MP OBC Reservation Case: बुधवार, 8 अक्टूबर को 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई होनी थी, लेकिन इससे पहले ही राज्य शासन की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक दिन का समय मांग लिया।
उन्होंने कोर्ट से अनुरोध किया कि मामले की सुनवाई को 9 अक्टूबर के लिए स्थगित कर दिया जाए।
हालांकि, इस दौरान कोर्ट ने एक अहम सवाल उठाते हुए कहा कि क्या यह मामला दोबारा मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को नहीं भेजा जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का तर्क
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने तर्क दिया कि आरक्षण का मुद्दा पूरी तरह से राज्य से जुड़ा हुआ है।
इसमें राज्य की भौगोलिक स्थिति (टोपोग्राफी), जनसंख्या का आंकड़ा और स्थानीय परिस्थितियों जैसे पहलू शामिल हैं।
कोर्ट का मानना था कि ऐसे मामलों पर स्थानीय स्तर पर हाईकोर्ट द्वारा बेहतर ढंग से विचार किया जा सकता है।
यह टिप्पणी मामले के भविष्य के लिए एक नया मोड़ लेकर आई है।
क्या है पूरा मामला? अंतरिम आदेश और स्थानांतरण याचिकाओं का जाल
दरअसल मध्य प्रदेश सरकार द्वारा लागू 27% ओबीसी आरक्षण को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।
इसके जवाब में हाईकोर्ट ने आरक्षण पर रोक लगाते हुए एक अंतरिम आदेश (Interim Order) पारित किया था।
यही वह आदेश है जिसने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 27% ओबीसी आरक्षण को प्रभावी ढंग से रोक रखा है।
इसके बाद, इस मामले से जुड़ी कई याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित (Transfer Petitions) कर दिया गया, ताकि सभी मामलों का एक साथ निपटारा किया जा सके।
सुनवाई के दौरान, ओबीसी वेलफेयर कमेटी के अधिवक्ता वरुण ठाकुर और रामेश्वर ठाकुर ने कोर्ट का ध्यान इस ओर खींचा कि हाईकोर्घ ने इस मामले में लगभग 90 अंतरिम आदेश पारित किए हैं और अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष है।
एक और तर्क यह दिया गया कि छत्तीसगढ़ में एक समान मामले में अंतरिम राहत इस आधार पर दी गई थी क्योंकि वहां कुछ भर्ती प्रक्रियाएं पहले से चल रही थीं।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अन्य राज्यों जैसे महाराष्ट्र (मराठा आरक्षण), बिहार और राजस्थान के मामलों में ऐसी राहत देने से इनकार किया है।
अधिवक्ताओं ने जोर देकर कहा कि आरक्षण की कुल सीमा 50% को पार कर रही है, जो सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णयों के विपरीत है।
9 अक्टूबर की सुनवाई क्यों है निर्णायक? क्या मिलेगा 27% आरक्षण?
अब निगाहें मंगलवार, 9 अक्टूबर को होने वाली सुनवाई पर टिकी हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि वह इस मामले को एक “व्यावहारिक” (Practical) नजरिए से देखेगी।
कोर्ट का प्रस्ताव है कि यदि सभी अंतरिम आदेशों को रद्द कर दिया जाए और मामला पूरी तरह से हाईकोर्ट को वापस भेज दिया जाए, तो यह एक समाधान हो सकता है।
अगर अंतरिम आदेश हटते हैं तो क्या होगा?
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश को निरस्त कर देती है, तो मध्य प्रदेश सरकार के लिए 27% ओबीसी आरक्षण को तत्काल लागू करने का रास्ता साफ हो जाएगा।
सरकार इसी कोशिश में है कि किसी तरह अंतरिम राहत मिल जाए, जिससे वह ओबीसी वर्ग के समक्ष यह दिखा सके कि उन्होंने ही यह आरक्षण दिलाया है।
साथ ही, लंबित 13% रिक्त पदों पर भर्ती प्रक्रिया भी तेजी से शुरू की जा सकेगी।
हालांकि, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सावधानी बरतते हुए कहा कि वे अभी यह नहीं जानते कि कोर्ट के इस प्रस्ताव का क्या असर होगा, इसलिए समय मांगा गया था।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि वह और देरी नहीं चाहती, क्योंकि दिवाली की छुट्टियां नजदीक हैं और उनके पास अन्य महत्वपूर्ण मामले भी हैं।
9 अक्टूबर की सुनवाई इसलिए भी अहम है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला न केवल मध्य प्रदेश, बल्कि अन्य राज्यों में चल रहे ओबीसी आरक्षण के समान मामलों के लिए एक मिसाल कायम करेगा।
पूरा राजनीतिक और सामाजिक जगत इस निर्णय की प्रतीक्षा कर रहा है, जो लाखों युवाओं के भविष्य का रास्ता तय करेगा।