Sampatiya Uikey Corruption Case: मध्य प्रदेश सरकार में एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है, जहाँ आदिवासी विकास मंत्री संपतिया उइके के खिलाफ 1000 करोड़ रुपये के कमीशन के आरोप में जांच के आदेश जारी कर दिए गए।
हैरानी की बात यह है कि मुख्य सचिव से लेकर प्रमुख अभियंता (ENC) तक किसी ने यह नहीं देखा कि आरोप एक कैबिनेट मंत्री पर लगाए गए हैं।
जब मामला सामने आया तो विभाग ने तुरंत U-टर्न लेते हुए जांच को “आधारहीन” बताया।
PHE मंत्री संपतिया उइके ने दी सफाई
इस मामले पर संपतिया उइके का बयान भी सामने आया है। उन्होंने कहा…
मुझे फंसाने का प्रयास किया जा रहा है।
मैं कैबिनेट में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव से इस विषय पर चर्चा करूंगी और सारी बातें बताऊंगी।
उन्होंने कहा कि मैं बिल्कुल सही हूं, और जिस तरीके से साच को आच नहीं, जिस तरीके से जांच करे मुझे कोई दिक्कत नहीं है।
मंत्री ने कहा कि मैं आदिवासी महिला हूं, मैं ग़रीब मज़दूर वर्ग से आती हूं। यहां आकर मैं जनता की सेवा कर रही हूं।
इसका जवाब मुख्यमंत्री जी देंगे उन्हें सब पता है। जिस तरह से मुझे प्रताड़ित किया जा रहा है, वह बिल्कुल गलत है। इस पूरे मामले को लेकर मैं जल्द प्रेस कांफ्रेंस करुंगी।
कैसे शुरू हुआ पूरा मामला?
इसकी शुरुआत एक शिकायत पत्र से हुई।
संयुक्त क्रांति पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व विधायक किशोर समरीते ने प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) को पत्र लिखकर मंत्री संपतिया उइके पर जल जीवन मिशन के तहत 1000 करोड़ रुपये का कमीशन लेने का आरोप लगाया।
इस पत्र की कॉपी लोकायुक्त, मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव को भी भेजी गई।


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लोकायुक्त ने शिकायत को खारिज किया, लेकिन मुख्य सचिव कार्यालय ने बिना जांचे ही इसे प्रमुख सचिव को भेज दिया।
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प्रमुख सचिव ने अवर सचिव को, और फिर अवर सचिव ने इसे लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के प्रमुख अभियंता (ENC) संजय अंधवान तक पहुंचाया।
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ENC ने बिना सोचे-समझे जांच के आदेश जारी कर दिए, जिसमें सभी मुख्य अभियंताओं और जल निगम के प्रोजेक्ट डायरेक्टरों को 7 दिन में रिपोर्ट देने को कहा गया।
जब मामला वायरल हुआ, तो विभाग ने लिया U-टर्न
जैसे ही जांच के आदेश सोशल मीडिया पर वायरल हुए, विभाग ने तुरंत प्रेस नोट जारी कर कहा कि
“मंत्री पर लगे आरोप बेबुनियाद हैं और RTI के एक जवाब को गलत तरीके से पेश किया गया है।”


मंत्री संपतिया उइके ने जताई नाराजगी
मंत्री संपतिया उइके ने इस पूरे प्रकरण पर नाराजगी जताते हुए कहा –
“मैं भोपाल से बाहर हूं, लेकिन अधिकारियों से पूछ रही हूं कि बिना पुष्टि के मेरे खिलाफ जांच के आदेश क्यों दिए गए? भोपाल लौटने पर मैं इस मामले की गहन जांच करूंगी।”
बड़ा सवाल: क्या सीएम के खिलाफ भी ऐसे ही जांच शुरू हो जाएगी?
इस घटना ने प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं:
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क्या अफसर बिना सोचे-समझे किसी भी शिकायत पर जांच शुरू कर देते हैं?
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अगर कोई सीएम मोहन यादव के खिलाफ ऐसी शिकायत भेज दे, तो क्या उनके खिलाफ भी जांच शुरू हो जाएगी?
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क्या मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव जैसे बड़े अधिकारी फाइलों को ठीक से पढ़ते भी हैं?

टाइमलाइन: कैसे बढ़ा विवाद?
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12 अप्रैल 2025: किशोर समरीते ने PMO को शिकायत भेजी, जिसकी कॉपी लोकायुक्त, मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव को भेजी गई।
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24 अप्रैल 2025: मुख्य सचिव कार्यालय ने बिना जांचे पत्र को प्रमुख सचिव को भेज दिया।
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प्रमुख सचिव से अवर सचिव और फिर ENC तक पहुँचा पत्र।
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ENC ने जांच के आदेश जारी किए।
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सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद विभाग ने जांच को “आधारहीन” बताया।

यह मामला प्रशासनिक लापरवाही का बड़ा उदाहरण है।
अगर अधिकारियों ने शिकायत को ठीक से पढ़ा होता, तो यह विवाद ही नहीं होता।
अब सवाल यह है कि क्या सरकार इस तरह की गलतियों को रोकने के लिए कोई नई व्यवस्था बनाएगी?


