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महाराष्ट्र के स्कूल में पीरियड्स जांच के नाम पर उतरवाए बच्चियों के कपड़े! फूटा पैरेंट्स का गुस्सा

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Menstruation checking in school महाराष्ट्र के ठाणे जिले के एक निजी स्कूल में कक्षा 5 से 10 तक की छात्राओं के साथ शर्मनाक घटना सामने आई है।

स्कूल प्रशासन ने पीरियड्स की जांच के नाम पर बच्चियों के कपड़े उतरवाए और उनकी निजी जांच की।

इस घटना के बाद गुस्साए अभिभावकों ने स्कूल में हंगामा किया और पुलिस ने प्रिंसिपल को हिरासत में ले लिया है।

क्या हुआ था?

स्कूल में कुछ छात्राओं ने टॉयलेट में खून के धब्बे देखे।

इसके बाद स्कूल प्रशासन ने सभी लड़कियों को कन्वेंशन हॉल में बुलाया और प्रोजेक्टर पर खून के धब्बों की तस्वीरें दिखाईं।

फिर उनसे पूछा गया कि किस-किस को पीरियड्स हो रहे हैं।

जिन छात्राओं ने हां कहा, उनकी उंगलियों के निशान लिए गए।

जिन्होंने ना कहा, उन्हें एक-एक कर टॉयलेट में ले जाकर उनके कपड़े उतरवाए गए और निजी अंगों की जांच की गई।

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Menstruation check in school (Symbolic image)

प्रिंसिपल गिरफ्तार

जब बच्चियों ने यह बात घर पर बताई, तो अभिभावक स्कूल पहुंच गए और प्रिंसिपल के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने लगे।

पुलिस ने प्रिंसिपल को हिरासत में लेकर मामला दर्ज किया है।

अभिभावकों का गुस्सा, वकील पर हमला

जब स्कूल का वकील अभय पितळे मामले को संभालने पहुंचे, तो अभिभावकों ने उन्हें घेर लिया और मारपीट की कोशिश की। हालांकि, पुलिस ने हस्तक्षेप कर उन्हें बचा लिया।

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Menstruation check in school

अब पुलिस जांच कर रही है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का ऐलान किया है।

UNICEF की रिपोर्ट: पीरियड्स के कारण स्कूल छोड़ देती हैं लाखों लड़कियां

यूनिसेफ की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर साल 2.3 करोड़ लड़कियां पीरियड्स शुरू होते ही स्कूल छोड़ देती हैं।

इसके कारण 10 करोड़ लड़कियों की कम उम्र में शादी हो जाती है।

साथ ही, 54% लड़कियां एनीमिया की शिकार होती हैं, खासकर ग्रामीण इलाकों में।

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शिक्षा मंत्रालय की गाइडलाइन

शिक्षा मंत्रालय ने पिछले साल पीरियड्स अवेयरनेस पर एडवाइजरी जारी की थी।

इसमें कहा गया था कि स्कूलों में मुफ्त सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराए जाने चाहिए और परीक्षा के दौरान छात्राओं को ब्रेक दिया जाना चाहिए।

लेकिन इस स्कूल की घटना से साफ है कि अभी भी जागरूकता की कमी है।

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