी CM ने दिए जांच के आदेश

इस पूरे प्रकरण ने स्वास्थ्य व्यवस्था में गहरे छेद को उजागर कर दिया है।

डिप्टी सीएम व स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ल ने तत्काल जांच के आदेश दिए हैं।

सतना कलेक्टर डॉ. सतीश कुमार ने भी चीफ मेडिकल एंड हेल्थ ऑफिसर (CMHO) से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।

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बाकी रोगियों के लिए खतरा

सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि एचआईवी संक्रमित वह रक्त अन्य मरीजों को भी चढ़ाया गया हो सकता है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, उसी ब्लड बैंक से गर्भवती महिलाओं सहित अन्य रोगियों को भी रक्त दिया गया था।

कई मरीज फॉलो-अप जांच के लिए वापस नहीं आए हैं, जिससे उनके संक्रमित होने की आशंका बनी हुई है।

एक पीड़ित बच्ची के पिता ने तो यहां तक दावा किया है कि संक्रमित बच्चों की संख्या चार नहीं, बल्कि छह है।

टाली जा सकती थी ये घटना

यह घटना न सिर्फ सतना, बल्कि पूरे देश की स्वास्थ्य प्रणाली के लिए एक चेतावनी है।

यह दुखद है कि एक ऐसी त्रासदी, जिसे सख्त प्रोटोकॉल और थोड़ी सी सतर्कता से टाला जा सकता था, उसने चार मासूमों के जीवन को अंधकारमय बना दिया है।

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सवाल यह है कि आखिर जिम्मेदारी किसकी है? क्या केवल जांच बिठा देना ही काफी है?

मरीजों, खासकर उन बच्चों के भविष्य की जिम्मेदारी कौन लेगा जिनकी पूरी जिंदगी अब दवाओं और सामाजिक कलंक के बीच गुजरने को मजबूर है?

इस मामले में दोषियों के साथ-साथ पीड़ित परिवारों को पर्याप्त मुआवजा और बेहतर इलाज मुहैया कराना सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होगी।

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