Naxalite Hidma Killed: भारत के नक्सल विरोधी अभियान में बुधवार को एक ऐतिहासिक और बड़ी सफलता मिली है।
देश के सबसे वांटेड और खूंखार नक्सली नेताओं में से एक, माड़वी हिड़मा, जिस पर 1 करोड़ रुपये का इनाम था, की सुरक्षाबलों के साथ हुई मुठभेड़ में मौत हो गई है।
यह ऑपरेशन छत्तीसगढ़-आंध्र प्रदेश सीमा पर स्थित आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू (ASR) जिले के मारेदुमिल्ली इलाके में हुआ।
इस संयुक्त ऑपरेशन में आंध्र प्रदेश की स्पेशल ग्रेहाउंड फोर्स ने अहम भूमिका निभाई।
5 अन्य नक्सली भी मारे गए
हिड़मा के साथ ही उसकी पत्नी राजे (उर्फ रजक्का) और चार अन्य शीर्ष नक्सली कमांडर भी इस मुठभेड़ में ढेर हो गए हैं।
घटना की सूचना मिलते ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ऑपरेशन में लगी टीम से फोन पर बात कर स्थिति की जानकारी ली।
हालांकि, आधिकारिक तौर पर हिडमा की मौत की पुष्टि अभी बाकी है, लेकिन सुरक्षा सूत्रों ने इसे नक्सल विरोधी लड़ाई में एक ‘गेम-चेंजर’ करार दिया है।

कौन था कुख्यात हिड़मा? एक नजर उसके ‘खूनी सफर’ पर
माड़वी हिड़मा, जिसका असली नाम मदवी हिदमा था, छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के पुरावा गांव का रहने वाला था।
उम्र महज 43 साल थी, लेकिन नक्सलवाद के खतरनाक दुनिया में वह सीपीआई (माओवादी) की सेंट्रल कमेटी (CC) का सदस्य और पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA) की बटालियन नंबर 1 का कमांडर था।
उसका नाम देश की सबसे बड़ी नक्सली घटनाओं से जुड़ा था और वह सुरक्षा एजेंसियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ था।
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बड़े हमलों का ‘मास्टरमाइंड’: हिड़मा को 2010 के दंतेवाड़ा हमले का मुख्य साजिशकर्ता माना जाता है, जहां नक्सलियों ने 76 सीआरपीएफ जवानों को शहीद कर दिया था। यह भारत के नक्सल इतिहास का अब तक का सबसे भीषण हमला था।
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झीरम घाटी नरसंहार: इसके अलावा, 2013 के झीरम घाटी नरसंहार, जिसमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं सहित 27 लोग मारे गए थे, और 2021 के सुकमा-बीजापुर मुठभेड़, जिसमें 22 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए, में भी उसकी प्रमुख भूमिका थी।
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रणनीतिकार और विशेषज्ञ: हिड़मा को गुरिल्ला युद्ध और जंगल में लड़ाई का विशेषज्ञ माना जाता था। वह हिट-एंड-रन और घात लगाकर हमला करने की रणनीति में माहिर था। उसके पास 200 से 250 तक हथियारबंद नक्सलियों का एक मजबूत नेटवर्क था, जो दक्षिण बस्तर के घने जंगलों में सक्रिय था।
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तेज रफ्तार में उछाल: साल 1996 में एक साधारण नक्सली के तौर पर शुरुआत करने वाला हिड़मा अपनी बहादुरी और क्रूर रणनीतियों की वजह से तेजी से संगठन में ऊपर उठा और PLGA की प्रथम बटालियन का कमांडर बना, जिसे माओवादियों की ‘एलीट फोर्स’ माना जाता है।

कैसे हुआ ऑपरेशन?
सुरक्षा सूत्रों के मुताबिक, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ पुलिस को विश्वसनीय सूचना मिली थी कि मारेदुमिल्ली के घने जंगलों में एक बड़ा नक्सली समूह मौजूद है।
इस सूचना के आधार पर आंध्र प्रदेश की स्पेशल ग्रेहाउंड फोर्स और छत्तीसगढ़ के डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) के जवानों का एक संयुक्त दल रवाना किया गया।
सोमवार की सुबह लगभग 6 से 7 बजे के बीच, जब सुरक्षाबल उस इलाके में पहुंचे, तो नक्सलियों ने उन्हें देखते ही फायरिंग शुरू कर दी।
सुरक्षाबलों ने भी जवाबी कार्रवाई की और दोनों ओर से भारी गोलीबारी हुई।
मुठभेड़ के बाद जब जंगल की तलाशी अभियान चलाया गया, तो छह नक्सलियों के शव बरामद किए गए।
इनमें हिड़मा, उसकी पत्नी राजे (जो खुद एक डिविजनल कमेटी मेंबर थीं), सब जोनल कमेटी मेंबर टेक शंकर और चेल्लुरी नारायण उर्फ सुरेश शामिल थे।
दो अन्य नक्सलियों की पहचान अभी की जा रही है।
Madvi #Hidma, a top #Maoist commander who led 26 armed attacks against security forces and civilians, was gunned down in an #Encounter in Andhra Pradesh’s Alluri Sitarama Raju district on Tuesday. He and his wife were among the six Maoists killed in the encounter. pic.twitter.com/mTr76wdwL2
— Ramana Reddy (@RamanaR69561502) November 18, 2025
हिड़मा का सफाया: नक्सल विरोधी लड़ाई में क्यों है अहम?
हिड़मा का खात्मा सुरक्षा बलों के लिए एक बड़ी रणनीतिक जीत है। इसके कई मायने हैं:
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मनोबल को झटका: हिड़मा माओवादी संगठन का एक करिश्माई और भय का प्रतीक था। उसकी मौत से नक्सलियों के मनोबल को गहरा आघात पहुंचेगा।
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ऑपरेशनल झटका: PLGA की पहली बटालियन, जिसे माओवादी अपनी सबसे ताकतवार और प्रशिक्षित इकाई मानते थे, को इससे भारी नुकसान पहुंचा है।
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इलाके का ज्ञान: हिड़मा को बस्तर के जंगलों और स्थानीय नेटवर्क की गहरी जानकारी थी। उसके बगैर नक्सलियों की सुरक्षा बलों के सामने टिक पाना मुश्किल होगा।
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सरेंडर को बढ़ावा: ऐसे बड़े नेताओं के ढेर होने से निचले स्तर के नक्सलियों में आत्मसमर्पण करने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है।
पिछले कुछ महीनों में नक्सली नेताओं पर सुरक्षाबलों की मजबूत पकड़
हिड़मा का सफाया अकेली घटना नहीं है।
पिछले एक साल में सुरक्षा बलों ने नक्सल संगठन के कई शीर्ष नेताओं को ढेर किया है या उन्हें आत्मसमर्पण करने पर मजबूर किया है। इनमें शामिल हैं:
- बसवा राजू: पोलित ब्यूरो सदस्य और 1.5 करोड़ रुपये का इनामी (मई 2025 में ढेर)
- जयराम उर्फ चलपति: सेंट्रल कमेटी मेंबर, 1 करोड़ इनामी
- बालकृष्णा उर्फ रामाराजू: सेंट्रल कमेटी मेंबर, 1 करोड़ इनामी
- रेणुका: सेंट्रल रीजनल ब्यूरो, 45 लाख इनामी
इन सफलताओं ने माओवादी संगठन की रीढ़ तोड़ने का काम किया है।
केंद्र सरकार की सख्त रणनीति
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में साफ किया था कि नक्सलियों के किसी भी ‘संघर्ष विराम’ के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया जाएगा।
उन्होंने कहा था, “अगर नक्सली हथियार डालकर आत्मसमर्पण करना चाहते हैं, तो उनका स्वागत है। सुरक्षा बल गोली नहीं चलाएंगे, लेकिन कोई युद्धविराम नहीं होगा। अगर कोई बंदूक उठाएगा तो गोली का जवाब सरकार गोली से देंगे।”
यह बयान सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति को दर्शाता है।
सरकार का लक्ष्य देश को 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद से मुक्त कराने का है।
आंकड़े बताते हैं कि हाल के अभियानों में 290 से अधिक नक्सली मारे गए हैं, 1090 गिरफ्तार किए गए हैं और 881 ने आत्मसमर्पण किया है।
आगे की राह
हिड़मा का खात्मा निश्चित रूप से एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि नक्सलवाद सिर्फ एक सुरक्षा चुनौती नहीं, बल्कि एक वैचारिक और सामाजिक-आर्थिक समस्या भी है।
इसलिए, सुरक्षा अभियानों के साथ-साथ विकास के कार्यों, रोजगार के अवसरों और स्थानीय समुदायों के विश्वास को जीतने पर भी समान रूप से ध्यान देना होगा।
छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक हरीश कुमार गुप्ता ने इस ऑपरेशन को जारी रखने और सर्च ऑपरेशन को तेज करने के निर्देश दिए हैं।
कहा जा सकता है कि हिड़मा जैसे खूंखार नक्सली का अंत भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ी राहत है।


