ISRO SpaDeX Mission: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन एक बार फिर से इतिहास रचने के लिए तैयार है।
ISRO आज अपने महत्वाकांक्षी मिशन SpaDeX (Space Docking Experiment) को लॉन्च करेगा।
ISRO इस मिशन के जरिए अंतरिक्ष में डॉकिंग करने के लिए अपनी तकनीक का प्रदर्शन करेगी।
यह मिशन भारत के अंतरिक्ष अभियानों में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।
इसके तहत PSLV-C60 रॉकेट के जरिए दो स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में बुलेट की स्पीड से तेज गति से जोड़ने का प्रयास किया जाएगा।
अगर इस मिशन में कामयाबी मिलती है, तो भारत अंतरिक्ष डॉकिंग हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश होगा।
रात 10 बजे PSLV-C60 से लॉन्च होगा SpaDeX मिशन
भारत अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान यानी ISRO एक बार इतिहास रचने जा रहा है।
भारतीय स्पेस एजेंसी अपने SpaDeX मिशन को लॉन्च करने लिए तैयार है, यह ISRO का इस साल का अंतिम मिशन है।
यह मिशन 30 दिसंबर 2024 यानी आज रात 10 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया जाएगा।
मिशन में दो छोटे स्पेसक्राफ्ट टारगेट और चेजर शामिल है।
इन्हें PSLV-C60 रॉकेट से 470 किमी की ऊंचाई पर अलग कक्षाओं में लॉन्च किया जाएगा।
SpaDeX मिशन ISRO के स्पेस डॉकिंग प्रौद्योगिकी को विकसित करने की दिशा में पहला कदम है।
इस मिशन का उद्देश्य अंतरिक्ष में दो अलग-अलग स्पेसक्राफ्ट को जोड़ने (डॉकिंग) की प्रक्रिया को समझना और उसमें महारत हासिल करना है।
यह तकनीक भविष्य में अंतरिक्ष में ईंधन भरने, अंतरिक्ष में निर्माण और गहरे अंतरिक्ष अभियानों के लिए बेहद उपयोगी साबित होगी।
वहीं अगर ISRO इस मिशन में सफलता होता है, तो भारत दुनिया का चौथा अंतरिक्ष डॉकिंग हासिल करने वाला देश बन जाएगा।
SpaDeX बुलेट की स्पीड से तेज़ दो स्पेसक्राफ्ट को जोड़ेगा
इसरो SpaDeX मिशन के जरिए अंतरिक्ष यान को डॉक या अनडॉक करने की क्षमता को परखेगा।
डॉकिंग की प्रक्रिया 6 से 10 जनवरी के बीच होगी। वर्तमान में यह क्षमता अमेरिका, रूस और चीन के पास है।
बता दें ISRO ने SpaDeX मिशन को लॉन्च करने के लिए दो उपग्रहों का यूज किया है।
जिनका नाम चेजर (SDX01) और टारगेट (SDX02) है, इनका वजन 220 किलोग्राम है।
इन्हें PSLV-C60 रॉकेट से 470 किमी की ऊंचाई पर अलग कक्षाओं में लॉन्च किया जाएगा और पृथ्वी की तरफ इनका झुकाव करीब 55 डिग्री होगा।
इन दोनों उपग्रहों का मकसद अंतरिक्ष में जोड़ने और अलग करने डॉकिंग और अनडॉकिंग (Docking-undocking) की तकनीक का परीक्षण करना है।
इस मिशन में अंतरिक्ष में बुलेट की स्पीड से दस गुना ज्यादा तेजी से ट्रैवल कर रहे दो स्पेसक्राफ्ट को मिलाया जाएगा।
वहीं इस मिशन का दूसरा उद्देश्य यह साबित करना है कि डॉक किए गए उपग्रहों के बीच बिजली का ट्रांसफर कैसे किया जा सकता है।
ये तकनीक अंतरिक्ष में रोबोटिक्स, डॉकिंग से अलग होने के बाद समग्र अंतरिक्ष यान नियंत्रण और पेलोड संचालन के लिए आवश्यक है।
अमेरिका ने किया था सबसे पहले परीक्षण
अंतरिक्ष में दो स्पेसक्राफ्ट की पहली डॉकिंग 16 मार्च 1966 को जेमिनी VIII मिशन में पूरी की गई थी।
जेमिनी VIII स्पेसक्राफ्ट एजेना टारगेट व्हीकल के साथ डॉक किया गया, जिसे उसी दिन पहले लॉन्च किया गया था।
इसके बाद रूस ने 30 अक्टूबर 1967 को दो स्पेसक्राफ्ट अंतरिक्ष में डॉक किए थे, तब अनमैन्ड कोसमोस 186 और 188 ऑटोमैटिकली डॉक किए गए थे।
वहीं चीन ने 2 नवंबर 2011 को स्पेस डॉकिंग की थी।
यह डॉकिंग चीन के गांसु में जिउक्वान सैटेलाइट लॉन्च सेंटर में हुई थी।
जब बिना चालक दल वाले शेनझोउ 8 स्पेसक्राफ्ट ने तियांगोंग-1 स्पेस लैब मॉड्यूल के साथ सफलतापूर्वक डॉक किया था।
बता दें डॉकिंग तकनीक अंतरिक्ष अभियानों के लिए एक क्रांतिकारी प्रक्रिया है, जिसमें दो स्पेसक्राफ्ट को जोड़कर संसाधन साझा किए जा सकते हैं।
यह चंद्रमा और मंगल जैसे अभियानों से सैंपल लाने और अंतरिक्ष में मानव उपस्थिति को बढ़ाने के लिए बेहद अहम है।
वहीं डॉकिंग की प्रक्रिया इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि ऐसे मौके भी आते हैं जब स्पेस मिशन में कई तरह के रॉकेट को लॉन्च करने की जरूरत पड़ती है।
यही वजह है कि इसरो खुद को इसके लिए तैयार करने की कोशिश में है।
डॉकिंग की प्रक्रिया और मिशन का टार्गेट
इस मिशन को जब लॉन्च किया जाएगा, उसके 24 घंटे के भी में 20 किलोमीटर तक पहुंच जाएगा।
इसके बाद इन्हें डॉकिंग के जरिए जोड़ने और अनडॉकिंग की प्रॉसेस से अलग-अलग करने का प्रयोग किया जाएगा।
अंतरिक्ष यान एक दूसरे की ओर बढ़ने के लिए रडार और एंटिना का उपयोग करते हैं।
अंतरिक्ष यान एक ही कक्षा में होने चाहिए और स्पीड को मैच कराया जाता है। डॉकिंग सिस्टम तब सक्रिय होता है, जब दोनों अंतरिक्षयान एक-दूसरे के करीब होते हैं।
अलग-अलग यान अलग-अलग सिस्टम का इस्तेमाल करते हैं।
बोइंग स्टारलाइनर नासा डॉकिंग सिस्टम का इस्तेमाल करता है और स्पेसएक्स ड्रैगन कम्प्यूटराइज्ड सिस्टम के जरिए कंट्रोल किया जाता है।
वहीं कार्गो ट्रांसपोर्टस इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की रोबोटिक आर्म्स का इस्तेमाल करते हुए डॉकिंग करता है।
इस मिशन का लक्ष्य है कि चेजर अपने टार्गेट का पीछा करे।
जब दोनों अंतरिक्षयान तेजी से परिक्रमा करें, तो तेजी से डॉकिंग करें।
चंद्रयान-4 की सफलता के लिए महत्वपूर्ण SpaDeX मिशन
इस डॉकिंग मैकेनिज्म को ‘भारतीय डॉकिंग सिस्टम’ नाम दिया गया है।
इसरो ने इस डॉकिंग सिस्टम पर पेटेंट भी ले लिया है।
भारत को अपना खुद का डॉकिंग मैकेनिज्म डेवलप करना पड़ा, क्योंकि कोई भी स्पेस एजेंसी इस बेहद कॉम्प्लेक्स प्रोसेस की बारीकियों को शेयर नहीं करती है।
इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल चंद्रयान-4 मिशन में होगा जिसमें चंद्रमा से सैंपल वापस पृथ्वी पर लाए जाएंगे।
वहीं स्पेस स्टेशन बनाने और उसके बाद वहां जाने-आने के लिए भी डॉकिंग टेक्नोलॉजी की जरूरत पड़ेगी।
सैटेलाइट सर्विसिंग, इंटरप्लेनेटरी मिशन और इंसानों को चंद्रमा पर भेजने के लिए ये टेक्नोलॉजी जरूरी है।
माइक्रोग्रेविटी में एक्सपेरिमेंट के लिए इस मिशन में 24 पेलोड भी भेजे जा रहे हैं।
ये पेलोड PSLV रॉकेट की चौथी स्टेज में होंगे जिसे POEM (पीएसएलवी ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल) कहा जाता है।
14 पेलोड इसरो से हैं और 10 पेलोड गैर-सरकारी संस्थाओं (NGI) से हैं।