MahaKumbh 2025: संगमनगरी प्रयागराज में महाकुंभ 2025 का शुभारंभ हो चुका है।
पौष पूर्णिमा पर पहला शाही स्नान स्नान हुआ, जिसमें देश-विदेश से आए करोड़ो भक्तों ने आस्था की डुबकी लगाई।
आज से ही श्रद्धालु 45 दिन का कल्पवास शुरू करेंगे।
एपल के को-फाउंडर स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल जॉब्स भी कल्पवास करेंगी।
आइए जानतें है कल्पवास क्या है? यह कौन कर सकता है? पुराणों में इसका क्या महत्व है?
महाकुंभ 144 साल में दुर्लभ खगोलीय संयोग
कुंभ मेला एक ऐतिहासिक और धार्मिक उत्सव है।
इस बार के महाकुंभ की महत्ता इस दुर्लभ खगोलीय संयोग के कारण और भी बढ़ गई है।
दरअसल महाकुंभ 2025 का आयोजन एक दुर्लभ खगोलीय संयोग के तहत हो रहा है, जो 144 साल में एक बार आता है।
पौष पूर्णिमा पर महाकुंभ का शुभारंभ प्रयागराज में हुआ, जहां पहले दिन करोड़ों श्रद्धालाओं ने स्नान किया।
देश के कोने-कोने से भक्त प्रयागराज आए हैं, वहीं विदेशी श्रद्धालु बड़ी तादाद में कुंभ में स्नान करने पहुंचे हैं।
प्रशासन के मुताबिक जर्मनी, ब्राजील, रूस समेत 20 देशों से भक्त पहुंचे हैं।
संगम पर एंट्री के सभी रास्तों पर भक्तों की भीड़ है और वाहनों की एंट्री बंद है।
श्रद्धालु बस और रेलवे स्टेशन से 10-12 किलोमीटर पैदल चलकर संगम पहुंच रहे हैं।
60 हजार जवान सुरक्षा और व्यवस्था संभालने में लगे हैं।
https://twitter.com/MahaaKumbh/status/1878711816748212554
पुलिसकर्मी स्पीकर से लाखों की संख्या में आई भीड़ को मैनेज कर रहे हैं।
जगह-जगह कमांडो और पैरामिलिट्री फोर्स के जवान भी तैनात हैं।
जानिए क्या होता है कल्पवास
महाकुंभ के पावन अवसर पर लाखों श्रद्धालु गंगा के संगम स्थल पर एकत्रित होते हैं।
यहां वे न केवल स्नान करते हैं, बल्कि एक गहरे आध्यात्मिक अनुभव का हिस्सा बनते हैं।
इस आयोजन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है “कल्पवास”, जिसे धार्मिक अनुशासन और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक माना जाता है।
एपल के को-फाउंडर स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल जॉब्स भी कल्पवास करेंगी।
यह एक विशेष प्रकार की साधना है, जिसमें व्यक्ति सांसारिक सुख-सुविधाओं से दूर रहकर केवल ईश्वर के ध्यान और भक्ति में लीन होता है।
कल्पवास कोई भी व्यक्ति कर सकता है।
लेकिन, यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए माना जाता है, जिन्होंने जीवन की जिम्मेदारियों से मुक्ति पा ली हो और आत्मिक उन्नति की दिशा में अग्रसर हों।
कल्पवास कौन कर सकता है?
कल्पवास कोई भी कर सकता है, लेकिन यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए उपयुक्त है जिन्होंने जीवन की सांसारिक जिम्मेदारियों से मुक्ति पा ली हो।
यह गहन अनुशासन, संयम और आत्म-नियंत्रण की आवश्यकता करता है।
युवाओं के लिए भी यह एक अवसर है, बशर्ते वे पूरी तरह से तपस्या और संयम के प्रति समर्पित हों।
आज के समय में लोगों का जीवन भागदौड़ और तनाव से भरा है।
ऐसे में कल्पवास एक ऐसा अवसर है जो व्यक्ति को आत्मिक शांति और मानसिक संतुलन प्रदान करता है।
कुंभ मेले के दौरान लाखों लोग इस परंपरा का पालन करते हुए आध्यात्मिक शांति और आत्मा की शुद्धि का अनुभव करते हैं।
जानें कल्पवास के नियम और लाभ
कल्पवास के नियम बहुत कठोर होते हैं।
कल्पवास करने वाले को श्वेत या पीले रंग का वस्त्र पहनना होता है।
कल्पवास की सबसे कम अवधि एक रात होती है।
इसकी अवधि तीन रात, तीन महीने, छह महीने, छह साल, बारह साल या जीवनभर भी होती है।
पद्म पुराण में महर्षि दत्तात्रेय द्वारा वर्णित कल्पवास के 21 नियम बताए गए हैं।
जो व्यक्ति 45 दिनों तक कल्पवास करता है, उन्हें इन पूरे 21 नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है।
इस दौरान श्रद्धालु केवल एक बार फलाहार करते हैं, दिन में दो बार गंगा स्नान करते हैं।
साथ ही अपने समय का अधिकांश भाग ध्यान, प्रार्थना, धार्मिक प्रवचन और तपस्या में व्यतीत करते हैं।
कहते हैं जो व्यक्ति श्रद्धा और निष्ठापूर्वक कल्पवास के नियमों का पालन करता है, उसे इच्छित फल की प्राप्ति होने के साथ ही जान-जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है।
कुंभ मेला और कल्पवास का संबंध
कुंभ मेला और कल्पवास का एक गहरा संबंध है।
कुंभ मेला पवित्र नदियों के संगम पर आयोजित होता है, जहां श्रद्धालु आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति के लिए कल्पवास करते हैं।
पुराणों में उल्लेख है कि यहां किया गया तप पापों को नष्ट कर, मोक्ष के मार्ग को प्रशस्त करता है।
यह समय आत्मनिरीक्षण, भक्ति और आध्यात्मिक उन्नति का होता है।
इसमें व्यक्ति भौतिक सुखों का त्याग कर दिव्य ऊर्जा से जुड़ने का प्रयास करता है।
महाभारत और मत्स्यपुराण में कल्पवास का उल्लेख
महाभारत और मत्स्यपुराण में कल्पवास का उल्लेख मिलता है।
इन ग्रंथों में कहा गया है कि जो लोग तप और भक्ति के साथ कल्पवास करते हैं, वे न केवल पापमुक्त होते हैं बल्कि स्वर्ग में स्थान प्राप्त करते हैं।
एक पौराणिक कथा के अनुसार देवता भी प्रयाग में कल्पवास के लिए मनुष्य के रूप में जन्म लेने की इच्छा रखते हैं।
कल्पवास केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक जीवन का संजीवनी अवसर है।
यह व्यक्ति को अपने भीतर की शांति और विनम्रता का अनुभव कराता है और उसे ईश्वर से जुड़ने का मार्ग दिखाता है।
यह साधना न केवल आत्मिक उन्नति का माध्यम है, बल्कि जीवन के वास्तविक उद्देश्य की पहचान का भी एक तरीका है।