भोपाल। लोकसभा चुनाव का चौथा चरण पूर्ण होते ही मध्य प्रदेश में सभी 29 सीटों के लिए मतदान हो चुका है और सभी उम्मीदवारों को इंतजार है 4 जून का जब उनकी किस्मत का फैसला ईवीएम मशीनों से बाहर आएगा।
चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो गए, जो अच्छी बात है लेकिन इस शांति के पीछे मतदाताओं की उदासीनता अजीब सी बेचैनी पैदा कर गई। पिछले चुनाव की अपेक्षा गिरता मतदान का प्रतिशत सभी को हैरान कर गया।
मालूम हो कि पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 58 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन इस दफा तो कई सीटों पर मतदान का प्रतिशत भी इस आंकड़े को छू नहीं पाया है।
देखा जाए तो इस दफा मुद्दों को तरजीह देने की कोशिश ना तो बीजेपी ने की और ना ही विपक्षी कांग्रेस ने। एक-दूसरे की बातों में ही मानो जिया उलझ के रह गया कह सकते हैं।
चुनाव से पहले बीजेपी ने पन्ना प्रमुखों से लेकर तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं को ताकीद कर दिया था कि इस बार ना केवल वोटिंग परसेंटेज बढ़ाना है बल्कि हर कार्यकर्ता की जवाबदारी थी कि कम से कम 6 मतदाताओं को पोलिंग बूथ तक लाना है।
लेकिन मतदाताओं की अरूचि और कह सकते हैं और बीजेपी कार्यकर्ताओं की खुशफहमी ने वो माहौल ही नहीं बनने दिया जो वोटर्स को पोलिंग बूथ तक लाने में कामयाब होता।
इलेक्शन कमीशन की अपील और अमित शाह की पार्टी नेताओं से दो टूक भी असरकारक नहीं रही रही। दूसरे इंदौर में अक्षय कांति बम के भाजपा में शामिल होने से उपजे एक नए तरह के सियासी समीकरण ने भी कहीं ना कहीं मतदाताओं का मन खट्टा किया तो कांग्रेस ने मतदाताओं से नोटा का बटन दबाने की अपील करके अपनी भड़ास निकाली।
दूसरे जिन पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान की लाड़ली लक्ष्मी योजना का प्रतिसाद विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिला वैसा माहौल लोकसभा चुनाव में देखने नहीं मिला।
इधर कांग्रेस में जो चला-चली का मेला लगा उसने कहीं ना कही पूरी पार्टी का मॉरल तो डाउन किया ही, लेकिन कई सीटों पर खेल बिगाड़ने में कांग्रेस ने ताकत लगाने में देर भी नहीं लगाई।
इंदौर इसकी मिसाल है। अब लोगों के जहन में सवाल है कि कम वोटिंग का फायदा आखिर किसे मिलेगा। जाहिर है बीजेपी का पलड़ा भारी है, लेकिन कांग्रेस राजगढ़ और छिंदवाड़ा में बीजेपी पर भारी पड़ सकती है क्योंकि एक तरफ नकुलनाथ हैं और दूसरी तरफ दिग्विजय सिंह जिन्होंने अपनी सीटों पर पूरी ताकत लगा रखी थी।
कुल जमा 2019 में बीजेपी ने छिंदवाड़ा छोड़ सभी 28 सीटों पर फतह हासिल की थी और इस बार पूरी 29 सीटों को कब्जाने का इरादा बीजेपी का था, लेकिन जिस तर्ज पर मतदान हुआ है उसके हिसाब से देखा जाए तो बीजेपी सब कुछ पा भी ले, लेकिन कम वोटिंग परसेंटेज ने उसकी चिंताएं तो बढ़ाई हैं, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता।