Ramniwas Rawat take oath twice: 8 जुलाई की सुबह भोपाल (मध्य प्रदेश) में मुख्यमंत्री मोहन यादव मंत्रीमंडल का दूसरा विस्तार हुआ। जहां सिर्फ एक विधायक रामनिवास रावत को मंत्री बनाया गया।
2 बार लेनी पड़ी शपथ
कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में आए रामनिवास रावत को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। हालांकि शपथ ग्रहण के दौरान थोड़ी असमंजस की स्थिति हो गई, ऐसे में उन्हें 2 बार मंत्री पद की शपथ लेनी पड़ी।
इस वजह से ली 2 बार शपथ
दरअसल रावत को सुबह करीब 9.05 बजे बतौर कैबिनेट मंत्री शपथ लेनी थी, लेकिन उन्होंने राज्यमंत्री पद की शपथ ले ली।
इसके बाद करीब 9.20 बजे उन्हें दोबारा कैबिनेट मंत्री पद की शपथ दिलाई गई।
खुद कर लिया था अपना डिमोशन
रावत ने गफलत में खुद अपना डिमोशन कर लिया था, हालांकि बाद में उन्होंने सही शपथ ली। पहले शपथ ग्रहण समारोह राजभवन के मैन हॉल में हुआ था, इसके बाद बैठक कक्ष में उन्हें शपथ दिलाई गई।
रावत ने विधायक पद से भी इस्तीफा दे दिया है, यानी उन्हें अब 6 महीने के भीतर उपचुनाव जीतना होगा।
गौरतलब है कि 5 जुलाई को कांग्रेस ने विधानसभा अध्यक्ष से ज्ञापन सौंपकर राम निवास रावत की विधायकी समाप्त करने की मांग की थी।
कांग्रेस छोड़ बीजेपी में हुए शामिल –
कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल होने के 68 दिन बाद आखिरकार रामनिवास रावत को मंत्री बनाया गया।
राजभवन में हुए समारोह में राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।
हैरानी की बात ये है कि मोहन सरकार के दूसरे मंत्रिमंडल विस्तार में सिर्फ रावत को ही शपथ दिलाई गई।
मोहन मंत्रिमंडल में अब कुल मंत्रियों की संख्या 31 हो गई है। मंत्रिमंडल में अधिकतम 34 मंत्री हो सकते हैं। ऐसे में 3 पद अभी खाली है।
कांग्रेस से क्यों नाराज थे रावत –
श्योपुर जिले की विजयपुर विधानसभा से 6 बार से विधायक रामनिवास रावत (Ramniwas Rawat) 2013 के विधानसभा चुनाव की उस लहर में भी चुनाव जीतने में सफल हो गए, जब भाजपा 230 में से 163 पर चुनाव जीती थी। 2023 में कांग्रेस के 66 विधायकों में एक रामनिवास रावत भी थे।
तेज तर्रार और बुलंद आवाज वाले रामनिवास रावत कांग्रेस के नेताओं में शुमार थे, जो विधानसभा सहित अन्य मंचों पर पार्टी की बात को दमदारी से रखते थे, लेकिन 2018 में कमलनाथ सरकार में मंत्री न बनाए जाने और उसके बाद 2023 में विधानसभा चुनाव के बाद जीतू पटवारी को अध्यक्ष बनाए जाने से वे नाराज थे।
जीतू और रावत दोनों कार्यकारी अध्यक्ष थे ऐसे में जीतू को अध्यक्ष बनाना रावत को अखर गया। इसके बाद से ही रावत का पार्टी छोड़ने की अटकले लगने लगी थीं।
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