One Nation One Election: पहले चरण में लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव होंगे और इसके बाद फिर नगर पालिका और पंचायत चुनाव होंगे।
वन नेशन वन इलेक्शन का सिस्टम कुछ ऐसे काम करेगा।
मोदी कैबिनेट ने एक देश-एक चुनाव बिल (One Nation One Election) को मंजूरी दे दी है और अब अगले हफ्ते इसे संसद में पेश किया जाएगा।
लेकिन, क्या मोदी सरकार संसद की परीक्षा पास कर पाएगी?
लोकसभा और राज्यसभा का नंबर गेम खेल तो नहीं बिगाड़ देगा?
अगर वन नेशन वन इलेक्शन बिल पास हुआ तो देश में एक साथ कब से होंगे?
एक देश-एक चुनाव के फायदे और नुकसान क्या-क्या है?
आईए जानतें हैं वन नेशन वन इलेक्शन बिल से जुड़े सारे सवाल और जानकारी
पहले समझें One Nation One Election
एक देश-एक चुनाव का सीधा सा मतलब है कि देश में होने वाले सारे चुनाव एक साथ कराए जाए।
फिलहाल भारत में राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं।
वन नेशन वन इलेक्शन बिल पास होने के बाद मतदाता लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से वोट कर पाएंगे।
एक देश-एक चुनाव के सिस्टम को लेकर कोविंद कमेटी ने सुझाव दिया था कि इलेक्शन को 2 चरणों में कराया जाए।
पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हो और फिर इसके पूरा होने के 100 दिन के अंदर ही नगर पालिका और पंचायत चुनाव कराए जाने चाहिए।
सरकार के तीनों स्तरों के चुनावों में उपयोग के लिए एक ही Electors Photo Identification Card होना चाहिए।
त्रिशंकु सदन की स्थिति में अविश्वास प्रस्ताव लाया जाए और ऐसी स्थिति में नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक लोकसभा से लेकर स्थानीय निकायों तक सभी चुनावों पर लगभग 10 लाख करोड़ रुपये का खर्च आता है।
अगर 2029 में देशभर में एक साथ चुनाव होंगे तो मतदान का खर्च 3 से 5 लाख करोड़ रुपये तक कम किया जा सकता है।
मोदी कैबिनेट से मंजूरी के बाद संसद की परीक्षा
एक देश, एक चुनाव भाजपा और नरेंद्र मोदी का पुराना एजेंडा है।
सरकार इस बिल पर आम सहमति बनाना चाहती है, लिहाजा संसद से बिल को चर्चा के लिए जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (JPC) के पास भेजा जाएगा।
JPC इस बिल पर सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा करेगी।
फिलहाल केंद्रीय कैबिनेट ने बिल को मंजूरी दे दी है और अगले हफ्ते बिल को संसद में पेश किया जाएगा।
भारत की संसद में दो सदन होते हैं- लोकसभा और राज्यसभा।
दोनों सदनों का मुख्य काम विधान या कानून बनाना है।
इसके लिए पहले विधेयक सदन में पेश किया जाता है।
फिर इस पर चर्चा होती है, उसके बाद सभी की सहमति या वोटिंग कराकर इसे पारित कर दिया जाता है।
राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ये कानून बन जाता है।
एक साथ चुनाव के लिए संविधान के कई प्रावधानों में संशोधन की जरूरत होगी, इसलिए वन नेशन वन इलेक्शन बिल को ‘संविधान संशोधन विधेयक’ के तौर पर पेश किया जाएगा।
यह दोनों सदनों में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित किया जाना चाहिए।
इस बिल को लागू करने के लिए राज्यों से सहमति की जरूरत नहीं होगी।
लेकिन, अगर स्थानीय निकाय चुनावों को लोकसभा और विधानसभा चुनावों के साथ करने का प्रस्ताव आता है, तो उसे कम से कम 50 प्रतिशत राज्यों की विधानसभाओं से मंजूरी की आवश्यकता होगी।
वहीं 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले दो और महत्वपूर्ण काम जनगणना और परिसीमन होना जरूरी है।
समझें लोकसभा और राज्यसभा का गणित
जिन पार्टियों ने एक साथ चुनाव करवाए जाने के समर्थन में राय दी थी, लोकसभा में उनके सांसदों की संख्या 271 है।
जिन्होंने न समर्थन किया है और न विरोध, उनके सांसदों की संख्या जोड़ दें तो आंकड़ा 293 पर पहुंचता है।
अगर ये सब सदन में सरकार के समर्थन में मतदान करें तब भी विधेयक उसी हाल में पारित हो सकेगा, जब वोटिंग के लिए कुल 439 सदस्य ही मौजूद रहें।
अगर सभी सांसद वोटिंग के लिए मौजूद रहेंगे तो लोकसभा में विधेयक पारित करवाने के लिए 362 यानी सांसदों दो-तिहाई की जरूरत होगी।
ऐसे में हो सकता है कि लोकसभा में विधेयक गिर जाए।
वहीं राज्यसभा का गणित भी सत्ताधारी पक्ष के लिए आसान नहीं है।
एनडीए के 113, 6 मनोनीत और 2 निर्दलीय सांसदों को मिला कर सत्ताधारी खेमा 121 वोट आसानी से पा सकता है।
लेकिन, अभी कुल सांसद 231 हैं और दो-तिहाई समर्थन के लिए 154 वोट चाहिए, यानि 33 वोट का इंतजाम करना होगा।
बीजद, वाईएसआर कांग्रेस, भारत राष्ट्र समिति के 19 सांसद हैं, ये पार्टियां न एनडीए के साथ हैं और न ही इंडिया के साथ हैं।
अगर मान लें कि ये एनडीए के पक्ष में वोट करेंगी तब भी एनडीए के लिए जरूरी संख्या पूरी नहीं हो पाएगी।
इंडिया खेमे में 85 सांसद हैं, निर्दलीय कपिल सिब्बल भी उनकी तरफ से वोट कर सकते हैं।
एआईएडीएमके के चार और बसपा का एक सांसद है, इनका झुकाव किसी खेमे की ओर नहीं दिखाई देता।
ऐसे में वोटिंग के दौरान इनके रुख के बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।
One Nation One Election का फायदा
- चुनाव एक साथ कराए जाने से जनता का पैसा बचेगा
- चुनावों की बार-बार की तैयारी से छुटकारा मिलेगा
- प्रशासनिक व्यवस्था और सुरक्षा बलों पर बोझ कम पड़ेगा
- सरकार के विकास कार्यों में रुकावट नहीं आएगी
- प्रशासनिक मशीनरी विकास कार्यों में ज्यादा समय दे पाएगी
One Nation, One Election का नुकसान
- सबसे बड़ी अड़चन संवैधानिक प्रावधान, लोकसभा और विधानसभाओं का निर्धारित कार्यकाल सबसे बड़ा बाधक
- विधायिका का नया कार्यकाल तय करना होगा, सभी राज्य विधान सभाओं का कार्यकाल भी सामान्यतः उसी दिन समाप्त होना चाहिए जिस दिन लोकसभा का कार्यकाल समाप्त हो रहा हो
- ईवीएम पर ही खर्च होंगे हजारों करोड़ रुपए, भारत निर्वाचन आयोग के मुताबिक एक साथ चुनाव कराने के लिए EVM और VVPAT मशीनों की बड़े पैमाने पर आवश्यकता पड़ेगी
- एक साथ चुनाव लागू करने के लिए राज्य विधानसभाओं की शर्तों को सिंक्रनाइज यानि समकालिक किया जाए
- अगर एक साथ चुनाव कराए जाते हैं, तो अतिरिक्त अधिकारियों और सुरक्षाबलों की जरूरत पड़ेगी ऐसे में ये भी एक बड़ी चुनौती होंगी।
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कोविंद कमेटी ने तैयार की थी रिपोर्ट
2 सितंबर 2023 को वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर एक कमेटी का गठन किया गया था, जिसने 14 मार्च 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।
कोविंद कमेटी ने राष्ट्रपति से 2029 में एकसाथ चुनाव कराने के लिए संविधान संशोधन की सिफारिश की थी।
इसके अनुसार पहला बिल संविधान के अनुच्छेद 82A में संशोधन करेगा, जिससे लोकसभा और विधानसभाओं के कार्यकाल की समाप्ति एक साथ हो सके।
स्टेकहोल्डर्स और एक्सपर्ट्स से सलाह-मशविरे से 191 दिनों के रिसर्च वर्क के बाद तैयार की गई इस रिपोर्ट में 18,626 पन्नों है।
रिपोर्ट में अनुच्छेद 324A लागू करने के अलावा अनुच्छेद 325 में संशोधन की मांग भी शामिल है।
कोविंद कमेटी ने रिपोर्ट तैयार करने से पहले 7 देशों के चुनाव प्रक्रिया पर स्टडी की थी।
इनमें स्वीडन, जर्मनी, बेल्जियम, जापान, दक्षिण अफ्रिका, इंडोनेशिया और फिलीपींस का नाम शामिल है।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाले इस पैनल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे औऱ पूर्व केंद्रीय सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी सदस्य के तौर पर जुड़े हैं।
वहीं इस कमेटी में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और नितिन चंद्रा भी शामिल है।
कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी भी इस कमेटी का हिस्सा थे, लेकिन उन्होंने अक्टूबर 2023 को इस्तीफे दे दिया था।
दरअसल, कांग्रेस नेता पहले दिन से इस कमेटी में शामिल किए जाने को लेकर संतुष्ट नहीं थे।
पहले एक साथ होते थे चुनाव, फिर क्यों हुए बंद ?
आजादी के बाद कुछ सालों तक 4 बार एक साथ चुनाव हुए हैं।
1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ करवाए गए थे।
लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग हो गई और इसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई।
फिर समय से पहले विधानसभा भंग होने और सरकार गिरने के कारण ये परंपरा टूट गई।
कोविंद कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक विधि आयोग के प्रस्ताव पर सभी दल सहमत हुए तो 2029 से वन नेशन वन इलेक्शन लागू होगा और इसके लिए कई राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल घटेगा।
दिसंबर 2026 तक 25 राज्यों में विधानसभा चुनाव कराने होंगे।
वहीं जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव 2023 के आखिर में हुए हैं उनका कार्यकाल 2029 तक बढ़ाया जा सकता है।
हंग असेंबली (किसी को बहुमत नहीं), नो कॉन्फिडेंस मोशन होने पर बाकी के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं।
फिलहाल यह फैसला सरकार पर छोड़ा दिया है कि वह इस बिल को 2029 से लागू करना चाहते हैं या 2034 से।