राजस्थान में जोधपुर के पास एक छोटा सा शांत शहर है फलौदी, जो चुनाव नतीजों पर सट्टा लगाने के लिए इनदिनों पूरे देश में चर्चा के केंद्र में है। ऑपिनियन पोल्स के नहीं आ पाने की वजह से फलौदी के आंकड़े पूरे भारत में चर्चा में हैं।
फलौदी ने चुनाव से जुड़े नतीजों को लेकर लगाए जा रहे पूर्वानुमानों को लेकर काफी वाहवाही बटोरी है, लेकिन इसका रिकॉर्ड बेदाग नहीं है।
राजस्थान के छोटे से शहर फलौदी में पिछले 500 साल से सट्टा लगाया या खेला जाता है। बीते दिनों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत पांच राज्यों में हुए चुनावों की हार-जीत को लेकर भी फलौदी के सट्टा बाजार की बड़ी चर्चा रही। आइए जानते हैं आखिर क्या है फलौदी का सट्टा बाजार और ये कैसे काम करता है…
फलौदी में सट्टा बाजार का काम गुपचुप तरीके से चलता है क्योंकि सट्टेबाजी पर संगठित अपराध के तौर पर कानूनी रूप से प्रतिबंध है, लेकिन इसी सट्टेबाजी ने इस छोटे से शहर को दुनियाभर में मशहूर बना दिया है।
फलौदी में सट्टा बाजार के नाम पर कुछ दर्जन छोटे-छोटे टिन के खोखे ही हैं, फिर भी चुनावी और अन्य रुझानों की कथित तौर पर सटीकता के लिए यह दूर-दूर तक चर्चा का विषय बन चुका है।
फलौदी में सट्टा काफी लंबे समय से चल रही है जो अब वहां के लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी में इस कदर घुलमिल गई है कि लोग जूता फेंकते हैं और शर्त लगाते हैं कि वह किस तरफ गिरेगा। अगर किसी गली में दो आवारा बैल लड़ रहे हों, तो भी लोग इस बात पर शर्त लगा लेते हैं कि कौन सा बैल जीतेगा।
500 साल से लगाया जा रहा है सट्टा –
वैसे तो सट्टा कारोबार की शुरुआत फलौदी में 500 साल पहले हुई थी, लेकिन 19वीं सदी के अंत तक इसने एक संगठित रूप ले लिया था। आजकल फलौदी चुनाव परिणामों पर सट्टा लगाने के लिए जाना जाता है, लेकिन इसकी शुरुआत बारिश से हुई थी जिसकी कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है।
कम और अप्रत्याशित बारिश वाले शुष्क थार क्षेत्र में स्थित फलौदी का सट्टा कारोबार बारिश से शुरू हुआ था, जो आज भी सट्टेबाजों की पसंदीदा जगह बनी हुई है। फलौदी के लोग कई तरह से बारिश पर सट्टा लगाते हैं।
लोग इस बात पर सट्टा लगाते हैं कि बारिश का कोई खास नाला, छत से बारिश के पानी को निकालने वाला नाला, किसी खास दिन, सप्ताह या महीने में बहेगा या नहीं।
इसके अलावा बारिश पर सट्टा लगाने के दूसरे तरीकों में किसी खास तालाब के ओवरफ्लो होने या टिन की छत पर बारिश की आवाज सुनाई देना भी था। लोग ऐसी छोटी-छोटी बातों को लेकर सट्टा लगाते थे और धीरे-धीरे यह गांववालों के मनोरंजन से बाजार में बदल गया।
ऐसे हुई चुनावी परिणामों पर सट्टा लगाने की शुरुआत –
इसके अलावा क्रिकेट के खेल को लेकर भी फलौदी का सट्टा बाजार गुलजार रहता है लेकिन 80 के दशक के शुरुआती सालों में जैसे-जैसे चुनावों को लेकर लोगों की दिलचस्पी बढ़ने लगी, फलौदी के लोगों ने चुनाव परिणामों पर सट्टा लगाना शुरू कर दिया।
दशक भर पहले जब अखबार-चैनलों ने फलौदी सट्टा बाजार के बारे में रिपोर्ट करना शुरू किया, तो इसने राष्ट्रीय स्तर पर धीरे-धीरे अपनी जगह बना ली। चुनाव से पहले ओपिनियन पोल्स पर बैन ने अब फलौदी सट्टा बाजार को चुनाव परिणामों के बैरोमीटर में बदल दिया है।
कैसे काम करता है फलौदी सट्टा बाजार –
चुनाव और चुनाव परिणामों पर सट्टा कई तरीकों से लगाया जा सकता है। क्या कोई पार्टी किसी खास उम्मीदवार को टिकट देगी, कोई पार्टी कितनी सीटें जीतेगी, कौन सी पार्टी या उम्मीदवार जीतेगा और कौन मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बनेगा। परिस्थितियों के आधार पर दरें प्रति घंटे ऊपर-नीचे हो सकती हैं।
सट्टा बाजार पर हावी होने वाले दो शब्द हैं ‘खाना’ और ‘लगाना’। ‘खाना’ वह दांव कहलाता है जिस पर किसी के जीतने की संभावना कम होती है, ‘लगाना’ शब्द का इस्तेमाल उस दांव के लिए किया जाता है जिसमें जीतने का बहुत ज्यादा मौका होता है।
डिजिटल तरीकों से होता है ज्यादातर लेन-देन
स्थानीय लोगों को पैसा जमा करने की जरूरत नहीं होती है क्योंकि सट्टेबाज उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानते हैं, लेकिन बाहरी लोगों को नकद जमा करना पड़ता है। इन दिनों लेन-देन ज्यादातर डिजिटल तरीके से किया जाता है, खास तौर पर बाहरी लोगों के साथ।
अगर किसी पार्टी के जीतने की उम्मीद से ज्यादा सीटों पर दांव लगाया जाता है, तो दर ज्यादा होगी। अगर दांव उन सीटों की संख्या पर है, जिन्हें कोई पार्टी आराम से जीतती हुई दिखाई देती है, तो दर कम होगी।
हर राज्य में है सट्टेबाजों का नेटवर्क –
सट्टेबाज मतदाताओं के मूड और चुनाव के रुझान का विश्लेषण कैसे करते हैं? इसका जवाब यह है कि उनके पास बिहार, यूपी, कोलकाता और लगभग हर जगह से लोग होते हैं जो लगातार उनके संपर्क में होते हैं। वे ही उन्हें जानकारी देते हैं कि विभिन्न जातिगत समीकरण कैसे काम करते हैं।
सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुलता है बाजार –
विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हर दिन सुबह 10 बजे ये सट्टेबाज खुद के तय किए गए भावों के साथ बाजार खोलते हैं जो शाम 5 बजे तक खुला रहता है, लेकिन तब तक ये करोड़ों का कारोबार कर चुके होते हैं। लोग फोन पर दांव लगाते हैं। अगर वे जीत जाते हैं, तो विभिन्न जरियों से उनको पैसा पहुंचा दिया जाता है।
अगर इन सट्टेबाजों की मानें तो उन्हें हर तरह के लोगों के फोन आते हैं जिनमें विधायक, सांसद या मुख्यमंत्री भी होते हैं। इतना तो तय है कि फलौदी सट्टा बाजार की इस कथित सटीकता का कोई निश्चित आधार नहीं है, सिवाय देश भर के विभिन्न क्षेत्रों के मीडिया और स्थानीय लोगों से प्राप्त जानकारी के विश्लेषणों के।
3 फीसदी मिलती है दलाली –
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, देश या प्रदेश में चल रहे चुनाव, बारिश या शेयर मार्केट में उचार-चढ़ाव को लेकर नई दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, अहमदाबाद, यूपी, बिहार या देश के अन्य राज्यों के सटोरियों के पैसे लगते हैं, जिसमें दलालों को केवल 3 फीसदी की दलाली मिलती है। सटोरियों का सारा पैसा वो अपने स्तर पर ‘खाना’ और ‘लगाना’ में लगाते हैं।
कब-कब सटीक बैठा फलौदी का सट्टा –
साल 2023 के मई में कर्नाटक के चुनाव हुए थे। फलौदी सट्टा बाजार ने कर्नाटक में कांग्रेस को 137 और भाजपा को 55 सीटें दी थी। परिणाम में कांग्रेस को 136 और भाजपा को 66 सीटें मिली। फलौदी का यह अनुमान बिल्कुल सही बैठा।
इससे पहले फलौदी सट्टा बाजार ने गुजरात में भी भाजपा सरकार की वापसी का अनुमान लगाया था, जो एक बार फिर सही साबित हुआ।
हिमाचल प्रदेश में जब सभी मीडिया आउटलेट्स कांटे की टक्कर बता रहे थे तो भी फलौदी के सट्टा बाजार ने कांग्रेस की जीत और सरकार बनाना बताया था और अंततः कांग्रेस ही जीतकर सत्ता में आई।
नोट : विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित