Bapu Message On Diwali: इस साल दिवाली 31 अक्टूबर को और कुछ राज्यों में 1 नवंबर को भी मनाई जा रही है। लेकिन 77 साल पहले 12 नवंबर, 1947 को स्वतंत्र भारत ने अपनी पहली दिवाली मनाई थी।
हालांकि, रोशनी के त्योहार का कोई जश्न नहीं मनाया गया था क्योंकि देश, विशेष रूप से उत्तरी और पूर्वी क्षेत्र, भारत के विभाजन के दर्द से उबर रहे थे।
विभाजन के बाद हुए सांप्रदायिक दंगों और रक्तपात ने धार्मिक आधार पर दो समुदायों के बीच गहरी नफरत के बीज बो दिए थे।
घाव कच्चे थे, आघात ताज़ा था। देश सांप्रदायिक आधार पर विभाजित था और गहरा अविश्वास था।
भगवान राम के प्रबल अनुयायी गांधी जी ने महाकाव्य रामायण के बताए मार्ग पर चलते हुए लोगों से दिवाली का त्योहार मनाने के लिए अपने भीतर राम, या अच्छाई को खोजने का आग्रह किया।
गांधीजी ने भारत और पाकिस्तान को विभाजन के बाद डर के कारण भाग गए अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को वापस बुलाने का उपदेश भी दिया था।
12 नवंबर, 1947 को स्वतंत्र भारत की पहली दिवाली को दिए अपने संदेश में उन्होंने कहा था –
भाइयों और बहनों….
आज दिवाली है और मैं आप सभी को इस अवसर पर बधाई देता हूं। यह हिंदू कैलेंडर में एक महान दिन है।
विक्रम संवत के अनुसार नया साल कल गुरुवार से शुरू होगा। आपको यह समझना चाहिए कि हर साल रोशनी के साथ दिवाली क्यों मनाई जाती है।
राम और रावण के बीच महान युद्ध में, राम अच्छाई की ताकतों का प्रतीक थे और रावण बुराई की ताकतों का।
राम ने रावण पर विजय प्राप्त की और इस विजय से भारत में रामराज्य की स्थापना हुई। लेकिन अफसोस आज भारत में रामराज्य नहीं है,. तो हम दिवाली कैसे मना सकते हैं?
इस जीत का जश्न वही मना सकता है जिसके भीतर राम है। क्योंकि, केवल ईश्वर ही हमारी आत्माओं को प्रकाशित कर सकता है और केवल वह प्रकाश ही वास्तविक प्रकाश है।
आज जो भजन गाया गया वह कवि की ईश्वर को देखने की इच्छा पर जोर देता है।
लोगों की भीड़ कृत्रिम रोशनी देखने जाती है लेकिन आज हमें जिस चीज की जरूरत है वह है हमारे दिलों में प्यार की रोशनी।
हमें अपने अंदर प्रेम की ज्योति जलानी होगी। तभी हम बधाई के पात्र होंगे। आज हजारों लोग गंभीर संकट में हैं।
क्या आप, आपमें से हर कोई, अपने दिल पर हाथ रखकर कह सकता है कि हर पीड़ित, चाहे वह हिंदू हो, सिख हो या मुस्लिम, आपका अपना भाई या बहन है?
यह आपके लिए परीक्षा है। राम और रावण अच्छाई और बुराई की शक्तियों के बीच अंतहीन संघर्ष के प्रतीक हैं। सच्ची रोशनी भीतर से आती है।
गांधी जी आगे कहते हैं पंडित जवाहरलाल नेहरू घायल कश्मीर को देखकर कितने दुखी मन से लौटे हैं!
वह कल और आज दोपहर भी कार्यसमिति की बैठक में शामिल नहीं हो पाये। वह मेरे लिए बारामूला से कुछ फूल लाए हैं।
मैं प्रकृति के ऐसे उपहारों को हमेशा संजोकर रखता हूं। लेकिन आज लूट, आगजनी और खून-खराबे ने उस प्यारी धरती का सौंदर्य बिगाड़ दिया है।
जवाहरलाल जम्मू भी गये थे। वहां भी सब कुछ ठीक नहीं है।
सरदार पटेल को श्री शामलदास गांधी और ढेबरभाई के अनुरोध पर जूनागढ़ जाना पड़ा, जिन्होंने उनसे सलाह मांगी थी।
जिन्ना और भुट्टो दोनों नाराज़ हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि भारत सरकार ने उन्हें धोखा दिया है और जूनागढ़ पर संघ में शामिल होने के लिए दबाव डाल रही है।
देश में शांति और सद्भावना स्थापित करने के लिए अपने दिल से नफरत और संदेह को दूर करना हर किसी का कर्तव्य है।
यदि आप अपने भीतर ईश्वर की उपस्थिति को महसूस नहीं करते हैं और अपने छोटे-मोटे आंतरिक झगड़ों को नहीं भूलते हैं, तो कश्मीर या जूनागढ़ में सफलता व्यर्थ साबित होगी।
जब तक आप डर के मारे भागे हुए सभी मुसलमानों को वापस नहीं लाएंगे तब तक दिवाली नहीं मनाई जा सकती।
पाकिस्तान भी नहीं बचेगा अगर वह वहां से भागे हुए हिंदुओं और सिखों के साथ ऐसा नहीं करेगा।
कल मैं आपको बताऊंगा कि कांग्रेस कार्य समिति के बारे में मैं क्या कह सकता हूं।
गुरुवार से शुरू होने वाले नए साल में आप और पूरा भारत खुश रहें।
ईश्वर आपके हृदयों को प्रकाश प्रदान करें ताकि आप न केवल एक-दूसरे या भारत की बल्कि पूरे विश्व की सेवा कर सकें। जैसा कि हम दिवाली मनाते हैं।
संयोगवश, 12 नवंबर को, जब स्वतंत्र भारत ने अपना पहला रोशनी का त्योहार मनाया, हमें महात्मा गांधी की याद आती है।
वह भले ही आज जीवित नहीं हैं, लेकिन सांप्रदायिक सद्भाव और अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार का उनका संदेश आज भी प्रासंगिक है।
भारत भले ही धार्मिक आधार पर विभाजित होकर पहले दो टुकड़ों में फिर तीन टुकड़ों में बंट गया हो, लेकिन हजारों लाखों वर्षों से भारतवर्ष में रहते आए सभी लोगों का डीएनए एक ही है।
कोई लाख कोशिश कर ले इसे बदलने की डीएएन बदला नहीं जा सकता है।
लिहाजा बापू के उस संदेश को फिर से आत्मसात करने की जरूरत भारत की आवाम को भी और पड़ोसी पाकिस्तान और बांग्लादेश की आवाम को भी है।
आजादी के बाद से अब तक कहां कितनी अल्पसंख्यक आबादी ?
भारत का बंटवारा हुआ तो तीज त्योहार और संस्कृति तो नहीं बंटी लेकिन इंसान की धार्मिक कट्टरवादी सोच बंट गई।
भारत से अलग होकर बने पाकिस्तान में विभाजन के समय 20 फीसदी से ज्यादा हिंदू थे, लेकिन धर्मांतरण और उत्पीड़न के बाद पड़ोसी देश में हिंदुओं की संख्या दिन-पर-दिन कम होती गई।
लंबे समय तक अंग्रेजों के शासन के बाद भारत को साल 1947 में आजादी मिली थी।
इसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बंटवारा हुआ और भारत हिंदू बहुसंख्यक और पाकिस्तान मुस्लिम बहुसंख्यक देश बन गया।
हालांकि, दोनों ओर ही बड़ी संख्या में मुस्लिम और हिंदू अपनी मर्जी से रुक गए।
पाकिस्तान में तेजी से धर्मांतरण के मामले सामने आए और हिंदुओं के खिलाफ बड़े स्तर पर उत्पीड़न हुआ।
साल 1998 में हुई जनगणना के बाद पाकिस्तान में सिर्फ 1.6 फीसदी ही हिंदू बचे।
एक्सपर्ट्स मानते हैं कि पिछले दो दशकों में इस आंकड़े में भी बहुत कमी आ गई होगी और पड़ोसी देश में हिंदुओं की संख्या और भी कम हो गई है।
दूसरी तरफ आजादी के समय भारत की कुल आबादी लगभग 36 करोड़ 10 लाख थी, जिसमें से 3 करोड़ 50 लाख मुसलमान थे।
1951 से 2011 के बीच (जनगणना के मुताबिक) मुस्लिम आबादी 35.4 मिलियन से बढ़कर 172 मिलियन हो गई देश की आबादी की लगभग 14.2% तक पहुंच गई।
बांग्लादेश में 1947 में 22 प्रतिशत हिन्दू आबादी थी. लेकिन आज बांग्लादेश में हिंदुओं की कुल आबादी करीब 7.97 फीसदी है।
यानी आबादी के लिहाज से देखें तो बांग्लादेश की कुल आबादी 17 करोड़ के करीब है। इस हिसाब से हिंदुओं की आबादी 1.35 करोड़ है।
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